मशहूर पत्रकार पुण्य प्रसून बाजपेयी इन दिनों सोशल मीडिया पर खूब एक्टिव नजर आ रहे हैं। वह समसामयिक मुद्दों पर बेबाकी से अपने विचार तो साझा करते ही हैं, साथ ही सरकार को भी उनकी गलतियों पर घेरने का कोई मौका नहीं छोड़ते हैं। हाल ही में उनका एक ट्वीट सोशल मीडिया पर खूब सुर्खियां भी बटोर रहा है, जिसमें उन्होंने सवाल किया कि क्या प्रधानमंत्री को लोकतंत्र से डर लगता है? अपने ट्वीट में पुण्य प्रसून बाजपेयी ने नौकरशाही और मीडिया का भी जिक्र किया।
पुण्य प्रसून बाजपेयी ने ट्वीट में किसान और मजदूरों को भी शामिल किया। उन्होंने लिखा, “यहां किसान व मजदूर को डर नहीं लगा साहिब, यहां नौकरशाही व मीडिया को डर लगता है। क्या प्रधानमंत्री को लोकतंत्र से डर लगता है।” पुण्य प्रसून बाजपेयी के इस ट्वीट को लेकर सोशल मीडिया यूजर ने भी खूब कमेंट किया।
राम कृपाल नाम के एक यूजर ने पीएम मोदी का जिक्र करते हुए कमेंट किया, “दिल्ली किसान आंदोलन में एक 13 साल के बच्चे से डर गए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी, उसको गिरफ्तार करवा दिया मोदी जी ने।” वहीं पीजे नाम के एक यूजर ने ट्वीट के जवाब में लिखा, “दाल नहीं गल रही है, इसीलिए कहते हैं कि डर लगता है बंधु।”
यहाँ किसान व मज़दूर को डर नहीं लगा साहिब..
यहाँ नौकरशाही व मीडिया को डर लगता है..क्या प्रधानमंत्री को लोकतंत्र से डर लगता है ?https://t.co/GbFwOOfxlN via @YouTube
— punya prasun bajpai (@ppbajpai) July 18, 2021
हसन खतरी नाम के एक यूजर ने पुण्य प्रसून बाजपेयी के ट्वीट पर कमेंट करते हुए लिखा, “पूरे विश्व में यह भी एक रिकॉर्ड रहेगा कि एक देश का पीएम ऐसा भी था, जिसने कभी कोई प्रेस कॉन्फ्रेंस नहीं की।” हनीष कुमार नाम के एक यूजर ने लिखा, “तभी तो एक भी प्रेस कॉन्फ्रेंस नहीं की, कहीं कोई सवाल न पूछले।”
बता दें कि पुण्य प्रसून बाजपेयी ने ट्वीट के साथ-साथ अपना यू-ट्यूब वीडियो भी साझा किया। वीडियो में उन्होंने सरकार पर तंज कसते हुए कहा, “हमने देश की मीडिया को रेंगते हुए देखा। हमने लोकतंत्र के मंदिर, यानी संसद में उन स्थितियों को भी देखा जहां लोकतंत्र नहीं था। हमने देश के भीतर वाकई शिक्षा प्राप्त करने के बाद भी रोजगार के लिए तरसते हुए लोगों को देखा।”
पुण्य प्रसून बाजपेयी ने अपने वीडियो में आगे कहा, “देश के प्रधानमंत्री क्या लोकतंत्र से डरते हैं? यह ऐसा सवाल है, जिसमें बार-बार यही गूंज सुनाई देगी कि इसका मतलब तो असमानता से निकला हुआ एक ऐसा संकल्प था, जिसके साथ न्याय, समानता और सबके हित का जिक्र था। ये सारी चीजें कहां गायब हो गईं? राजनैतिक सत्ता की ताकतें क्या इतनी ज्यादा हो सकती है, जहां वे अपनी मन मर्जी कर सकें।”