ये साल था 1991। देश में एक तरफ मंदिर आंदोलन जोर पकड़ रहा था, तो दूसरी तरफ लोकसभा चुनाव की घंटी भी बज चुकी थी। चुनाव जैसे-जैसे आगे बढ़ा, पूरे देश की निगाहें दिल्ली पर टिक गईं। इसलिये नहीं कि दिल्ली राजधानी और सियासत का केंद्र थी, बल्कि इसलिये कि यहां की एक सीट पर दो कद्दावर आमने-सामने थे। बीजेपी ने मंदिर आंदोलन की अगुवाई कर रहे थे लालकृष्ण आडवाणी (Lal Krishna Advani) को नई दिल्ली सीट से मैदान में उतारा, तो जवाब में कांग्रेस ‘मेगास्टार’ राजेश खन्ना को अखाड़े में ले आई। खुद को राजीव गांधी का करीबी कहने वाले राजेश खन्ना सियासत में नौसिखिया थे, लेकिन उन्होंने आडवाणी को जैसी टक्कर दी, उसकी उम्मीद किसी ने नहीं की थी।

रिजल्ट का दिन आया। दिल्ली के शाहजहां रोड पर यूपीएससी बिल्डिंग में वोटों की गिनती शुरू हुई। काउंटिंग सेंटर के बाहर हजारों की तादाद में दोनों दलों के समर्थक और प्रेस के लोग मौजूद थे। उस दौर में वोटिंग मशीन नहीं होती थी। बॉक्स में वोट डलता था और मैनुअल गिनती होती थी। शुरुआती रुझान आने शुरू हुए तो गाजे-बाजे के साथ आए और जीत तय मान रहे आडवाणी समर्थकों के चेहरे उतरने लगे। राजेश खन्ना ने शुरू से बढ़त बना ली।

सातवें राउंड के बाद पलट गई बाजी: ‘काका’ यानी राजेश खन्ना ( Rajesh Khanna) ने सातवें राउंड तक बढ़त बरकरार रखी। इस बीच काउंटिंग सेंटर के बाहर से आडवाणी समर्थकों की भीड़ भी छंटने लगी। वरिष्ठ पत्रकार और लेखक यासिर उस्मान अपनी किताब, ‘राजेश खन्ना: कुछ तो लोग कहेंगे’ में इस किस्से का जिक्र करते हुए उस वक्त ‘द हिंदू’ के लिए रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकार पंकज वोहरा के हवाले से लिखते हैं, ‘काका की जीत तय मानकर उनके समर्थन सब छोड़कर जश्न मनाने में जुट गए और पास के गौरीशंकर मंदिर से फूल आदि लेने चले गए।

इसी बीच अचानक बीजेपी खेमे से शोरगुल की आवाज आई और एक समर्थक ने कहा कि आडवाणी डेढ़ हजार वोटों से जीत गए हैं। जग प्रवेश चंद्रा, राजेश खन्ना के इलेक्शन एजेंट थे, लेकिन उन्होंने री-काउंटिंग की मांग नहीं की और नतीजा स्वीकार कर लिया’।

काउंटिंग सेंटर पर ही भड़क गए राजेश खन्ना: उस चुनाव में लालकृष्ण आडवाणी ने राजेश खन्ना ( Rajesh Khanna) को 1589 वोटों से हरा दिया था। आडवाणी को 93,662 वोट मिले थे, जबकि राजेश खन्ना को 92,073 मत हासिल हुए थे। हालांकि पहली बार चुनावी अखाड़े में उतरे राजेश खन्ना के लिहाज से ये प्रदर्शन बुरा नहीं था, लेकिन जीत के इतने करीब पहुंचकर हारने वाले राजेश खन्ना इसे बर्दाश्त नहीं कर पा रहे थे। उन्हें लग रहा था कि उनके साथ धोखा हुआ है। उन्होंने काउंटिंग सेंटर के बाहर हंगामा खड़ा कर दिया। अधिकारियों पर मिलीभगत के आरोप भी लगाए, लेकिन इसका कोई फायदा नहीं था।

शत्रुघ्न सिन्हा को हराकर पहुंचे लोकसभा: 1991 के चुनाव में लालकृष्ण आडवाणी नई दिल्ली के साथ-साथ गुजरात की गांधीनगर सीट से भी चुनाव लड़े थे और दोनों सीटों पर जीत हासिल की थी, ऐसे में एक सीट छोड़नी थी। उन्होंने गांधीनगर सीट चुनी और नई दिल्ली सीट फिर खाली हो गई। इस सीट पर उपचुनाव हुए और किस्मत ने राजेश खन्ना को एक बार फिर मौका दिया। इस बार बीजेपी ने राजेश खन्ना (Rajesh Khanna) के सामने उस दौर के मशहूर अभिनेता शत्रुघ्न सिन्हा को मैदान में उतार दिया। हालांकि राजेश खन्ना के सामने शत्रुघ्न सिन्हा टिक नहीं पाए और अंतत: ‘काका’ लोकसभा में पहुंचने में कामयाब रहे।