पिछली सदी के अंत में डेविड धवन एक बहुचर्चित मसाला फिल्मकार थे। उनके एक बेटे वरुण धवन आजकल हिंदी फिल्मों के स्टार है। ‘शहज़ादा ‘ फिल्म के निर्देशक रोहित धवन भी डेविड धवन के बेटे हैं और कुछ फिल्में बना चुके हैं। लेकिन उनकी कोई फिल्म सुपर हिट नहीं हुई। इसलिए ‘शहज़ादा’ से न सिर्फ रोहित धवन को, बल्कि पूरे धवन परिवार को काफी उम्मीदें हैं और शायद ये सफल भी हो जाए क्योंकि ये डेविड धवन शैली की मसाला फिल्म की सच्ची प्रतिलिपि है।

चटपटी कहानी,आकर्षक संवाद, कार्तिक आर्यन का मजाकिया अंदाज़, कृति सैनन का ग्लैमर और राजपाल यादव की लुभावनी कोमेडी। वैसे यहां ये भी बताना जरूरी होगा कि ‘शहज़ादा’ उस तेलुगु फिल्म ‘अला वैकुंठपुरामुलु ‘ का हिंदी रीमेक है जिसमें अल्लू अर्जुन ने मुख्य भूमिका निभाई है।

फिल्म की कहानी कार्तिक आर्यन को इतनी अच्छी लगी कि वे इसके निर्माताओं से एक हो गए हैं। इसलिए ‘शहज़ादा’ में एक जिंदल परिवार, रणदीप जिंदल(रोनित रॉय) और उनकी पत्नी (मनीषा कोइराला)है जिसके पास काफी पैसा है। लेकिन पैसोंवाला होने पर भी ये धूर्त परिवार नहीं है। इसलिए इस परिवार में जब एक बच्चे का जन्म होता है तो इसी परिवार का एक कर्मचारी बाल्मीकि (परेश रावल) जन्म के समय ही अपने बच्चे से जिंदल परिवार में जन्मे बच्चे से बदल देता है।

संयोग से दोनो बच्चों का जन्म एक ही साथ होता। जिंदल परिवार का बच्चा बंटू (कार्तिक आर्यन) मुफ लिसी में जीता है क्योंकि समाज की नज़र में जो उसका पिता है उसका असली बेटा राज (अंकुर राठी)तो जिंदल के आली शान घर में पल रहा है और वो हमेशा बंटू को हतोत्साहित करता रहता है। अब मसाला ये है कि क्या बंटू अपने असल घर में अपनी जगह पा सकेगा? अगर हाँ ,तो किस तरह? यही इस फिल्म का मुद्दा है।

फिल्म शुरू से आखिर तक खूब हंसाती है। बंटू की प्रेमिका की भूमिका में कृति सैनन भी अपनी भूमिका मे जमी हैं। परेश रावल का किरदार अक्सर की तरह दमदार है। एक खडूस और षड्यंत्रकारी के रूप में वे दर्शकों के मन में कई तरह की भावनाएं पैदा करतें हैं। लेकिन सबसे अच्छी बात ये है कि लंबी होने पर भी ये कहीं बोर नहीं करती।