भारतीय सेना (Indian Army) की एक अदालत ने साल 2020 में जम्मू-कश्मीर के शोपियां जिले में हुए एनकाउंटर के मामले में सेना के कैप्टन को कोर्ट मार्शल के बाद आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। नॉर्दन आर्मी कमांडर की मंजूरी के बाद सजा फाइनल हो जाएगी। कैप्टन भूपेंद्र सिंह (Capt Bhoopendra Singh) का कोर्ट ऑफ इंक्वायरी (CoI) के बाद कोर्ट मार्शल किया गया था। जांच के दौरान जो सबूत मिले, उससे साबित हुआ कि कैप्टन भूपेंद्र के नेतृत्व में उनके सैनिकों ने अपने विशेष अधिकार का बेजा इस्तेमाल किया था।
क्या है पूरा मामला?
18 जुलाई 2020 को कैप्टन भूपेंद्र की अगुवाई वाले सैनिकों ने इम्तियाज अहमद, अबरार अहमद और मोहम्मद इबरार को आतंकवादी बताते हुए उनका एनकाउंटर किया था। बाद में जम्मू कश्मीर पुलिस ने इस मामले में एसआईटी का गठन किया और कैप्टन भूपेंद्र समेत तीन लोगों को एनकाउंटर में दोषी करार दिया।
किसी सैनिक के ऊपर आरोप लगा तो क्या होता है?
सेना में जब किसी सैन्यकर्मी के उपर कोई आरोप लगता है तो सबसे पहले उसकी जांच के लिए सीओआई (CoI) यानी कोर्ट ऑफ इंक्वायरी शुरू होती है। यह ठीक इसी तरीके से है जैसे सिविल पुलिस में एफआईआर दर्ज होती है। कोर्ट ऑफ इंक्वायरी में पूरे मामले की जांच होती है, लेकिन कोई सजा नहीं दी जा सकती है। इंक्वायरी के दौरान पूरे मामले के गवाहों के बयान दर्ज होते हैं। यह ठीक इसी तरीके से है जैसे सिविल पुलिस सीआरपीसी के सेक्शन 161 के तहत स्टेटमेंट रिकॉर्ड करती है।
कोर्ट ऑफ इंक्वायरी के बाद कोर्ट मार्शल
कोर्ट ऑफ इंक्वायरी (CoI) के आधार पर ही जिस सैन्यकर्मी पर आरोप है, उसके कमांडिंग ऑफिसर एक चार्जशीट तैयार करते हैं। यह प्रक्रिया पूरी होने के बाद जनरल कोर्ट मार्शल (GCM) की प्रक्रिया शुरू होती है। यह इसी तरीके से है जैसे सिविल पुलिस की इंक्वायरी के बाद कोर्ट में ट्रायल शुरू होता है।
चर्चित मिलिट्री वकील रहे कर्नल (रि.) मुकुल देव (Col Mukul Dev) इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में बताते हैं कि मिलिट्री और सिविल केसेज में मुख्य तौर पर फर्क यह है कि मजिस्टेरियल कोर्ट में ट्रायल पूरा होने के बाद मजिस्ट्रेट सजा का ऐलान करता है, जबकि जनरल कोर्ट मार्शल में सजा का ऐलान नहीं होता। बल्कि सजा का प्रस्ताव संबंधित कमांड को भेजा जाता है।
सजा के बाद सैनिक के पास क्या विकल्प?
आर्मी एक्ट 164 के तहत संबंधित आरोपी एक प्री कन्फर्मेशन पिटीशन और एक पोस्ट कन्फर्मेशन पिटीशन दायर कर सकता है। प्री कंफर्मेशन पिटीशन आर्मी कमांडर के पास जाती है। जबकि पोस्ट कंफर्मेशन पिटीशन सरकार के पास दाखिल की जा सकती है। अगर इन दोनों से ही संबंधित सैन्यकर्मी को राहत नहीं मिलती है तो वह आर्म्ड फोर्सेज ट्रिब्यूनल (Armed Forces Tribunal) के पास जा सकता है, जिसके पास सजा को रद्द करने का अधिकार है।
सेना ने बनाया है अलग सेल
हाल के सालों में जम्मू कश्मीर में मानवाधिकार उल्लंघन के तमाम मामले सामने आए हैं। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 2017 से 2022 के बीच भारतीय सेना (Indian Army) द्वारा मानवाधिकार उल्लंघन के 100 और एयरफोर्स के 8 ऐसे मामले आए। साल 2021 में सरकार ने संसद में बताया था कि अधिकतर शिकायतें फर्जी पाई गई थीं। बता दें कि साल 2020 में भारतीय सेना ने दिल्ली स्थित अपने मुख्यालय में मानवाधिकार उल्लंघन से जुड़े मामलों के लिए सुनवाई के लिए एक अलग सेल (Human Rights Cell) की स्थापना की थी।