कर्नाटक सरकार ने मुस्लिमों को ओबीसी कोटे (Karnataka Muslim Quota) के तहत मिलने वाले 4% आरक्षण को खत्म करने के फैसले का बचाव करते हुए सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि धर्म के आधार पर रिजर्वेशन संविधान सम्मत हैं। चुनाव से पहले इसको खत्म करने का फैसला कोई मायने नहीं रखता है। उच्चतम न्यायालय में एक एफिडेविट में कर्नाटक सरकार ने मुस्लिम रिजर्वेशन को खत्म करने के फैसले का बचाव करते हुए कहा कि टाइमिंग का कोई मतलब नहीं है, क्योंकि यह रिजर्वेशन संविधान के अनुरूप था ही नहीं।

सरकार ने दलील दी है कि चूंकि पूर्व में आरक्षण धर्म के आधार पर दिया गया था, ऐसे में इसको जारी रखने का कोई मतलब नहीं है। खासकर तब, जब यह संवैधानिक सिद्धांतों पर बिल्कुल खरा नहीं उतरता।

केंद्रीय लिस्ट में मुस्लिमों को कोई रिजर्वेशन नहीं

सरकार ने कहा है कि आरक्षण की व्यवस्था ऐसे लोगों के लिए है जिनके साथ समाज में भेदभाव और गैरबराबरी हुई हो। धर्म के आधार पर रिजर्वेशन सामाजिक न्याय के सिद्धांतों के भी खिलाफ है। सरकार ने अपने एफिडेविट में कहा है कि किस समूह को बैकवर्ड क्लास माना जाना चाहिए और उनको क्या सुविधाएं मिलनी चाहिए, यह प्रत्येक राज्य की संवैधानिक ड्यूटी है। केंद्रीय सूची का भी हवाला दिया है और कहा है कि मुस्लिम समुदाय को सेंट्रल लिस्ट में भी किसी तरह का कोई आरक्षण नहीं मिलता है।

25 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान कर्नाटक सरकार की तरफ से पेश सॉलिसिटर जनरल ने आश्वासन दिया है कि फिलहाल 9 जून तक आरक्षण को खत्म करने वाला फैसला लागू नहीं होगा। इससे पहले कर्नाटक सरकार ने कहा था कि 18 अप्रैल तक इस आदेश पर अमल नहीं करेगी।

क्या है मुस्लिम कोटा?

कर्नाटक में मुस्लिमों ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) कोटे के तहत 4% आरक्षण (Karnataka Muslim Quota) मिलता है। इसी साल 24 मार्च को राज्य की बसवराज बोम्मई सरकार ने एक कैबिनेट मीटिंग बुलाई और मुस्लिम आरक्षण रद्द करने का फैसला लिया। ध्यान देने वाली बात यह है कि सरकार ने मुस्लिम कोटे का जो 4 प्रतिशत आरक्षण खत्म किया, उसे लिंगायत और वोक्कालिगा समुदाय को देने का फैसला लिया। दोनों समुदायों में इस रिजर्वेशन को दो-दो फीसदी बांट दिया।

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कर्नाटक में किस समुदाय के कितने लोग, जानिये

कर्नाटक में अभी वोक्कालिगा समुदाय को 4 फ़ीसदी आरक्षण मिलता है, तो लिंगायतों को 5 फीसदी। सरकार के नए आदेश के बाद अब वह वोक्कालिगा समुदाय का कोटा 6 फ़ीसदी हो गया है, तो लिंगायत समुदाय का रिजर्वेशन कोटा 7 फीसदी हो गया है। विधानसभा चुनाव से ठीक पहले राज्य सरकार के इस कदम की विपक्षी दलों ने तीखी आलोचना की और लिंगायत व वोक्कालिगा समुदाय के वोटरों को अपने पालने में लुभाने वाला कदम बताया।

लिंगायत समुदाय:

लिंगायत समुदाय को कर्नाटक की अगड़ी जातियों में गिना जाता है। इस समुदाय का इतिहास 12वीं सदी से है। राज्य के गठन के बाद से ही लिंगायत समुदाय का दबदबा रहा है। राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येद्दयुरप्पा से लेकर मौजूदा मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई, जगदीश शेट्टार, एचडी थिमैया जैसे बड़े नेता लिंगायत समुदाय से ही आते हैं।

वोक्कालिगा समुदाय: अब वोक्कालिगा समुदाय की बात करें तो देश के पूर्व प्रधानमंत्री एच डी देवगौड़ा से लेकर चेंगलराय रेड्डी और केएल हनुमंथैया जैसे सूबे के तमाम दिग्गज नेता इस समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। कर्नाटक के कम से कम 9 जिले ऐसे हैं, जहां इस समुदाय के वोटर बहुसंख्यक हैं और इन जिलों की करीब 58 विधानसभा क्षेत्रों हैं दबदबा है। पिछले विधानसभा में इन 58 सीटों में से 24 सीटों पर जनता दल (एस) जीती थी, जबकि 18 पर कांग्रेस और 15 पर भाजपा को जीत मिली थी।

वोक्कालिगा समुदाय की अहमियत और दबदबा इस बात से समझा जा सकता है कि राज्य के 17  मुख्यमंत्रियों में से 7 CM इसी समुदाय से रहे हैं।

32 फीसदी आबादी का गणित

कर्नाटक में लिंगायतों की आबादी करीब 17 फीसदी है और वोक्कालिगा की आबादी करीब 15 प्रतिशत है। दोनों समुदाय मिलाकर कुल 32 फीसदी हैं। चुनाव से ठीक पहले इन दोनों समुदायों का आरक्षण कोटा बढ़ाने से मैसेज गया कि सूबे की बोम्मई सरकार की निगाहें 31 फीसदी वोटरों पर हैं। राज्‍य में मुस्‍ल‍िमों की आबादी 13 फीसदी ही है। और ये बीजेपी के परंपरागत वोटर्स भी नहीं हैं। ऐसे में बोम्‍मई सरकार का आरक्षण पर चला दावं बड़ी चुनावी चाल समझी जा रही है।