जस्टिस अरविंद कुमार (Aravind Kumar) और राजेश बिंदल (Rajesh Bindal) को 13 फरवरी (सोमवार) को मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के जज की शपथ दिलवाई। इसके साथ ही उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीशों की संख्या कुल 34 हो गयी है। यही सुप्रीम कोर्ट का कुल स्ट्रेंथ है। पांच नए जजों- मनोज मिश्रा (Manoj Misra), पीवी संजय कुमार (P V Sanjay Kumar), पंकज मित्तल (Pankaj Mithal), अहसानुद्दीन अमानुल्लाह (Ahsanuddin Amanullah) और संजय करोल (Sanjay Karol) को बीते सोमवार को शपथ दिलाई गई थी।
जस्टिस राजेश बिंदल ने TMC सांसदों की बेल पर दिया था स्टे
इलाहाबाद हाई कोर्ट के निवर्तमान मुख्य न्यायाधीश जस्टिस राजेश बिंदल को सुप्रीम कोर्ट में बतौर न्यायाधीश नियुक्त किया गया है। राजेश बिंदल का जन्म 16 अप्रैल, 1961 को अंबाला में हुआ था। जस्टिस बिंदल ने लॉ की पढ़ाई कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से की है। राजेश बिंदल ने वकील के रूप में अपना करियर साल 1985 में शुरू किया था। 22 मार्च, 2006 को राजेश बिंदल पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत हुए थे।
पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में मतदान खत्म होने के साथ ही जस्टिस बिंदल को कलकत्ता उच्च न्यायालय के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश नियुक्त (29 अप्रैल, 2021) किया गया था। चुनाव परिणामों के बाद अदालतों में टीएमसी और केंद्र के बीच हुई खींचतान में जस्टिस बिंदल के फैसले सवालों के घेरे में आए थे।
मई में कलकत्ता हाई कोर्ट के एक सीनियर जज अरिंदम सिन्हा ने न्यायमूर्ति बिंदल सहित उच्च न्यायालय के सभी न्यायाधीशों को एक पत्र लिखा था। पत्र में नारद स्टिंग मामले में कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश के हस्तक्षेप पर सवाल उठाया गया था। दरअसल बतौर कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश जस्टिस बिंदल ने सीबीआई अदालत द्वारा चार टीएमसी नेताओं को दी गई जमानत पर रोक लगा दी थी। सितंबर 2021 में उन्हें इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में स्थानांतरित किया गया था।
जस्टिस बिंदल को दिसंबर 2020 में बहुत कम समय के लिए जम्मू और कश्मीर उच्च न्यायालय का कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश भी नियुक्त किया गया था।
जस्टिस अरविंद कुमार ने मोरबी मामले में लगाई थी फटकार
गुजरात हाई कोर्ट के 27वें मुख्य न्यायाधीश जस्टिस अरविंद कुमार को भी सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति की सिफारिश की गई थी। नियुक्ति अब पक्की हो गयी है।
साल 2009 में जस्टिस कुमार को कर्नाटक उच्च न्यायालय का अतिरिक्त न्यायाधीश नियुक्त किया गया था। अक्टूबर 2021 में उन्हें गुजरात उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया था।
अक्टूबर 2022 में उन्होंने मोरबी पुल के ढहने का स्वत: संज्ञान लिया था। उन्होंने एक वैध अनुबंध के बिना पुल के प्रबंधन के लिए एक निजी संस्था को दिए गए फेवर के लिए मोरबी नगरपालिका और राज्य सरकार को फटकार लगायी थी।
उनकी अध्यक्षता वाली एक पीठ ने Gujarat Land Grabbing (Prohibition) Act की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली लगभग 100 याचिकाओं पर दिन-प्रतिदिन सुनवाई की और राज्य सरकार को विचार करने के लिए कानून में कई संशोधनों का सुझाव दिया था।
न्यायमूर्ति कुमार के सुझाव पर ही गुजरात सरकार ने अहमदाबाद नगर निगम के सहयोग से “सिग्नल स्कूल” की शुरुआत की, ताकि भीख मांगने के काम में लगे बच्चों को बुनियादी शैक्षिक सुविधाएं प्रदान की जा सकें। सिग्नल स्कूल के लिए बसों को क्लासरूम में बदल दिया जाता था।
जस्टिस पंकज मित्तल ने हाथरस मामले में लिया था स्वत: संज्ञान
न्यायमूर्ति पंकज मित्तल राजस्थान हाई कोर्ट के 40वें मुख्य न्यायाधीश थे, अब उन्हें उन्हें शीर्ष अदालत में पदोन्नत किया गया है। जस्टिस मित्तल को 7 जुलाई, 2006 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त किया गया था।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय के एक वरिष्ठ न्यायाधीश के रूप में जस्टिस मित्तल की अगुवाई वाली एक पीठ ने साल 2020 में कथित हाथरस गैंगरेप की पीड़िता के जल्दबाजी में किए गए दाह संस्कार का स्वत: संज्ञान लिया था। केस का टाइटल था- In Re: Right to decent and dignified last rites/cremation
जस्टिस मित्तल की पीठ ने भविष्य में ऐसी घटनाओं से बचने के लिए अतिरिक्त मुख्य सचिव (गृह) को एक गाइडलाइन तैयार करने और उसका एक मसौदा कोर्ट में पेश करने का निर्देश दिया था।
4 दिसंबर 2004 को सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने जस्टिस मित्तल को जम्मू कश्मीर और लद्दाख हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्त करने की सिफारिश की। एक साल बाद अक्टूबर 2021 में उन्हें राजस्थान उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में स्थानांतरित कर दिया गया।
संजय करोल ने चुनावों में खत्म किया था OBC कोटा
सुप्रीम कोर्ट में पदोन्नत हुए जस्टिस संजय करोल, पटना हाई कोर्ट में मुख्य न्यायाधीश थे। उनका जन्म शिमला हुआ था। एक वकील के रूप में उन्होंने अपना रजिस्ट्रेशन 1986 में कराया था।
जस्टिस करोल पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली के जूनियर थे। उन्होंने लंबे दिल्ली में भी प्रैक्टिस किया है। 1998 में उन्हें हिमाचल प्रदेश का महाधिवक्ता नियुक्त किया गया था। साल 2007 में जस्टिस करोल हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किए गए।
नवंबर 2018 में उन्हें त्रिपुरा उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया और नवंबर 2019 में पटना उच्च न्यायालय में स्थानांतरित कर दिया गया।
पटना हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के रूप में जस्टिस करोल ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी दिशा-निर्देशों की धज्जियां उड़ाने के मामले में बिहार नगरपालिका चुनावों में OBC और EBC कोटे को खत्म कर दिया था। जस्टिस करोल की अगुवाई वाली पीठ ने स्वत: संज्ञान लेते हुए राज्य सरकार से बिहार विद्यापीठ परिसर को डॉ राजेंद्र प्रसाद के लिए एक संग्रहालय बनाने को कहा था।
जस्टिस पीवी संजय कुमार के पिता थे महाधिवक्ता
जस्टिस पीवी संजय कुमार सुप्रीम कोर्ट में पदोन्नत किए जाने से ठीक पहले मणिपुर हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश थे। जस्टिस कुमार का जन्म 14 अगस्त 1963 को हैदराबाद में हुआ था। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक किया है। जस्टिस कुमार के पिता पी रामचंद्र रेड्डी 1969 और 1982 के बीच आंध्र प्रदेश के महाधिवक्ता थे।
जस्टिस कुमार को साल 2008 में मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया था। वह तेलंगाना उच्च न्यायालय के सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश थे, जब उन्हें पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय में स्थानांतरित किया गया था। साल 2021 में जस्टिस कुमार को मणिपुर उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया था।
संविधान विशेषज्ञ हैं न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह
पटना हाई कोर्ट के जज न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह को भी सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीश के रूप में नियुक्त करने की सिफारिश की गई थी। जस्टिस अमानुल्ला पटना हाई कोर्ट में साल 1991 से प्रैक्टिस कर रहे हैं। वह संवैधानिक और सेवा कानूनों के विशेषज्ञ माने जाते हैं।
न्यायमूर्ति अमानुल्लाह को 20 जून, 2011 को पटना उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया था। फिर 10 अक्टूबर, 2021 को आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय में ट्रांसफर कर दिया गया था। 20 जून, 2022 को उन्हें पटना उच्च न्यायालय में वापस स्थानांतरित कर दिया गया था।
निठारी मामले की भी अध्यक्षता कर चुके हैं जस्टिस मनोज मिश्रा
जस्टिस मनोज मिश्रा ने साल 1988 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन की डिग्री ली थी। 12 दिसंबर, 1988 को उन्होंने एक वकील के रूप में अपना रजिस्ट्रेशन कराया था।
मनोज मिश्रा इलाहाबाद हाई कोर्ट में दीवानी, राजस्व, आपराधिक और संवैधानिक मामलों में प्रैक्टिस कर चुके हैं। मनोज मिश्रा को इलाहाबाद हाई कोर्ट में 21 नवंबर, 2011 को अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया। 2013 में उन्होंने स्थायी न्यायाधीश के रूप में शपथ ली। अब करीब एक दशक बाद 6 फरवरी, 2023 को जस्टिस मिश्रा को सर्वोच्च न्यायालय में पदोन्नत किया गया है।
साल 2022 में जस्टिस मिश्रा ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में “उपेंद्र बनाम यूपी राज्य” जैसे महत्वपूर्ण मामले की अध्यक्षता की थी। उस मामले में अदालत ने एक 75 वर्षीय महिला के साथ बलात्कार और हत्या के आरोपी व्यक्ति को बरी कर दिया था। आरोपी को बरी करने का कारण उचित और वैज्ञानिक जांच की कमी को बताया गया था।
इसी तरह “सत्य प्रकाश बनाम यूपी राज्य” में उन्होंने यह तर्क देते हुए दोषी के आजीवन कारावास को रद्द कर दिया कि एक अकेले चश्मदीद गवाह की गवाही सच्ची नहीं है।
जस्टिस मिश्रा ने निठारी मामले की भी अध्यक्षता की, जिसे “सुरेंद्र कोली बनाम स्टेट थ्रू सीबीआई” के रूप में भी जाना जाता है। उस मामले की सुनवाई के दौरान बेंच ने सीबीआई से सवाल किया था कि जवाब देने या पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट तैयार करने में इतनी देरी क्यों हुई। पीठ ने कहा था, ‘सीबीआई की ओर से यह लापरवाह रवैया स्पष्ट रूप से अस्वीकार्य है।’