शाहिद कपूर अपनी जर्सी लेकर भाग खड़े हुए। बाहुबली के सर्जक राजमौलि का बल भी कोरोना विषाणु के सामने क्षीण हो गया और उन्होंने अपनी फिल्म आरआरआर का प्रदर्शन स्थगित कर दिया। ओमीक्रान का खौफ फिल्म निमार्ताओं को पुनर्विचार करने पर मजबूर कर रहा है कि वे घोषित समय पर अपनी फिल्में रिलीज करें या नहीं। मगर इन स्थितियों में अल्लु अर्जुन की तेलुगु फिल्म पुष्पा-द राइज तीन सौ करोड़ का धंधा कर रही है और इसके हिंदी डब संस्करण ने हिंदी पट्टी में साठेक करोड़ कमा कर पटक दिए। विश्वकप क्रिकेट पर बनी 83 ही नहीं, यह स्पाइडर मैन को भी पीछे छौड़ चुकी है। इस पर कोरोना विषाणु का कोई असर नहीं हो रहा है। अलु अर्जुन की फिल्म पुष्पा पुष्पराज नामक कुली के एक ताकतवर स्मगलर बनने की कहानी है।

आमतौर पर पुष्पा महिलाओं का नाम होता है, इसलिए लोगों में गलतफहमी स्वाभाविक है कि फिल्म महिलाप्रधान होगी। अंग्रेजी के मोह के चलते पुष्पराज को पुष्पा बना दिया गया है। मगर फिल्म की सफलता में इसका नाम भी आड़े नहीं आया। फिल्म का नाम चाहे भ्रम पैदा करता हो, मगर पुष्पा चल रही है। इस सफलता के साथ ही अलु अर्जुन के चर्चे हो रहे हैं। उनकी पिछली तेलुगु फिल्म अला बैकुंठपुरमुलु ने 250 करोड़ का कारोबार किया था।

फकीरा (1976) बनाने के दौरान निमार्ता एनएन सिप्पी से उनके करीबियों ने कहा कि आप फिल्म में शशि कपूर और डैनी को सगे भाई दिखा रहे हैं, जबकि दोनों की शक्ल में जमीन-आसमान का अंतर है। कहां चिकने-चुपड़े शशि कपूर और कहां नेपाली से दिखने वाले डैनी। इस पर सिप्पी ने कहा कि लोग जब फिल्में देखते हैं, तब इन सब बातों पर ध्यान नहीं देते। हुआ भी यही। फिल्म हिट हुई। दर्शक फकीरा देखने के बाद उसके गाने-दिल में तुझे बिठा के… और तोता मैना की कहानी तो पुरानी पुरानी हो गई… गुनगुना रहे थे। किसी का ध्यान इस ओर नहीं गया कि डैनी और शशि कपूर कहीं से भी सगे भी नहीं दिखते। इन दिनों हिट हो रही, पुष्पा को लेकर भी दर्शकों में कुछ इसी तरह का रवैया देखा जा सकता है।

पुष्पा मूल तेलुगु से हिंदी में डब की गई है और इसने हिंदी में 60 करोड़ से ज्यादा का एकत्रण किया है। दक्षिण भारतीय फिल्मों का हिंदी में सफल होना नई बात नहीं है। इसकी शुरूआत एसएस वासन की 1948 में रिलीज 30 लाख लागत की तमिल चंद्रलेखा से हुई थी। चंद्रलेखा वह पहली भारतीय फिल्म थी,जिसके अखबारों और पत्र-पत्रिकाओं में पूरे पेज के विज्ञापन दिए गए थे।

भव्य पैमाने पर बनाई गई इस फिल्म के प्रचार में कोई कसर नहीं छोड़ी गई थी। सचाई यह थी कि प्रचार पर 1948 में दस लाख रुपए से ज्यादा खर्च करने वाले वासन के पास इस फिल्म की कोई कहानी नहीं थी। जो कुछ था वह सिर्फ शीर्षक भर था, जो एक हीरोइन का नाम था। फिल्म बनती जाती थी और साथ-साथ कहानी भी लिखी जा रही थी। पांच साल लगे फिल्म बनने में। फिल्म चली भी। मगर फिल्म निर्माण का महत्वपूर्ण केंद्र होते हुए भी तमिल फिल्मों का बाजार इतना बड़ा नहीं था कि 30 लाख लागत निकाल सके। केरल, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश के लोगों को शुरू में फिल्में बनाने के लिए मद्रास, अब चैन्नई, जाना पड़ता था। तब 85 रुपए महीने की नौकरी से शुरूआत करने वाले ताराचंद बड़जात्या ने चंद्रलेखा को हिंदी में डब या रीमेक करने की वासन को सलाह दी और मदद भी की। चंद्रलेखा हिंदी में बनी और खूब चली। तब से दक्षिण की फिल्मों को हिंदी के रूप में एक बड़ा बाजार मिल गया। आज तेलुगु फिल्मों का कारोबार फैल गया है।

फिल्म निर्माण का पुख्ता ढांचा वहां खड़ा हो चुका है। बाहुबली जैसी दो भाग में बनी फिल्म ने दुनिया भर में दो हजार करोड़ रुपए का व्यवसाय किया है। पुष्पा के दो भाग में से पहला रिलीज हो चुका है। दूसरा भाग भी इसी साल रिलीज होगा। इसके अलावा तेलुगु में बनी मेजर, राधेश्याम, सालार, लाइगर और आदिपुरुष जैसी फिल्में हिंदी में इसी साल रिलीज की जाएंगी। प्रभास और पूजा हेगड़े की राधेश्याम तो 14 जनवरी को रिलीज होने जा रही थी, जिसका प्रदर्शन स्थगित हो चुका है। हालात फिल्मों के प्रदर्शन के लिए अनुकूल नहीं हैं। तेलुगु में बनी आरआरआर का सात जनवरी को होने वाला प्रदर्शन पहले ही स्थगित हो गया है। राधेश्याम के निर्माता का कहना था कि फिल्म अपने तय समय 14 जनवरी को रिलीज की जाएगी। मगर ओमीक्रान के बढ़ते मामलों ने राधेश्याम के निर्माता को भी पीछे हटने पर मजबूर कर दिया है।