श्रीशचंद्र मिश्र

सामाजिक व पारिवारिक बंदिशों के आजादी से पहले के दौर में भी रूप और सौंदर्य की देवियों की हिंदी फिल्मों में कभी कमी नहीं रही। चुलबुले और सनसनाहट मचा देने वाले ग्लैमर का भी कभी अकाल नहीं पड़ा। कुलीन पृष्ठभूमि से आई सुसंस्कृत व्यवहार कुशल और आधुनिक तौर तरीके अपनाने वाली बोल्ड अभिनेत्रियों में कई के नाम लिए जा सकते हैं। अपनी जिंदगी को बिना किसी लाग लपेट और आडंबर के अपने ढंग से जीने वाली भी गिनी चुनी अभिनेत्रियां मिल जाएगी। लेकिन ये तमाम खूबियां जिस एक अभिनेत्री में थीं वह बेगम पारा के अलावा कोई और नहीं थी। गोरा रंग, बड़ी बड़ी शरारती आंखें और उनमें खुद के खूबसूरत होने का जबर्दस्त अहसास। कद करीब पांच फुट चार इंच और वजन 49 किलो। सिर्फ ग्यारह साल का करिअर और उसमें भी दो दर्जन से ज्यादा फिल्में नहीं। गंगा जमना के अधिकृत निर्माता नासिर खान की पत्नी आज के अभिनेता अयूब खान की मां। इमरजंसी में ‘विख्यात’ रहीं रुखसाना सुल्तान की मौसी और अमृता सिंह की नानी। यह है बेगम पारा का परिचय। लेकिन सिर्फ इतना ही नहीं। आज की अभिनेत्रियां जो सनसनी नहीं मचा पाती वह बेगम पारा अपनी आंखों की जुंबिश से बरपा देती थीं।

बेगम पारा के जीवन के कुछ और ऐसे अनूठे पहलू हैं जिन्हें जाने बिना उनके व्यक्तित्व और उनके जीवन दर्शन को पूरी तरह नहीं समझा जा सकता। अलीगढ़ के कुलीन और संस्कारवान मुस्लिम परिवार में तीसरी बेटी के रूप में जन्मी पारा हक की शुरुआती पढ़ाई लिखाई बीकानेर में हुई। पारा के पिता हक पंजाब में सेशन जज थे। बाद में वे प्रांतीय सरकार में मंत्री भी रहे। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में पढ़ाई के साथ-साथ पारा ने घुड़सवारी, शिकार, निशानेबाजी, तैराकी, क्रिकेट और बैडमिंटन में भी महारत हासिल की। उन्हीं की पहल पर फिल्मी सितारों का नुमाइशी क्रिकेट मैच शुरू हुआ। ऐसे पहले मैच में पारा ने सबसे ज्यादा रन बनाकर पुरुष कलाकारों को शर्मिंदा कर दिया।

पारा के मुंबई जाने और फिल्मों में काम करने का आधार एक अजीब संयोग से बना। पारा के बड़े भाई मंसूर ने तब की चर्चित अभिनेत्री प्रोतिमा दासगुप्ता से विवाह कर लिया था। इसे लेकर उनके माता-पिता काफी नाराज थे। पारा की बड़ी बहन जरीना एक हिंदू जमींदार के बेटे से प्रेम करने लगी थीं। छोटा भाई पुन्नू वायुसेना में जाना चाहता था। पारा अभिनेत्री बनना चाहती थीं। तीनों को पता था कि उन्हें घर से इजाजत नहीं मिलेगी। पारा ने रास्ता सुझाया। तीनों अपना सपना पूरा करने के लिए चुपचाप मुंबई चले गए। भाभी प्रोतिमा दासगुप्ता के साथ फिल्मी पाटिर्यों में जाकर और वहां की चमक दमक देखकर बेगम पारा ने फौरन तय कर लिया कि वे अभिनय ही करेंगी। 1944 में फिल्म ‘चांद’ से उनका फिल्मी जीवन शुरू हुआ। पहली फिल्म के लिए उन्हें 1500 रुपए मासिक वेतन मिला लेकिन पांच साल में ही उनका मेहनताना एक लाख रुपए तक पहुंच गया।

बेगम पारा को पीने का बहुत शौक था। उनकी महिला मित्र मंडली में नरगिस, गीता बाली, शम्मी और निम्मी थीं। पुरुष मंडली में केएन सिंह, मोतीलाल, डेविड जैसे दोस्त भी थे। दिलीप कुमार के भाई नासिर खान से उनका परिचय हुआ और जल्दी ही प्रेम में बदल गया। नासिर खान विवाहित थे। बेगम पारा दूसरी पत्नी नहीं बनना चाहती थीं। नासिर खान के अपनी पत्नी से अच्छे संबंध नहीं थे। लेकिन अपनी बेटी की वजह से वे रिश्ता निभा रहे थे। बेगम पारा के यह गारंटी देने पर कि वे बेटी का पूरा ख्याल रखेंगी, नासिर खान ने पत्नी को तलाक दे दिया। दिलीप कुमार जानते थे कि बेगम पारा जिस जीवन शैली की आदी हैं उसे जुटा पाना नासिर खान के बस की बात नहीं है। इसलिए उन्होंने नासिर के नाम से फिल्म गंगा-जमना बनाई। फिल्म की कमाई से नासिर खान और बेगम पारा ने समुद्र के किनारे एक बंगला खरीदा। 1974 में नासिर खान ने संजय खान और सायरा बानो को लेकर फिल्म जिद शुरू की। उसकी आखिरी शूटिंग के लिए नासिर खान गए और एक सुबह नरगिस का फोन आया कि दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया है।

बेगम पारा की तो दुनिया ही उजड़ गई। हताशा में उन्होंने शराब पीना शुरू कर दिया। एक दिन बेगम पारा की बहन आईं और उन्हें अपने साथ पाकिस्तान ले गईं। घर परिवार के बीच उनकी हताशा कम हुई। तीन साल बाद बेगम पारा मुंबई लौटीं। अपने बंगले का एक हिस्सा ब्यूटी पार्लर के लिए किराए पर देकर उन्होंने आय का साधन तलाशा। और एक बेटी व दो बेटों की परवरिश का रास्ता बना लिया। वे पहली भारतीय अभिनेत्री थीं जिनकी तस्वीरें अमेरिकी पत्रिका ‘लाइफ’ में पिन अप सुंदरी के रूप में छपी थीं। लेकिन उन्होंने कभी इसे अपनी बड़ी उपलब्धि नहीं माना।