खादिजा खान

यूपी एसटीएफ (UP STF) ने गैंगस्टर अतीक अहमद के बेटे असद अहमद (Asad Ahmed) और उसके साथी गुलाम को एनकाउंटर में मार गिराया है। असद अहमद, उमेश पाल मर्डर केस में वांटेड था। असद (Asad Ahmed) के एनकाउंटर पर अखिलेश यादव समेत कई विपक्षी नेताओं ने सवाल उठाए हैं। पुलिस एनकाउंटर को लेकर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) और सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने विस्तृत गाइडलाइन दी है, ताकि सुरक्षा एजेंसियां अपनी शक्ति का दुरुपयोग न कर सकें।

एनकाउंटर पर क्या है सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन?

23 सितंबर 2014 को तत्कालीन चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया आरएम लोढ़ा और रोहिंटन फली नरीमन की बेंच ने पुलिस एनकाउंटर में मौत के मामलों की जांच के लिए डिटेल्ड गाइडलाइन बनाई थी। 16 पॉइंट वाली यह गाइडलाइन ‘पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज’ बनाम स्टेट ऑफ महाराष्ट्र केस में प्रभाव में आई थी। सुप्रीम कोर्ट ने अपनी गाइडलाइन में कहा था कि पुलिस एनकाउंटर में किसी की मौत के बाद अनिवार्य तौर पर उसकी मजिस्टेरियल इंक्वायरी होनी चाहिए। मृतक के परिवार के सबसे करीबी सदस्य को इस जांच में शामिल किया जाना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि यदि एनकाउंटर के बाद मृतक का परिवार पुलिस के खिलाफ शक्ति के दुरुपयोग का आरोप लगाता है तो उचित धाराओं में एफआईआर दर्ज की जानी चाहिए। क्रिमिनल प्रोसीजर के सेक्शन 176 के तहत ऐसी जांच में इस बात पर जोर होना चाहिए कि पुलिस की कार्रवाई न्याय संगत और कानून सम्मत थी अथवा नहीं। गाइडलाइन में कहा गया था कि जांच के बाद संबंधित जुडिशल मजिस्ट्रेट को इसकी भेजी जानी चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट ने अपनी गाइडलाइन में यह भी कहा था कि यदि पुलिस को इंटेलिजेंस के जरिए किसी अपराधी के मूवमेंट और एक्टिविटी की कोई जानकारी मिलती है तो इसे केस डायरी या किसी इलेक्ट्रॉनिक फॉर्म में जरूर रखा जाए। यदि इस टिप के आधार पर कोई एनकाउंटर होता है, पुलिस हथियार का इस्तेमाल करती है और आरोपी की मौत हो जाती है तो बिना किसी देरी के एफआईआर दर्ज की जानी चाहिए। सेक्शन 157 के तहत कोर्ट को इसकी जानकारी दी जानी चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा था- एनकाउंटर की स्वतंत्र एजेंसी से हो जांच

गाइडलाइन में यह भी कहा गया था कि एनकाउंटर की जांच या तो सीआईडी से कराई जानी चाहिए अथवा किसी दूसरे पुलिस स्टेशन की टीम से कराई जानी चाहिए और इसकी निगरानी किसी उच्च अधिकारी द्वारा की जानी चाहिए। गाइडलाइन में कहा गया था कि संबंधित एनकाउंटर की जानकारी एनएचआरसी अथवा राज्य मानवाधिकार को भी जरूर दी जानी चाहिए।

आपको बता दें कि इन्हीं गाइडलाइंस के आधार पर कानपुर के बहुचर्चित विकास दुबे एनकाउंटर केस में सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को जांच करने का आदेश दिया था। विकास दुबे की मध्य प्रदेश से यूपी लाते वक्त एनकाउंटर में मौत हो गई थी।

क्या है NHRC की गाइडलाइन?

सुप्रीम कोर्ट की इस गाइडलाइन से पहले साल 1997 में एनएचआरसी यानी राष्ट्रीय मानवाधिकार ने तत्कालीन चेयरमैन जस्टिस एमएन वेंकटचलैया की अगुवाई में पुलिस एनकाउंटर को लेकर एक विस्तृत गाइडलाइन दी थी। मार्च 1997 में पूर्व CJI वेंकटचलैया ने सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को एक पत्र लिखा था और बताया था कि एनएचआरसी को आम आदमी और तमाम एनजीओ द्वारा लगातार शिकायतें मिल रही हैं कि फेक एनकाउंटर के मामले बढ़ रहे हैं। इस पत्र में उन्होंने साफ-साफ लिखा था कि ‘भारतीय कानून के मुताबिक पुलिस के पास किसी की जान लेने का कोई अधिकार नहीं है’।

एनएचआरसी ने सभी राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश दिया था कि यदि किसी की एनकाउंटर में जान जाती है तो उससे संबंधित सभी जानकारी एक रजिस्टर में दर्ज की जाए और सीआईडी जैसी स्वतंत्र जांच एजेंसियों से इसकी जांच कराई जाए। NHRC ने यह भी कहा था कि यदि किसी एनकाउंटर के मामले में पुलिसकर्मी दोषी पाए जाते हैं तो मृतक के आश्रित को मुआवजा भी दिया जाना चाहिए।

साल 2012 में NHRC ने बदली थी गाइडलाइन

साल 2010 में एनएचआरसी के तत्कालीन अध्यक्ष जस्टिस जीपी माथुर (Justice GP Mathur) के नेतृत्व में एनकाउंटर से जुड़ी गाइडलाइन में कुछ बदलाव किए गए और एनकाउंटर से संबंधित मामलों में FIR, मजिस्टेरियल इंक्वायरी और इस तरह के सभी एनकाउंटर की 48 घंटे के अंदर जानकारी एनएचआरसी को देने का प्रावधान किया गया था।

फेक एनकाउंटर में पुलिसकर्मियों को हो चुकी है सजा

फेक एनकाउंटर के कई मामले और आरोप पहले भी सामने आते रहे हैं। पुलिसकर्मियों को सजा भी हुई है। पुलिस एनकाउंटर में मौत और उस पर विवाद का एक बहुचर्चित मामला करीब 4 साल पहले का हैदराबाद का है। साल 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व जज वीएन सिरपुरकर (VN Sirpurkar) के नेतृत्व में हैदराबाद में 26 वर्षीय वेटनरी डॉक्टर से गैंगरेप और मर्डर के 4 आरोपियों की एनकाउंटर में मौत की जांच के आदेश दिए थे। तेलंगाना पुलिस ने दावा किया था कि चारों आरोपी पुलिस के हथियार छीन कर भाग रहे थे और इस दौरान एनकाउंटर में उनकी मौत हो गई।

बाद में मई 2022 में मानवाधिकार आयोग ने 10 पुलिसकर्मियों को हत्या और फेक एनकाउंटर का दोषी पाया और इन पुलिसकर्मियों के खिलाफ एफआईआर का आदेश दिया था।