आदिवासी नेता, स्वतंत्रता सेनानी एवं लोकनायक बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर 1875 को बंगाल प्रेसीडेंसी के उलिहातू में हुआ था, जो अब झारखंड के खूंटी जिले में है। झारखंड (Jharkhand) में धरती आबा के नाम से मशहूर मुंडा का निधन 25 साल की उम्र में एक सदी से पहले हो गया था। लेकिन उनकी महत्वपूर्ण विरासत आज भी जीवित है।

22 साल पहले 15 नवंबर 2000 को मुंडा की जयंती (Birsa Munda Jayanti 2022) के मौके पर ही झारखंड राज्य का गठन किया गया था। हर वर्ष 15 नवंबर को झारखंड की राजधानी रांची के कोकर में मुंडा की समाधि स्थल पर एक आधिकारिक समारोह का आयोजन किया जाता है।

जब बिरसा मुंडा बने थे बिरसा डेविड

बिरसा मुंडा (Who Is Birsa Munda) की प्रारंभिक शिक्षा जयपाल नाग (शिक्षक) के मार्गदर्शन में सलगा में प्राप्त की थी। मुंडा ने अपना बचपन ईसाई मिशनरियों के बीच बिताया, जिनका मुख्य मिशन अधिक से अधिक आदिवासी लोगों का धर्मांतरण करना होता था। बिरसा (Birsa Munda Jayanti) के शिक्षक ने उन्हें जर्मन मिशन स्कूल में दाखिला लेने की सलाह दी थी। वहां भर्ती के लिए उन्हें ईसाई धर्म में परिवर्तित होना पड़ा था। धर्मांतरण के उपरांत पहले उनका नाम बिरसा डेविड और बाद में बिरसा दाऊद कर दिया गया।

बिरसा ने की बिरसाइत धर्म की स्थापना

कुछ साल पढ़ाई करने के बाद बिरसा ने जर्मन मिशन स्कूल छोड़ दिया। 1886 से 1890 के बीच वह चाईबासा में सरदारों के बीच रहे। सरदार अंग्रेजी सरकार से वन संबंधी अधिकारों की मांग करते थे। युवा बिरसा के मन पर उनके आचार-व्यवहार का गहरा प्रभाव पड़ा। वह जल्द ही मिशनरी विरोधी और सरकार विरोधी कार्यक्रम में हिस्सा लेने लगे। बिरसा को अब अपने आदिवासी समाज की चिंता सताने लगी थी। वह अपने समाज में सुधार लाना चाहते थे। उन्होंने आदिवासियों से जादू-टोना में विश्वास न करने का आग्रह किया। साथ ही शराब से दूर रहने का भी संदेश दिया।

इसी दौरान बिरसा मुंडा ने बिरसाइत नामक एक नए धर्म की स्थापना की। बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, बिरसाइत धर्म का पालन करना बहुत कठिन होता है। इस धर्म के अनुयायी मांस, मदिरा, खैनी, बीड़ी को हाथ तक नहीं लगा सकते। रिपोर्ट में बिरसाइत धर्म को मानने वाला एक आदिवासी युवा बताता है कि ”हमारे धर्म में पूजा के लिए फूल, प्रसाद, दक्षिणा, अगरबत्ती, चंदा आदि किसी भी चीज के इस्तेमाल की सख्त मनाही है। हम केवल प्रकृति की पूजा करते हैं, गीत गाते हैं, जनेऊ पहनते हैं।”

अंग्रेजों के खिलाफ किया विद्रोह

बिरसा मुंडा ने अपने धर्म के जरिए उरांव और मुंडा समुदाय के बीच गहरी पैठ बना ली थी। उन्होंने अपने धर्म के माध्यम से अंग्रेजी सरकार के खिलाफ अभियान चलाना शुरु कर दिया। हजारों आदिवासी लोगों को साथ लाकर गुरिल्ला सेना बनाया। ब्रिटिश हुकूमत को चुनौती देने वाला उनका नारा आज भी ओडिशा, बिहार, पश्चिम बंगाल और मध्य प्रदेश राज्यों में याद किया जाता है।

इसके बाद बिरसा ने मिशनरी और अंग्रेजी सरकार के खिलाफ ‘उलगुलान’ नामक आंदोलन शुरू किया। 3 मार्च 1900 को ब्रिटिश पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया था और उसी वर्ष 9 जून को रांची में उनकी मृत्यु हो गई थी। मृत्यु के वक्त उनकी उम्र मात्र 25 वर्ष थी।

झारखंड और बिरसा मुंडा

झारखंड में बिरसा के नाम पर कई स्मारक और संस्थान हैं, जैसे बिरसा मुंडा एयरपोर्ट रांची, बिरसा इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी सिंदरी, बिरसा मुंडा आदिवासी विश्वविद्यालय, बिरसा कृषि विश्वविद्यालय, बिरसा कॉलेज खूंटी, बिरसा मुंडा एथलेटिक्स स्टेडियम और यहां तक कि बिरसा मुंडा सेंट्रल जेल भी है। बिरसा मुंडा की मौत अंग्रेजों के जेल में ही हुई थी।

बिरसा मुंडा एकमात्र ऐसे आदिवासी नेता हैं जिनकी तस्वीर संसद के सेंट्रल हॉल में टंगी है। 16 अक्टूबर 1989 को लोकसभा अध्यक्ष डॉ बलराम जाखड़ ने उनके चित्र का अनावरण किया था।

रेमन मैग्सेसे पुरस्कार विजेता और एक्टिविस्ट महाश्वेता देवी का ऐतिहासिक उपन्यास अरण्य अधिकार मुंडा के जीवन और 19वीं के अंत में ब्रिटिश राज के खिलाफ उनके विद्रोह पर आधारित है। उन्हें अपनी इस रचना के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला था। भारतीय सेना की बिहार रेजिमेंट का युद्धघोष है- बिरसा मुंडा की जय