बताशे बांटने के बाद इस बात की खोज-खबर शुरू हुई कि आखिर यह कमाल क्यों हुआ? कैसे हुआ? किसने किया? किसका हाथ है? तो पता चला कि कमाल कोरोना के गिरते मामलों से हुआ, सरकार ने किया मगर इसमें जो हाथ है वह ढाई किलो का है। यानी सनी देओल का हाथ। वह प्रतिनिधि मंडल लेकर मंत्रियों से जाकर मिले और पचास से सौ फीसद क्षमता के साथ सिनेमाघर खुलवाने का काम करवाया।
सनी देओल के ढाई किलो के हाथ की ताकत देखिए। दक्षिण में फिल्म स्टारों के अपने-अपने फैन क्लब हैं, जो उनकी फिल्म लगने पर उसे हाउसफुल बनाने का काम करते हैं। 14 जनवरी को पोंगल पर तमिल हीरो विजय की ‘मास्टर’ रिलीज हो रही थी।
विजय ने तमिलनाडु के मुख्यमंत्री पलानीस्वामी से धंधे में हो रहे नुकसान की बात कही और राज्य में 100 फीसद क्षमता से सिनेमाघर खोलने की मांग की।
मुख्यमंत्री ने स्वीकृति दे दी, तो केंद्र सरकार ने तमिलनाडु संदेश भेज दिया कि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के कोरोना पर दिशा-निर्देशों का पालन करें और आदेश वापस लें। आखिर मुख्यमंत्री को कदम पीछे हटाने पड़े। तो जो काम पलानीस्वामी नहीं कर सके, वह पाकिस्तान जाकर हैंडपंप उखाड़ने वाले सनी देओल ने कर दिखाया। नाशुकरों की बात न सुनें। वे सनी देओल से जलते हैं इसलिए कहते हैं कि कोरोना मामलों में कमी के कारण वैसे भी सिनेमाघर सौ फीसद क्षमता के साथ खुलने जा रहे थे, उसमें सनी देओल ने क्या किया।
मगर बॉलीवुड हैरान है कि आखिर फिल्मवालों का काम इतनी जल्दी कैसे हो गया। इससे पहले तो मुंबई फिल्मजगत से इंपा, एमपीटीपीपी से लेकर प्रोड्यूसर्स गिल्ड के प्रमुख कई बार प्रतिनिधिमंडल लेकर जाते थे। सरकारें उन्हें बढ़िया चाय-नाश्ता करवातीं थीं और उनके मांग पत्रों को कचरे की टोकरी में डाल देती थीं। बॉलीवुड के नेता सरकारी आश्वासन लेकर मुंबई वापस आ जाते थे और कहते थे फिल्मवालों में एकता नहीं है।
हालांकि मुंबई के फिल्मवाले राजनीति से दूर ही रहते हैं। फिर भी कुछेकहीरो राजनीति में गए। अमिताभ गए मगर लौट आए। कहा कि भाई अपने बस का काम नहीं है। राजेश खन्ना गए। कुछ ही सालों में ऊब कर आशीर्वाद में वापस लौट आए। राज बब्बर, शत्रुघ्न सिन्हा अभी भी सक्रिय हैं। गोविंदा को भेजा तो कान पकड़कर लौटे। कहा रामराम गंगाराम अब नहीं जाएंगी दिल्ली धाम। लौटने के बाद न सिनेमा के रहे, न सियासत के। बीच- बीच में एक दो फिल्मों में दिख जाते हैं।
दिलीप कुमार किसी उम्मीदवार की सभा में चले जाते थे, मगर सक्रिय राजनीति से खुद को उतना ही दूर रखा जितना आग को पेट्रोल से रखा जाता है। बॉलीवुड में नेता कई रहे मगर फिल्म इंडस्ट्री के लिए ऐसा कोई काम नहीं किया कि लोग उनकी वाहवाही करने लगें।
सियासत तो बस साउथ के हीरो के बस की बात रही। चट हिट हुए, पट मुख्यमंत्री बन गए। विजय भी आज नहीं तो कल सियासत में आएंगे। ऐसे में ढाई किलो का हाथ लेकर राजनीति में गए सनी देओल मुंबइया फिल्म वालों के नए नेता के रूप में उभर रहे हैं। सिनेमा मालिकों ने महीने भर में अपने लिए एक नहीं दो लीडर पैदा कर लिए।
सनी से पहले फिल्मवालों ने सलमान खान से गुहार लगाई थी कि वे अपनी फिल्म ‘राधे : द मोस्ट वांटेड भाई’ ओटीटी प्लेटफॉर्म के बजाय सिनेमाघरों में रिलीज करें ताकि उनका धंधापानी चले। भाईजान मान गए। लेकिन फिल्म के नाम से भ्रमित न हों। ‘राधे : द मोस्ट वांटेड भाई’ भाई-बहन के प्यार की कहानी नहीं है इसलिए यह ईद पर रिलीज होगी, रक्षाबंधन पर नहीं।