विकास पाठक

पत्रकार से राजनेता बने, भाजपा के पूर्व राज्यसभा सांसद बलबीर पुंज ने अपनी किताब Tryst With Ayodhya में बताते हैं कि 19 से 21 अप्रैल 1986 तक विहिप ने अयोध्या में राम जन्मभूमि महोत्सव का आयोजन किया, जिसमें बड़ी संख्या में भक्तों ने सरयू में डुबकी लगाई।

10 जुलाई 1989 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अयोध्या विवाद से जुड़े सभी मुकदमों को समेकित करने का निर्णय लिया। मामले को देखने के लिए जस्टिस केवी अग्रवाल, यूसी श्रीवास्तव और एसएचए रजा की एक विशेष पीठ का गठन किया गया था।

23-24 दिसंबर, 1986 को सैयद शहाबुद्दीन के नेतृत्व में एक अखिल भारतीय बाबरी मस्जिद सम्मेलन आयोजित किया गया, जिसके परिणामस्वरूप बाबरी मस्जिद आंदोलन समन्वय समिति (बीएमएमसीसी) का निर्माण हुआ। बीएमएमसीसी ने 30 मार्च 1987 को दिल्ली के बोट क्लब में एक रैली का आयोजन किया।

कांग्रेस सरकार ने दी राम मंदिर शिलान्यास की अनुमति- 1989

सितंबर, 1989 में विहिप ने घोषणा की कि वह पूरे देश से पवित्र ईंटें जुटाएगी और 10 अक्टूबर, 1989 को अयोध्या में राम मंदिर के लिए शिलान्यास करेगी। कांग्रेस सरकार ने इसकी अनुमति दी। राजीव गांधी ने अपना 1989 का लोकसभा अभियान अयोध्या से शुरू किया था।

विहिप ने 1 फरवरी, 1989 को अयोध्या में एक संत सम्मेलन का आयोजन किया, जिसमें 10 नवंबर 1989 को अयोध्या में राम मंदिर की आधारशिला रखने का निर्णय लिया गया।

जुलाई, 1989 में भाजपा ने पालमपुर प्रस्ताव पारित कर मंदिर आंदोलन में आधिकारिक रूप से शामिल हुई। प्रस्ताव में कहा गया- राम जन्मभूमि को बातचीत के जरिए या कानून बनाकर हिंदुओं को सौंप दिया जाना चाहिए। अदालतें भगवान राम पर फैसला नहीं दे सकतीं।

13 जुलाई 1989 को अयोध्या में बजरंग दल के सम्मेलन के दौरान पूरे भारत से 6000 से अधिक स्वयंसेवक इस आंदोलन में शामिल हुए। 9 नवंबर, 1989 को शिलान्यास समारोह आयोजित किया गया और एक दलित कामेश्वर चौपाल ने पहली राम शिला रखी।

आडवाणी ने निकाली रथयात्रा- 1990

25 सितंबर 1990 को तत्कालीन बीजेपी अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी ने सोमनाथ से अयोध्या तक रथ यात्रा शुरू की थी। जहां से यात्रा गुजरी वहां कोई हिंसा नहीं हुई लेकिन भारत के कई हिस्सों में दंगे हुए, जिसमें लगभग 600 लोग मारे गए। 23 अक्टूबर 1990 को मुख्यमंत्री लालू प्रसाद के आदेश पर आडवाणी को बिहार के समस्तीपुर में गिरफ्तार कर लिया गया।

इसके बाद भाजपा ने वीपी सिंह सरकार से समर्थन वापस ले लिया और उनकी सरकार गिर गई। आडवाणी की गिरफ्तारी के बाद भी कारसेवक तय तारीख पर अयोध्या पहुंचे। 30 अक्टूबर और 2 नवंबर को अयोध्या में कारसेवकों पर पुलिस फायरिंग हुई। उस वक्त मुलायम सिंह यादव यूपी के सीएम थे। पुलिस फायरिंग में दो भाई शरद कोठारी और रामकुमार कोठारी की मौत हो गई।

बाबरी विध्वंस-1992

6 दिसंबर, 1992 को भीड़ ने बाबरी मस्जिद को ध्वस्त कर दिया। मस्जिद के गुंबद गिरने के समय आडवाणी, जोशी, विजयाराजे सिंधिया, उमा भारती और प्रमोद महाजन पास की एक इमारत के ऊपर बने मंच पर मौजूद थे। यूपी में कल्याण सिंह सरकार बर्खास्त कर दी गई और आडवाणी ने विपक्ष के नेता पद से इस्तीफा दे दिया।

सरकार को मिला विवादित जमीन अधिग्रहण का अधिकार- 1993

7 जनवरी, 1993 को संसद ने एक अधिग्रहण अधिनियम पारित किया, जिसने सरकार को विवादित राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि की 67.03 एकड़ भूमि का अधिग्रहण करने का अधिकार दिया। इसने संविधान के अनुच्छेद 143 (1) के तहत सुप्रीम कोर्ट से यह निर्धारित करने के लिए भी कहा कि क्या बाबरी मस्जिद के निर्माण से पहले उस स्थान पर कोई मंदिर था।

लिब्रहान आयोग ने बताया विध्वंस पूर्वनियोजित था- 2009

बाबरी विध्वंस की जांच के लिए बनी जस्टिस लिब्रहान आयोग ने अपनी रिपोर्ट 30 जून 2009 को पेश की। इसमें कहा गया था कि दिसंबर 1992 की घटनाएं न तो अनायास और न ही अनियोजित थीं। अप्रैल 2017 में एक विशेष सीबीआई अदालत ने आडवाणी, जोशी, उमा भारती, विनय कटियार और अन्य के खिलाफ आपराधिक आरोप तय किए। 30 सितंबर, 2020 को अदालत ने सबूतों के अभाव में सभी 32 आरोपियों को बरी कर दिया। न्यायाधीश एसके यादव ने फैसला सुनाया कि विध्वंस पूर्व नियोजित नहीं था।

राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद: इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला- 2010

2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट की जस्टिस एसयू खान, जस्टिस सुधीर अग्रवाल और धरम वीर शर्मा की विशेष पीठ ने विवादित जमीन को 2: 1 के अनुपात में विभाजित किया। कोर्ट ने जमीन को भगवान राम, निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी वक्फ बोर्ड के बीच तीन हिस्सों में बांट दिया। फैसले को हिंदू और मुस्लिम दोनों पक्षों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी।

सुप्रीम कोर्ट का फैसला- 2019

शीर्ष अदालत ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी। 9 नवंबर, 2019 को सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने सर्वसम्मति से अयोध्या में राम मंदिर के लिए पूरी विवादित जमीन हिंदू याचिकाकर्ताओं को दे दी। मस्जिद निर्माण के लिए कहीं और जमीन देने का भी फैसला किया गया।

सरकार ने श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट की स्थापना की। राम मंदिर का शिलान्यास 5 अगस्त, 2020 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा किया गया। अब 22 जनवरी को मंदिर का उद्घाटन किया जा रहा है।

कांग्रेस नेता थे ‘राम जन्मभूमि आंदोलन’ के शुरुआती अगुआ! पढ़िए, मंदिर मूवमेंट के 200 साल के इतिहास का पार्ट-1

अदालत में अयोध्या का विवाद 1822 में पहुंच चुका था। 1855 में हनुमान गढ़ी के पास हिंदू और मुसलमानों के बीच खूनी संघर्ष हुआ था, जिसमें 70-75 मुसलमानों को मारे गए थे। 1858 में कुछ निहंग सिखों ने मस्जिद में घुसकर हवन-पूजा की थी। इस संबंध में भी मामला दर्ज कराया गया था।

14 अगस्त, 1949 को हिंदू महासभा ने अयोध्या में राम जन्मभूमि की ‘मुक्ति’ के लिए एक प्रस्ताव पारित किया था। कुछ महीने बाद वीएचपी ने अयोध्या में ही रामचरितमानस का नौ दिवसीय अखंड पाठ कराया, जिसमें फैजाबाद के कांग्रेस विधायक राघव दास शामिल हुए।

22-23 दिसंबर, 1949 की रात मस्जिद में मूर्ति रख दी गई,केंद्र और राज्य सरकार ने जब उसे हटवाने की कोशिश की तो कांग्रेस विधायक राघव दास ने इस्तीफा देने की धमकी दे दी।

मई 1983 में उत्तर प्रदेश कांग्रेस के बड़े नेता दाऊ दयाल खन्ना ने पत्र लिखकर तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से अयोध्या को हिंदुओं को सौंपने की मांग की थी। वीएचपी एक धर्म संसद में पूर्व अंतरिम प्रधानमंत्री और कांग्रेस के बड़े नेता गुलजारी लाल नंदा ने शामिल होकर ‘राम जन्मभूमि आंदोलन’ का समर्थन किया था। (विस्तार से पढ़ने के लिए फोटो पर क्लिक करें)

Ram Mandir
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