30 जनवरी 1948 को चार बजे सरदार वल्लभभाई पटेल अपनी पुत्री मनीबेन के साथ गांधी से मिलने बिड़ला हाउस पहुंचे थे। जब पांच बजकर 10 मिनट होने को थे, तब गांधी प्रार्थना सभा में जाने के लिए उठे। वह बिरला भवन के लॉन में पहुंचे ही थे कि भीड़ से एक आदमी उनके पैर छूने के लिए नीचे झुका और अगले ही पल उनके सीने में तीन गोलियां दाग दी।

Continue reading this story with Jansatta premium subscription
Already a subscriber? Sign in

थोड़ी ही देर में यह स्पष्ट हो गया कि हत्या को अंजाम देने वाला व्यक्ति पुणे का एक मराठी भाषी ब्राह्मण है। उसका नाम नाथूराम गोडसे है। 37 साल का गोडसे उस दैनिक अखबार हिंदू राष्ट्र का संपादक था, जिसके मुख्य पृष्ठ के सबसे ऊपर विनायक दामोदर सावरकर का चित्र छपा होता था।

गांधी हत्या और सावरकर

गांधी हत्या मामले में नाथूराम गोडसे के साथ आठ अन्य को भी अभियुक्त बनाया गया था। इसमें हिंदू महासभा के संस्थापक विनायक दामोदर सावरकर का नाम भी शामिल था। गांधी हत्या के छठे दिन सावरकर को हत्या के षड्यंत्र में शामिल होने के लिए मुंबई से गिरफ्तार किया गया था। 10 फरवरी 1949 को अदालत ने अपने फैसले में सात लोगों को सजा सुनाई। नाथूराम गोडसे और नारायण आप्टे को फांसी की सजा हुई। वहीं विष्णु करकरे, मदनलाल पाहवा, शंकर किस्टया, गोपाल गोडसे और दत्तात्रेय परचुरे को आजीवन कैद की सजा हुई। जज ने सावरकर को ‘स्वतंत्र साक्ष्यों’ के अभाव में छोड़ दिया।

हालांकि फैसला सुनाए जाने के एक साल पहले तक देश तत्कालीन गृहमंत्री भी गांधी हत्या के षड्यंत्र में सावरकर को संलिप्त मान रहे थे। 26 फरवरी 1948 को नेहरू को लिखे पत्र में तत्कालीन गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल प्रथम प्रधानमंत्री को बताते हैं कि ”गवाहियों से यह स्पष्ट उभरकर आ रहा है कि आरएसएस इसमें बिल्कुल भी शामिल नहीं था। सावरकर के नेतृत्व में हिंदू महासभा के एक कट्टरपंथी धड़े ने गांधी-हत्या का षड्यंत्र रचा और इसे अंजाम दिया।”

महात्मा गांधी की हत्या के मामले में चीफ इन्वेस्टिगेशन ऑफिसर जमशेद दोराब नागरवाला के हवाले से महात्मा गांधी के परपोते तुषार गांधी ने अपनी किताब ‘लेट्स किल गांधी’ के पेज नंबर 691 पर लिखा है कि ”मैं इस बात से पूरी तरह सहमत हूँ कि सावरकर की मदद और भागीदारी के बिना गांधी की हत्या की साजिश कभी सफल नहीं होती”

गोडसे और सावरकर

1910 में पैदा हुआ गोडसे एक मामूली मध्यमवर्गीय परिवार से थे। उसके पिता विनायक एक पोस्टमास्टर थे, जिनका समय-समय पर ट्रांसफर होता रहता था। वह अपनी मैट्रिक की परीक्षा में फेल हो गया था, लेकिन बाद में इतिहास और समाजशास्त्र का अध्ययन किया। वह पहली बार सावरकर से 19 वर्ष की उम्र में मिला था। ये 1929 की बात है, तब गोडसे परिवार रत्नागिरी रहने पहुंचा था और यहीं सावरकर को नजरबंद किया गया था।

पत्रकार वैभव पुरंदरे अपनी किताब ‘सावरकर : दि ट्रू स्टोरी ऑफ द फादर ऑफ दि हिंदुत्व’ में लिखते हैं कि ”सावरकर से मुलाकात गोडसे के लिए एक निर्णायक क्षण था। 1930 के दशक की शुरुआत में गोडसे आरएसएस के शुरुआती रंगरूटों में से एक बना, लेकिन 1937 में जब सावरकर राजनीति में फिर से शामिल लौटें, तो वह हिंदू महासभा में शामिल हो गया।

Mahatma Gandhi की हत्या में Savarkar का क्या रोल था, देखें वीडियो

जब सावरकर ने 1938 में हैदराबाद के निजाम के खिलाफ अपना नागरिक प्रतिरोध अभियान शुरू किया, तो गोडसे ने प्रदर्शनकारियों का नेतृत्व किया था। इस मामले में गोडसे को गिरफ्तार कर एक साल जेल में रखा गया था।”