साउथ की जानी-मानी एक्ट्रेस शीना चौहान किसी पहचान की मोहताज नहीं हैं। उन्होंने मलयालम फिल्म ‘द ट्रेन’ से इंडस्ट्री में कदम रखा था। इस फिल्म में एक्ट्रेस ने ममूटी के साथ काम किया था, जिसे लोगों ने काफी पसंद भी किया। इसके बाद शीना ने कई दूसरी फिल्मों में काम किया। सिर्फ साउथ ही नहीं, वह हॉलीवुड फिल्मों और ओटीटी सीरीज में भी काम कर चुकी हैं।
अब जल्द ही एक्ट्रेस संत तुकाराम के साथ बॉलीवुड में कदम रखने वाली हैं। ऐसे में उन्होंने अपनी आने वाली मूवी, को-स्टार संग काम का अनुभव समेत कई चीजें शेयर की हैं। चलिए जानते हैं।
जल्द ही आप बॉलीवुड मूवी में डेब्यू करने वाली हैं, इस मूवी को लेकर कोई अनुभव और कैसे आपको ये मूवी मिली?
यह फिल्म मेरे लिए बहुत खास है क्योंकि इसमें मुझे अपने किरदार को खुद से गढ़ने और उसमें जान डालने का मौका मिला है। मुझे यह फिल्म इसलिए मिली क्योंकि मैं एक खाली पन्ने की तरह हूं, जिस पर निर्देशक और लेखक अपनी सोच को आकार दे सकते हैं। मुझे किरदारों को निभाना, उन्हें जीवंत करना बेहद पसंद है, और इस फिल्म में यही मेरी सबसे बड़ी चुनौती थी। मैं पूरी तरह से निर्देशक के निर्देशों का पालन करती हूं और किरदार में डूबने की कोशिश करती हूं, ताकि वह पर्दे पर असली लगे।
इस फिल्म में आप सुबोध भावे और आदित्य ओम के साथ काम कर रही हैं, तो उनके साथ काम करने का अनुभव कैसा रहा?
सुबोध भावे और आदित्य ओम जैसे कलाकारों के साथ काम करना बेहद प्रेरणादायक रहा है। दोनों ही अपने किरदारों के प्रति बहुत समर्पित हैं और मुझे भी उनसे बहुत कुछ सीखने को मिला। वे अपने काम के प्रति जितने पैशनेट हैं, वह चीज मुझे भी अपने किरदारों में और गहराई से उतरने की प्रेरणा देती है। मुझे हमेशा लगता है कि हम कलाकारों का काम है एक दूसरे को प्रेरित करना और इस फिल्म में मैंने इसे बखूबी महसूस किया।

आपने साउथ, हॉलीवुड और बॉलीवुड हर इंडस्ट्री में काम किया है, सबसे ज्यादा काम करके आपको कहां मजा आया?
हर इंडस्ट्री में काम करने का अपना एक अलग ही मजा है। साउथ इंडस्ट्री में जो अनुशासन और तकनीकी उत्कृष्टता है, वह काबिले तारीफ है। हॉलीवुड में किरदारों को गढ़ने का तरीका बेहद खास है, वहां बहुत गहराई से किरदार पर काम होता है, जो मुझे बहुत पसंद है और बॉलीवुड में तो कहानियों की विविधता और दर्शकों से जुड़ाव अपने आप में अद्वितीय है। मुझे तीनों जगहों पर काम करना बहुत पसंद आया है और इन सभी अनुभवों ने मुझे एक बेहतर कलाकार बनाया है।
आपने सीरीज भी की हैं, ऐसे में बड़े पर्दे और ओटीटी में आपको क्या फर्क लगा, दोनों में से आप किसे बेहतर मानती हैं?
ओटीटी और बड़े पर्दे, दोनों ही प्लेटफॉर्म के अपने अलग-अलग फायदे हैं। ओटीटी पर आपको किरदार को विस्तार से निभाने का मौका मिलता है, क्योंकि समय की कोई पाबंदी नहीं होती। वहीं, बड़े पर्दे की बात ही कुछ और है, क्योंकि वह दर्शकों के साथ एक सामूहिक अनुभव की तरह होता है। दोनों ही माध्यम अपनी जगह पर सही हैं और मुझे दोनों में काम करने का अलग-अलग आनंद मिलता है, लेकिन जहां तक किरदारों की बात है, मैं अपने हर रोल को एक जैसा समर्पण और गंभीरता से निभाती हूं, चाहे वह ओटीटी हो या बड़े पर्दे पर।
आप आगे चलकर किस बॉलीवुड डायरेक्टर और एक्टर के साथ काम करना पसंद करेंगी?
मैं उन निर्देशकों और कलाकारों के साथ काम करना चाहती हूं, जो अपने किरदारों और कहानियों को एक नया आयाम देते हैं। मुझे उन निर्देशकों के साथ काम करने में मजा आएगा जो नए तरीके से सोचते हैं और समाज में कुछ सकारात्मक बदलाव लाने की कोशिश करते हैं। रणबीर कपूर जैसे कलाकारों के साथ काम करने की इच्छा है, क्योंकि उनका अभिनय बहुत ही विविधतापूर्ण है। वहीं, निर्देशक संजय लीला भंसाली और जोया अख्तर जैसे निर्देशकों के साथ काम करने का सपना है, क्योंकि वे अपने किरदारों को जिस गहराई से पेश करते हैं, वह अद्भुत है।
आप मानवाधिकारों के लिए भी काम करती हैं और हाल ही में आपको दक्षिण एशिया के लिए मानवाधिकारों की एंबेसडर के रूप में नियुक्त किया गया, इसके बारे में कुछ बताइए?
हाल ही में मुझे दक्षिण एशिया के लिए मानवाधिकारों की एंबेसडर के रूप में नियुक्त किया गया है और मुझे गर्व है कि मुझे राष्ट्रपति पुरस्कार और संयुक्त राष्ट्र की पहली हीरो अवॉर्ड से सम्मानित किया गया है। मेरा लक्ष्य एक अरब लोगों तक पहुंचने का है, ताकि मैं अपना वास्तविक संदेश लोगों, खासकर महिलाओं तक पहुंचा सकूं। मेरा मानना है कि भारत में महिलाओं के लिए सबसे बड़ी चुनौती सुरक्षा और भेदभाव है।
महिलाओं की स्थिति में सुधार के लिए सबसे महत्वपूर्ण समाधान शिक्षा है। युवाओं को उनके मौलिक अधिकारों के बारे में जागरूक करना आवश्यक है, और लड़कों को महिलाओं के प्रति सम्मान का महत्व सिखाना चाहिए। भविष्य की पीढ़ी को यह समझना होगा कि महिलाओं के अधिकार हैं और उन्हें सम्मान दिया जाना चाहिए। मैं चाहती हूं कि मानवाधिकारों की शिक्षा को स्कूलों में अनिवार्य किया जाए, ताकि समाज में सभी को बराबरी और सम्मान मिल सके।