करण जौहर और शाहरुख खान बॉलीवुड के पक्के दोस्तों में से हैं। करण के मुताबिक शाहरुख बिना उनसे स्क्रिप्ट मांगे फिल्म के लिए हां कह देते हैं, इतना ही नहीं वो कभी उनसे पैसे की भी बात नहीं करते। इतना ही नहीं, शाहरुख खान ने उनके धर्मा प्रोडक्शन को बर्बाद होने से भी बचाया था। ‘कल हो ना हो’ से पहले, यह प्रोडक्शन हाउस भारी नुकसान से जूझ रहा था और उसे फिर से उठाने के लिए एक फिल्म की जरूरत थी। फिल्म निर्माता विवेक वासवानी ने याद किया कि कैसे शाहरुख ने धर्मा की मदद की, जिससे करण के साथ दोस्ती और उनके पिता यश जौहर के साथ गहरे सम्मान का रिश्ता बना।

वासवानी ने रेडियो नशा को बताया कि यश मुश्किल दौर से गुजर रहे थे और निर्माता को बॉक्स ऑफिस पर जीत की सख्त जरूरत थी। उन्होंने बताया कि भट्ट ने यश के लिए ऑफर रखा था, जिसमें उनका कहना था कि अगर शाहरुख को लीड रोल में लिया जाएगा तो वो मुफ्त में फिल्म का डायरेक्ट करेंगे। विवेक उस समय शाहरुख के करीबी दोस्त थे और उन्होंने उनकी ‘कभी हां कभी ना’ का निर्माण भी किया था।

इस वक्ता को याद करते हुए वासवानी ने कहा, “करण जौहर ने मुझे आधी रात को फोन किया और कहा कि ‘मेरे पिता मर जाएंगे।’ इस समय तक ‘गुमराह’, ‘दुनिया’ और ‘मुकद्दर का फैसला’ तीनों फिल्में फ्लॉप हो चुकी थीं। सबसे बड़ा झटका यह था कि ‘अग्निपथ’ भी पिट गई। अब वो मुझे बता रहे हैं कि महेश भट्ट इस बात पर सहमत हो गए हैं कि वह धर्मा प्रोडक्शंस की अगली फिल्म मुफ्त में करेंगे। लेकिन शाहरुख को वहां होना ही होगा।” यश जौहर की धर्मा ने हिट फिल्म ‘दोस्ताना’ (1980) के साथ शुरुआत की, लेकिन रमेश तलवार की ‘दुनिया’ (1984), प्रकाश मेहरा की ‘मुकद्दर का फैसला’ (1987), महेश भट्ट की ‘गुमराह’ (1990) और मुकुल एस आनंद की ‘अग्निपथ’ (1990) सभी फ्लॉप हो गईं और जौहर सब कुछ खोने के कगार पर थे। उस समय शाहरुख एक उभरते हुए अभिनेता थे, लेकिन ‘दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे’ की बड़ी सफलता से अभी भी कुछ महीने दूर थे, जिसने उन्हें भारत का टॉप स्टार बना दिया।

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वासवानी ने बताया कि शाहरुख, भट्ट साहब के साथ काम नहीं करना चाहते थे और अभिनेता को कुछ ऐसा करने के लिए मजबूर करने की उनकी पिछली कोशिशें बेकार और खतरनाक साबित हुई थीं जो वह नहीं करना चाहते थे। वासवानी ने कहा, “अब मुझे पता चल गया है कि शाहरुख, भट्ट साहब के साथ काम नहीं करना चाहते थे। फोन पर झगड़े हुए थे। वासी खान नाम का एक आदमी था, जो फिरोज खान का एसोसिएट डायरेक्टर था। उसने मुझे फोन पर शाहरुख का सेक्रेटरी बताया और कहा, ‘तू कौन है? शाहरुख से बात नहीं करवाने वाला?’ अब शाहरुख ने गलती से यह सुन लिया और उसने फोन उठा लिया और उसे दिल्ली से ऐसे बुरे शब्द कहे जो मैंने पहले कभी नहीं सुने थे। उसने मुझसे कहा, ‘अगर यह आदमी दोबारा फोन करेगा, तो मैं जाकर इसकी पिटाई कर दूंगा।'”

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वासवानी ने आगे कहा कि शाहरुख ने महेश भट्ट को अपनी स्थिति समझाने की कोशिश की और अपना मन बना लिया था। लेकिन यश की दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थितियों के बारे में सुनकर, वो मना नहीं कर पाए। “भट्ट साहब के प्रति सम्मान के साथ, उन्होंने उनसे कहा, “आपकी तरह का सिनेमा और मेरी तरह का सिनेमा मेल नहीं खाता।” वासवानी ने कहा, इसलिए करण ने मुझे फोन किया, क्योंकि शाहरुख को पाने का मतलब था भट्ट साहब को मुफ्त में पाना। शाहरुख़ महबूब स्टूडियो में शूटिंग कर रहे थे, और मैं उनसे पूछने वहां गया। मैंने उन्हें यश के बारे में बताया, और शाहरुख मान गए, लेकिन जैसे ही उन्होंने भट्ट साहब का नाम सुना, उन्होंने मना कर दिया। मैंने उन्हें पूरी बात बताई, और इस तरह फिल्म ‘डुप्लीकेट’ बनी। भट्ट साहब फिल्म के सेट पर शायद ही कभी मौजूद थे और करण और शाहरुख ने ही फिल्म बनाई।”

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कोमल नाहटा के साथ एक पुराने इंटरव्यू में, करण ने उस समय परिवार की आर्थिक स्थिति का वर्णन किया था और कहा था कि ‘अग्निपथ’ की असफलता ने उनके पिता को तोड़ दिया था। “ये बड़ी फ़िल्में थीं जिनमें बड़े निर्देशक और अभिनेता थे। लेकिन जब ‘अग्निपथ’ फ्लॉप हुई, तो मेरे पिता सचमुच टूट गए। उनका मानना ​​था कि यही वह फिल्म होगी जो उन्हें उस मुकाम तक पहुंचाएगी जिसके वो सपने देखते थे।”