1942 का वो दौर जब द्वितीय विश्व युद्ध छिड़ा हुआ था। शाहनवाज खान नाम का एक युवक जो पंजाबी मुसलमान था ब्रिटिश साम्राज्य के भारतीय रेजिमेंट में शामिल हुआ। शाहनवाज अंग्रेजों की तरफ से जापान के खिलाफ साउथ एशिया में मोर्चे पर थे। युद्ध के दौरान जापानी सेना ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। जापानियों ने उन्हें गिरफ्तार कर सुभाष चंद्र बोस के हवाले कर दिया जो उन दिनों आईएनए का नेतृत्व कर रहे थे और अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ जापान का साथ दे रहे थे। जापानियों ने शाहनवाज को आइएनए में भर्ती कराने के मकसद से ये कदम उठाया था। शाहनवाज भी खुशी-खुशी नेताजी के साथ हो लिए। शाहनवाज के साथ उनके एक और साथी लेफ्टिनेंट कर्नल भोंसले भी अंग्रेजों के खिलाफ जाते हुए आईएनए में शामिल हो गए।
दूसरे विश्व युद्ध के खत्म होने के बाद अंग्रेजी हुकूमत ने उन लोगों को चिह्नित करना शुरू किया जो अंग्रेजी सेना का साथ छोड़ नेताजी के साथ जा मिले थे। बर्मा में जनरल शाहनवाज खान और उनके दल को ब्रिटिश आर्मी ने बंदी बना लिया था। जनरल शाहनवाज खान, कर्नल हबीब-उर-रहमान, कर्नल प्रेम सहगल और कर्नल गुरुबक्श सिंह के खिलाफ दिल्ली के लाल किले में अंग्रेजी हुकूमत ने राजद्रोह का मुकदमा चलाया। अंग्रेजों द्वारा दोष सिद्ध होने पर फांसी से लेकर आजीवन कारावास तक की सजा तय की गई।

इस बात की जानकारी जैसे ही नेहरू और कांग्रेस को लगी उन्होंने इसका विरोध किया। पंडित नेहरू ने अंग्रेजी अदालत में दलील दी कि ये लोग एक युद्ध बंदी हैं। युद्ध में गिरफ्तार सैनिकों के साथ ऐसा बर्ताव अनुचित है। आखिरकार कोर्ट में नेहरू की दलीलों और बाहर भारी जन दबाव और समर्थन के चलते ब्रिटिश आर्मी के जनरल आक्निलेक को न चाहते हुए भी आजाद हिंद फौज के अफसरों को अर्थदण्ड का जुर्माना लगाकर छोड़ने पर विवश होना पड़ा। अदालत में जनरल शाहनवाज खान और बाकी अफसरों की पैरवी जवाहर लाल नेहरू के साथ सर तेज बहादुर सप्रू, आसफ अली, बुलाभाई देसाई और कैलाश नाथ काटजू ने भी की थी।
भारत की आजादी के बाद पंडित नेहरू ने जनरल शाहनवाज खान को कांग्रेस में शामिल होने का आग्रह किया। शाहनवाज भी नेहरू का आग्रह स्वीकर करते हुए कांग्रेस के सदस्य बन गए। कांग्रेस ने 1952 के आम चुनावों में उन्हें मेरठ लोकसभा से अपना उम्मीदवार बनाया और इस तरह वह लोकसभा तक पहुंचे। मेरठ से शाहनवाज खान तीन बार लोकसभा का चुनाव जीते और नेहरू कैबिनेट में मंत्री भी रहे।

जनरल शाहनवाज खान बंटवारे के वक्त अपना पूरा परिवार पाकिस्तान में छोड़ हिंदुस्तान चले आए थे। उन्होंने लतीफ फातिमा नाम की एक लड़की को गोद लिया था। लतीफ फातिमा की शादी उन्होंने अपने एक साथी ताज मोहम्मद से कराई। इन दोनों की एक संतान हुई जिसको आज दुनिया शाहरुख खान के नाम से जानती है।

यूं तो शाहरुख खान आज किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं लेकिन ये बात बहुत कम लोग जानते होंगे कि शाहरुख के नाना जनरल शाहनवाज खान ही वह शख्स थे जिन्होंने आजादी के बाद सबसे पहले लाल किले से अंग्रेजों का झंडा उतारा था। एक बार शाहरुख ने अपने इंटरव्यू मे़ बताया था कि जब वह छोटे थे तो उनके नाना जनरल शाहनवाज उन्हे अकसर कहा करते कि हम लेग असली राष्चरवादी हैं, क्योंकि जब बंटवारे के बाद भारत के मुसलमान पाकिस्तान जा रहे थे उस वक्त हम लोग रावलपिंडी छोड़ यहां अपने मुल्क में आ बसे।
(नोट: शाहनवाज खान के बारे में इनपुट्स वरिष्ठ पत्रकार राशिद किदवई की किताब 24 अकबर रोड से लिये गए हैं)