कोरोना की पहली लहर के वक्त जब देश में पूर्णबंदी लागू हुई तो टीवी धारावाहिकों की शूटिंग भी बंद हो गई। लोगों को घर में बांधने के लिए केंद्रीय सूचना व प्रसारण मंत्रालय ने दूरदर्शन पर ‘रामायण’ और ‘महाभारत’ धारावाहिकों का पुनर्प्रसारण करवाया। हर घर में हर तरह के लोग 24 घंटे के लिए थे। जाहिर सी बात है कि रामायण और महाभारत सबकी जरूरतों को पूरा नहीं कर सकते थे। इसी समय युवा और मनोरंजन प्रेमियों ने ‘ओवर द टाप’ (ओटीटी) मंचों का सहारा लिया। पहली लहर के वक्त सबसे चर्चित हुई कोरियाई फिल्म ‘पैरासाइट’। इस ब्लैक कामेडी थ्रिलर से लोग अपने पूर्णबंदी के अनुभव को जोड़ने लगे कि वो किस तरह परजीवी की तरह रहने के लिए मजबूर हैं। निर्देशक बोंग जून-हो ने सामाजिक असमानता, पूंजीवाद और बुनियादी सुविधाओं के लिए लोगों के बीच के संघर्ष को बखूबी दिखाया। खुद को जिंदा रखने की कोशिश में लोग अपने लिए नए-नए झूठ को जन्म देते हैं।
इस दौरान अमेजन प्राइम वीडियो, नेटफ्लिक्स का कारोबार जमीन से आसमान पर पहुंच गया। इन माध्यमों पर जहां अभिव्यक्ति और खुलेपन की नई दुनिया ने देखते-देखते सघन आकार लिया, वहीं पुरानी फिल्मों का लुत्फ भी शामिल हुआ। ‘मनी हाइस्ट’ जैसी वेब शृंखला के लोग दीवाने हुए। अपराध एक ऐसी विधा है जिसकी तरफ मानव मन सबसे ज्यादा आकर्षित होता है। कहा जाता है कि हम सबके अंदर आपराधिक भावना छिपी होती है। हम उस भावना को कितना दबाते या उभारते हैं, यह उस पर निर्भर करता है कि हमारी शिक्षा-दीक्षा और माहौल कैसा है? लोगों के इस भाव को भुनाने के लिए ओटीटी मंचों पर क्राइम थ्रिलर की बाढ़ आ गई।
ओटीटी मंचों की खासियत यह थी कि लोग उसे टीवी स्क्रीन के साथ मोबाइल फोन पर भी देख सकते थे। हर कोई अपने मोबाइल फोन के साथ अपने-अपने स्क्रीन में सिकुड़ता-सिमटता गया। पारिवारिकता की अधिकता से उकताए लोग अपने-अपने फोन में गुम होने लगे। दिल्ली में रहने वाली अनु चोपड़ा (उम्र 50 साल) पूर्णबंदी से पहले टीवी धारावाहिकों की दीवानी थीं। पूर्णबंदी के दौरान उनके बेटे ने उनका परिचय ओटीटी प्लेटफार्म से करवाया। ओटीटी पर मिजार्पुर, पाताल लोक, स्पेशल आप्स जैसी शृंखला के बाद अनु जैसी महिलाओं के लिए मनोरंजन का दायरा बढ़ा। ‘सेक्रेड गेम्स’ की सीरीज उन्हें नए रोमांच की ओर ले गई।
अनु जैसी न जाने कितनी इतनी महिलाएं हैं जिन्होंने इस दौरान मनोरंजन और रोमांच के बीच अपनी पसंद की नई दुनिया को रचा और उसका भरपूर आनंद लिया। अनु की देवरानी गीता चोपड़ा कहती हैं- बच्चों की पढ़ाई के कारण मैंने घर में टीवी नहीं रखा है। लेकिन मैंने अपने फोन में ओटीटी मंचों की सदस्यता ले ली है। गीता ने कहा कि ओटीटी पर मैंने तुर्की, कोरियाई और पाकिस्तानी धारावाहिक देखे। ‘जिंदगी गुलजार है’ और ‘हमसफर’ जैसे पाकिस्तानी धारावाहिक तो इतने रियल से हैं कि क्या कहें। खासकर उर्दू जुबान की नफासत मन मोह लेती है। अनु बताती हैं- पाकिस्तानी सीरियल को देख मैं नास्टैल्जिक हो गई कि दोनों देश जो सांस्कृतिक रूप से एक है आज कैसे दुश्मन बन पड़े हैं।
डीयू की छात्रा नफीसा कहती है कि मम्मी के जमाने में वो एक-दूसरे के सूट और पर्स साझा करती थीं। हम तो अपने दोस्तों के साथ नेटफ्लिक्स के पासवर्ड शेयर करते हैं। नफीसा कहती है कि नेटफ्लिक्स पर वंस अगेन, पीसेज आफ वूमन, आउट आफ अफ्रीका देखने का अनुभव आज भी उसकी जेहन में जिंदा है। साफ है कि ओटीटी की दुनिया पूर्णबंदी के दौरान आबाद जरूर हुई पर आज वह हमारे लिए मनोरंजन के नए विकल्प से ज्यादा अभ्यास में शामिल है।