Budget 2023: वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (Finance Minister Nirmala Sitharaman) मोदी सरकार (Narendra Modi Government) के दूसरे कार्यकाल का आखिरी पूर्ण बजट (Union Budget 2023) एक फरवरी को पेश करेंगी। बजट का नाम आते आम लोगों के दिमाग में सबसे पहले टैक्स और टैक्स स्लैब (Income Tax Slab) आता है। आम नागरिक मुख्य तौर पर टैक्स स्लैब में होने वाले बदलावों पर नजर रखते हैं।

बीते कुछ बजट सत्रों में टैक्स स्लैब में कोई बदलाव नहीं हुआ है। हालांकि इस बजट को लेकर ऐसी उम्मीद जताई जा रही है कि सरकार टैक्स स्लैब में कुछ बदलाव कर आम लोगों को राहत दे सकती है।

आजादी के बाद कई बार टैक्स स्लैब में बदलाव हुए हैं। आइए जानते हैं भारत के पहले बजट से लेकर अब तक कितनी बार और कब-कब टैक्स स्लैब में बदलाव हुए।

भारत का पहला बजट और इनकम टैक्स

ब्रिटिश इंडिया का पहला बजट 18 फरवरी, 1860 में सर जेम्स विल्सन ने पेश किया था। विल्सन अपने बजट के जरिए भारतीयों पर तीन तरह का टैक्स लादना चाहते थे- इनकम टैक्स, लाइसेंस टैक्स और तंबाकू ड्यूटी। लेकिन भारत के गवर्नर-जनरल चार्ल्स कैनिंग की मांग पर लाइसेंस टैक्स और तंबाकू ड्यूटी को लागू नहीं किया गया। इस तरह भारत में इनकम टैक्स की शुरुआत हुई।

आजाद भारत का पहला बजट

स्वतंत्र भारत का पहला बजट देश के पहले वित्त मंत्री आर. के. शनमुखम चेट्टी ने 26 नवंबर, 1947 को पेश किया था। वह अंतरिम बजट था। इस बजट में कोई नया टैक्स या टैक्स स्लैब पेश नहीं किया गया था क्योंकि अगला बजट (1948-49) सिर्फ 95 दिन बाद पेश किया जाना था।

टैक्स स्लैब में पहला बदलाव (साल 1949-50)

टैक्स स्लैब में पहला बदलाव बजट सत्र 1949-50 में हुआ था। तब वित्त मंत्री जॉन मथाई थे। उस वक्त भारत में 10,000 रुपये तक की आमदनी पर 1 आना टैक्स देना होता था। मथाई ने 1 आने के टैक्स में से एक चौथाई हिस्से की कटौती कर दी। यह पहला स्लैब था। दूसरे स्लैब में 10,000 रुपये से अधिक की आमदनी वालों को रखा गया था। 10,000 रुपये से अधिक की आमदनी वालों को 2 आना टैक्स देना होता था, जिसे घटाकर मथाई ने 1.9 आना कर दिया। (एक अना भारत और पाकिस्तान में पहले उपयोग की जाने वाली एक मुद्रा इकाई थी। एक रुपये का 16वां हिस्सा ( 1/16) एक आना होता था। इसे 4 पैसे या 12 पाई में विभाजित किया गया था, इस प्रकार एक रुपये में 64 पैसे और 192 पाई थे)।

टैक्स स्लैब में दूसरा बदलाव (साल 1974-75)

टैक्स स्लैब में दूसरा बड़ा बदलाव बजट सत्र 1974-75 में हुआ। तब वित्त मंत्री यशवंत राव चव्हाण थे। उन्होंने मैक्सिमम मार्जिनल रेट को 97.75% से घटाकर 75% कर दिया था। पर्सनल इनकम पर लगने वाले टैक्स को भी उन्होंने कम किया था। एक साल में 6000 रुपये तक कमाने वालों को उन्होंने इनकम टैक्स से बाहर रखा था। उन्होंने सभी कैटेगरी के लिए सरचार्ज रेट एक बराबर 10% कर दिया था।

दूसरी तरफ टॉप टैक्स स्लैब पर उन्होंने इनकम टैक्स और सरचार्ज मिलाकर कुल 77% टैक्स कर लगा दिया था। तत्कालीन वित्त मंत्री यशवंत चव्हाण ने वेल्थ टैक्स भी बढ़ा दिया था।

टैक्स स्लैब को आठ से किया गया चार (साल 1985-86)

साल 1985-86 का बजट तत्कालीन वित्त मंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने पेश किया था। उन्होंने टैक्स स्लैब की संख्या आठ से घटाकर चार कर दी थी। उन्होंने पर्सनल इनकम पर मैक्सिमम मार्जिनल रेट को 61.875% से घटाकर 50% कर दिया था। वी.पी. सिंह ने 18,000 रुपये से कम आय वालों को इनकम टैक्स से बाहर रखा था।

18001 रुपये से 25000 रुपये की आमदनी पर 25%, 25001 रुपये से 50000 रुपये की आमदनी पर 30%, 50,001 रुपये से 1 लाख रुपये की आमदनी पर 40% और 1 लाख रुपये से अधिक की आय पर यह 50% टैक्स की व्यवस्था की गई थी।

वित्त मंत्री मनमोहन सिंह का बजट (साल 1992-93)

1992-93 के बजट की छाप भारत की अर्थव्यवस्था पर आज तक दिख रही है। उस बजट को तत्कालीन वित्त मंत्री मनमोहन सिंह ने पेश किया था। मनमोहन सिंह ने स्लैब की संख्या घटाकर तीन कर दी थी।

सबसे पहले स्लैब में 30000 रुपये से 50000 रुपये तक की आमदनी वालों को रखा गया था। पहले स्लैब पर 20% का टैक्स तय किया गया था। दूसरे स्लैब में 50,000 रुपये से 1 लाख रुपये तक की आमदनी वालों को रखा गया था और तीसरे स्लैब में 1 लाख रुपये से अधिक आय वालों को रखा गया था। दूसरे और तीसरे स्लैब के लिए टैक्स क्रमशः 30% और 40% तय किया गया था।

दो साल बाद फिर बदला टैक्स स्लैब (साल 1994-95)

दो साल बाद बजट सत्र 1994-95 में एक बार फिर टैक्स स्लैब में बदलाव हुआ। हालांकि टैक्स की दरों में कोई चेंज नहीं किया गया। इस बजट को भी मनमोहन सिंह ने ही पेश किया था। पहले स्लैब में 35000 रुपये से 60000 की आमदनी को रखा गया। दूसरे स्लैब में 60000 रुपये से 1.2 लाख रुपये वालों को रखा गया। तीसरे स्लैब में 1.2 लाख रुपये से अधिक वालों को रखा गया। पहले, दूसरे और तीसरे स्लैब के लिए टैक्स रेट क्रमशः 20%, 30% और 60% तय किया गया था।

पी. चिदंबरम ने किया बदलाव (साल 1997-98)

वी.पी. सिंह और मनमोहन सिंह ने अपने बजट में स्लैब की संख्या में कटौती की थी। यह पी. चिदंबरम ही थें, जिन्होंने ‘ड्रीम बजट’ पेश किया था। उन्होंने 15, 30 और 40 प्रतिशत की प्रचलित दरों को 10, 20 और 30 प्रतिशत से बदल दिया था।

पहले स्लैब में 40000 रुपये से 60000 रुपये तक की कमाई करने वालों को रखा गया। दूसरे स्लैब में 60000 से 1.5 लाख रुपये तक की कमाई वालों को रखा गया। तीसरे स्लैब में 1.5 लाख रुपये से अधिक कमाई वालों को रखा गया। तीनों स्लैब के लिए टैक्स की दरें क्रमशः 10, 20 और 30 प्रतिशत तय की गई थी।

इसके अलावा यह भी घोषणा की गई थी कि 75,000 रुपये प्रति वर्ष वेतन पाने वाले और PF में 10 प्रतिशत योगदान करने वाले सभी कर्मचारियों को इनकम टैक्स नहीं देना होगा।

सालाना एक लाख कमाने वालों पर टैक्स नहीं (साल 2005-06)

लगभग 10 वर्षों के बाद एक बार फिर पी. चिदंबरम थे टैक्स ब्रैकेट्स में कुछ महत्वपूर्ण बदलावों की घोषणा की थी। उन्होंने बजट सत्र 2005-06 में घोषणा की थी कि 1 लाख रुपये तक की आय वालों को कोई कर (टैक्स) नहीं देना होगा। 1 लाख रुपये से 1.5 लाख रुपये तक की आय पर 10 प्रतिशत, 1.5 लाख रुपये से 2.5 लाख रुपये तक की आय पर 20 प्रतिशत और 2.5 लाख रुपये से अधिक कमाई करने वालों को 30 प्रतिशत टैक्स देना होगा।

प्रणब मुखर्जी ने बदला टैक्स स्लैब (साल 2010-11)

पांच साल के अंतराल के बाद प्रणब मुखर्जी ने इनकम स्लैब में बदलाव किया। उनकी घोषणा के मुताबिक, एक साल में 1.6 लाख रुपये तक की कमाई करने वालों को इनकम टैक्स से बाहर रखा गया था। सालाना 1.6 लाख रुपये से 5 लाख रुपये की कमाई करने वालों को पहले स्लैब में रखा गया था। दूसरे स्लैब में 5 साल रुपये से 8 लाख रुपये कमाने वालों को रखा गया था। तीसरे स्लैब में 8 लाख रुपये से अधिक कमाने वालों को रखा गया था। तीनों स्लैब के लिए टैक्स क्रमशः 10, 20 और 30 प्रतिशत तय की गई थी।

प्रणब मुखर्जी ने फिर बदला टैक्स स्लैब (साल 2012-13)

बजट सत्र 2012-13 में तत्कालीन वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने सालाना 2 लाख रुपये कमाने वालों को इनकम टैक्स से बाहर कर दिया था। इसके अलावा टैक्स स्लैब में भी बदलाव किया। उन्होंने 2 लाख रुपये से 5 लाख रुपये की कमाई करने वालों को पहले स्लैब में, 5 लाख रुपये से 10 लाख रुपये तक की आय वालों को दूसरे स्लैब में और 10 लाख से अधिक आय वालों को तीसरे स्लैब में रखा था। तीनों स्लैब के लिए टैक्स की दरें क्रमशः 10, 20 और 30 प्रतिशत तय की गई थी।

मोदी सरकार का पहला बजट (साल 2014-15)

मोदी सरकार ने अपने पहले ही बजट में वित्त विधेयक-2015 पेश किया था। उस विधेयक के पारित होने के बाद वेल्थ टैक्स खत्म हो गया था। हालांकि तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली सालाना 1 करोड़ रुपये से अधिक कमाने वालों पर 2 फीसद का सरचार्ज लगा दिया था।

अरुण जेटली ने कम किया टैक्स (साल 2017-18)

बजट सत्र 2017-18 में तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने 2.5 लाख से 5 लाख रुपये तक कमाने वालों पर टैक्स कम कर दिया था। पहले सालाना 2.5 लाख से 5 लाख रुपये कमाने वालों को 10 फीसद टैक्स देना होता था। अरुण जेटली ने पांच प्रतिशत कर दिया। अरुण जेटली ने सालाना 3 लाख रुपये कमाने वालों को पर इनकम टैक्स का बोझ शून्य कर दिया था।

साल 2020-21 के बजट में हुए थे बड़े बदलाव

वित्त मंत्री निर्माला सीतारमण ने बजट सत्र 2020-21 में टैक्स स्लैब में बड़े बदलाव किए थे। वित्त मंत्री ने घोषणा की थी कि साल में 2.5 लाख रुपये कमाने वालों को कोई टैक्स नहीं देना होगा।

2.5 लाख रु से 5 लाख रु तक की कमाई पर5%
5 लाख रु से 7.5 लाख रु तक की कमाई पर10%
7.5 लाख रु से 10 लाख रु तक की कमाई पर15%
10 लाख रु से 12.5 लाख रु तक की कमाई पर20%
12.5 लाख रु से 15 लाख रु तक की कमाई पर25%
15 लाख रु और उससे अधिक की कमाई पर30%

अब Union Budget 2023 से उम्मीद जताई जा रही है कि सरकार 5 लाख रुपये तक की इनकम को टैक्स फ्री करेगी।