सुदीप्तो सेन के निर्देशन में बनी फिल्म ‘द केरला स्टोरी’ ज्यादातर समीक्षकों द्वारा खारिज किए जाने के बावजूद अच्छी कमाई कर रही है। दूसरी तरफ फिल्म को राजनीतिक समर्थन और विरोध का भी सामना करना पड़ रहा है। केरल हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ याचिकाकर्ता फिल्म पर बैन लगवाने सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए हैं। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया ने सुनवाई की तारीख 15 मई तक की है।

कहीं टैक्स फ्री, कहीं बैन

मध्य प्रदेश सरकार के बाद उत्तर प्रदेश की सरकार ने भी ‘द केरल स्टोरी’ को टैक्स फ्री कर दिया है। वहीं पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सरकार ने फिल्म पर बैन लगाने का फैसला किया है। ममता बनर्जी ने कहा है, “नफरत और हिंसा की किसी भी घटना से बचने के लिए विवादास्पद फिल्म ‘द केरल स्टोरी’ पर प्रतिबंध लगाने का फैसला किया गया है। फिल्म में तोड़-मरोड़ कर पेश की गई कहानी है।”

कुछ इसी तरह की प्रतिक्रिया केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन की भी थी। उन्होंने फिल्म को झूठ का पुलिंदा बताते हुए कहा था, “पहली नज़र में ऐसा प्रतीत होता है कि फिल्म का मकसद राज्य के खिलाफ प्रोपेगेंडा करना और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करना है।” हालांकि केरल सरकार ने फिल्म पर बैन नहीं लगाया है।

तमिलनाडु सरकार ने भी फिल्म पर बैन नहीं लगाया है। लेकिन मल्टीप्लेक्सों ने रविवार को स्क्रीनिंग बंद करने का फैसला किया। 5 मई को फिल्म रिलीज होने के बाद से ही राज्य में मुस्लिम पॉलिटिकल ग्रुप और अन्य राजनीतिक दल विरोध प्रदर्शन कर रहे थे। हालांकि तमिलनाडु सरकार ने फिल्म की रिलीज के लिए पुलिस की सुरक्षा दी थी। लेकिन विरोध प्रदर्शन जारी रहने के बाद मल्टीप्लेक्सों ने फिल्म को नहीं दिखाने का निर्णय लिया है।

क्या राज्य सरकार फिल्म पर बैन लगा सकती है?

गुरु नानक देव के जीवन और शिक्षाओं पर आधारित फिल्म ‘नानक शाह फकीर’ पर प्रतिबंध लगाने की मांग सुप्रीम कोर्ट में उठी थी। साल 2018 में तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, जस्टिस ए.एम खानविलकर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने की बेंच ने फिल्म पर रोक लगाने की मांग को ठुकराते हुए कहा था, “संविधान फिल्म निर्माताओं के फिल्म बनाने के अधिकार की तब तक रक्षा करता है जब तक कि उनकी फिल्म धर्मनिरपेक्षता पर चोट नहीं करती है।”

नानक शाह फकीर फिल्म स्तंभकार और लेखक हरिंदर सिक्का ने बनाई थी। इसे गुरु नानक देव के जीवन पर बनी पहली फिल्म बताया जाता है। CBFC (सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन) बोर्ड से मंजूरी मिलने के बाद यह फिल्म पहली बार 2015 में रिलीज हुई थी। तब इसे अकाल तख्त से हरी झंडी भी मिल गई थी। रिलीज होने के तुरंत बाद, कई सिख निकायों ने फिल्म पर आपत्ति जताई, शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने हस्तक्षेप किया और प्रतिबंध लगाने की मांग की।

2011 में सुप्रीम कोर्ट भी दिखा चुका है रास्ता

साल 2011 में प्रकाश झा की फिल्म आरक्षण का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था। दरअसल, उत्तर प्रदेश की मायावती सरकार ने फिल्म पर दो महीने के लिए रोक लगा दी थी। उनकी दलील थी कि आरक्षण एक संवेदनशील मुद्दा है। अगर राज्य में फिल्म को दिखाया गया तो कानून-व्यवस्था बिगड़ सकती है।

सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस एम के शर्मा और जस्टिस ए आर दवे की बेंच ने राज्य सरकार की दलील को खारिज करते हुए कहा था कि “कानून-व्यवस्था बिगड़ने की आशंका का हवाला देकर राज्य सरकारें ऐसी फिल्मों पर प्रतिबंध नहीं लगा सकती हैं, जिसे CBFC ने सार्वजनिक स्क्रीनिंग की मंजूरी दे दी है। कानून व्यवस्था बनाए रखना राज्य का कर्तव्य है।”

CBFC क्या है?

किसी भी फिल्म, शार्ट फिल्म या ऐड फिल्म के पब्लिक रिलीज से पहले  CBFC (सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन) से सर्टिफिकेट लेना अनिवार्य होता है। पहले इसका नाम सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सेंसर्स था। 1983 में सिनेमेटोग्राफ एक्ट में बदलाव के साथ बोर्ड का नाम भी बदल दिया गया।

CBFC के बोर्ड और एडवाइजरी पैनल में सूचना और प्रसारण मंत्रालय क्रमश: 25 और 60 मेंबर नियुक्त करता है। CBFC के चेयरपर्सन और बोर्ड के सदस्यों का कार्यकाल 3 साल का होता है। एडवाइजरी पैनल के मेंबर्स 2 साल के लिए नियुक्त किए जाते हैं। बोर्ड और एडवाइजरी पैनल के मेंबर्स के देखने के बाद ही CBFC सर्टिफिकेट जारी करता है।

इन फिल्मों पर भी लगा चुका है बैन?

टैंगो चार्ली (2005): मणि शंकर द्वारा निर्देशित वॉर फिल्म को बोडो समुदाय को बदनाम करने के आरोप में असम में प्रतिबंधित कर दिया गया था। अजय देवगन और बॉबी देओल अभिनीत इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर 7 करोड़ रुपये कमाए थे।

परज़ानिया (2005): निर्देशक राहुल ढोलकिया की फिल्म को गुजरात में एक अनौपचारिक प्रतिबंध का सामना करना पड़ा था। गुजरात के मल्टीप्लेक्स मालिकों ने बजरंग दल के कार्यकर्ताओं और फिल्म के निर्देशक के साथ एक बैठक के बाद परजानिया को नहीं दिखाने का फैसला किया था। तब राहुल ने कहा था राज्य सरकार में फिल्म पर औपचारिक रूप से प्रतिबंध लगाने की हिम्मत नहीं है।

बजरंग दल के कार्यकर्ता बाबू बजरंगी ने इस फिल्म को लेकर धमकी दी थी। बजरंगी ने कहा कि उन्होंने मल्टीप्लेक्स मालिकों और ढोलकिया से अपने समूह के लिए एक विशेष शो आयोजित करने के लिए कहा था, लेकिन निर्देशक ने मना कर दिया। निर्देशक ने बाबू बजरंगी का जिक्र करते हुए कहा था, “मैं हैरान हूं कि मल्टीप्लेक्स मालिक एक व्यक्ति की धमकी से इतने हिल गए हैं।”

यह फिल्म अजहर मोदी नाम के एक पारसी लड़के की सच्ची कहानी पर आधारित बताई जा गई थी, जो गुजरात दंगों के दौरान गुलबर्ग सोसाइटी से लापता हो गया था। नसीरुद्दीन शाह और सारिका अभिनीत इस फिल्म का बॉक्स ऑफिस कलेक्शन में 76 लाख रुपये था।

फना (2006): राज्य सरकार के खिलाफ मुख्य अभिनेता आमिर खान की टिप्पणियों के बाद गुजरात में फना पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। हालांकि यह सरकारी बैन नहीं था बल्कि ऐसा सिनेमेटोग्राफी एग्जिबिटर्स एसोसिएशन ने तय किया था। इस फिल्म में आमिर खान के साथ काजोल मुख्य भूमिका में थीं। फिल्म का बॉक्स ऑफिस कलेक्शन 51 करोड़ रुपये था।

फिराक (2008): नंदिता दास के निर्देशन में बनी पहली फिल्म फिराक गुजरात के कई हिस्सों में रिलीज़ नहीं हुई थी। फिल्म में कथित तौर पर गुजरात दंगों की विभीषिका को दिखाया गाय था। फिल्म का बॉक्स ऑफिस कलेक्शन 1 करोड़ रुपये से अधिक था।

‘द केरल स्टोरी’ का मामला भी जा चुका है कोर्ट

‘द केरल स्टोरी’ को पश्चिम बंगाल में बैन किए जाने की घोषणा के बाद निर्माता विपुल अमृतलाल शाह ने मीडिया से बातचीत में कहा है कि अगर ममता बनर्जी ने ऐसा किया है तो हम कानूनी कार्रवाई करेंगे। कानून के प्रावधानों के तहत जो भी संभव होगा, वह करेंगे। हम लड़ेंगे।

रिलीज से पहले एडवोकेट निजाम पाशा इस फिल्म पर बैन लगवाने सुप्रीम कोर्ट गए थे। उनका तर्क था कि फिल्म में हेट स्पीच को प्रमोट किया गया है। सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल भी ऐसा ही चाहते थे लेकिन उच्चतम न्यायालय ने उन्हें हाईकोर्ट जाने या सीजेआई के सामने मेंशन करने की सलाह दी गई।

बैन की मांग केरल हाईकोर्ट में भी उठाई गई लेकिन उच्च न्यायालय ने इससे साफ इनकार कर दिया था। अब एक बार फिर याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने जल्द से जल्द सुनवाई की मांग की है। सीजेआई चंद्रचूड़ 15 मई को सुनवाई के लिए तैयार हो गए हैं।

क्या टैक्स फ्री करने से सस्ती हो जाती है टिकट?

हां! टैक्स फ्री होने के बाद फिल्म की टिकट थोड़ी सस्ती हो जाती है। फिल्म की टिकट पर एंटरटेनमेंट टैक्स लगता है, जिसे जीएसटी के जरिए वसूला जाता है। 100 रुपये से कम की टिकट पर यह टैक्स 12 प्रतिशत होता है और 100 रुपये से ज्यादा की टिकट पर 18 प्रतिशत होता है। टैक्स का 50 प्रतिशत CGST के माध्यम से केंद्र सरकार को जाता है और बचा हुआ 50 प्रतिशत SGST के रास्ते राज्य सरकार की झोली में गिरता है। उदाहरण से समझे तों- अगर फिल्म की टिकट का बेस प्राइज 400 रुपये है तो 18 प्रतिशत टैक्स के साथ की उसकी कीमत 472 रुपये हो जाएगी। अब अगर किसी राज्य की सरकार फिल्म को टैक्स फ्री करने की घोषणा करती है, इसका मतलब कि वह अपने हिस्सा का टैक्स नहीं लेगी। यानी टिकट के रेट में जुड़े टैक्स का आधा नहीं लगेगा। इसका मतलब 472 की टिकट 736 में उपलब्ध होगी।