‘श्री 420’ (1955) का गाना ‘रमैया वस्तावैया… मैंने दिल तुझको दिया…’ आज की पीढ़ी भी गुनगुनाती मिल जाएगी। प्रभु देवा के निर्देशन में ‘रमैया वस्तावैया’ (2013) नामक फिल्म भी बनी। मगर कम ही लोग जानते हैं कि रमैया वस्तावैया का क्या मतलब था? पूरा गाना तो हिंदी में था, मगर इसकी शुरुआत रमैया वस्तावैया से होती है, जिसका तेलुगू में अर्थ था भगवान राम आप आएंगे। दरअसल 1955 में जब राज कपूर ‘श्री 420’ बना रहे थे, तब उनके दिमाग में 1953 में बनी फिल्म ‘आह’ की नाकामी और कामयाबी दोनों ही थी। ‘आह’ हिंदी में विफल थी। हालांकि इसके गाने (लता-मुकेश के गाए ‘ये शाम की तनहाइयां…’ और लता का गाया ‘राजा की आएगी बरात…’) खूब लोकप्रिय थे। ‘आह’ तेलुगू में ‘प्रेमा लेखलु’ नाम से डब हुई और खूब चली। ‘प्रेमा लेखलु’ के गानों की धुनें तो ‘आह’ की ही थीं मगर उन पर तेलुगू गाने कवि अरुद्रा (भगवथलु शंकर शास्त्री) से लिखवाए गए थे, जो गीतकार के साथ-साथ संगीतकार भी थे।

1950 के दशक में तमिल और तेलुगू सिनेमा में गायक ए राजैया और जिक्की की जोड़ी खूब लोकप्रिय थी। राज कपूर और शंकर जयकिशन को लता और मुकेश के तमिल-तेलुगू विकल्प के रूप में यही जोड़ी जंची इसलिए उन्होंने ‘प्रेमा लेखलु’के लिए जिक्की और ए राजैया को मुंबई बुलाया और वहां गानों की डबिंग करवाई। राजैया हिंदी में (1952 की ‘बहुत दिन हुए’) गाने गा चुके थे और एक तरह से पहले दक्षिण भारतीय गायक थे, जिन्होंने हिंदी में गाने गाए थे। हालांकि उनसे पहले गायिका एमए सुब्बुलक्ष्मी 1947 की ‘मीरा’ में हिंदी गाने गा चुकी थीं। जिक्की (पिल्लवलु गजपति कृष्णावेणी) और राजैया ने लता और मुकेश के ‘आह’ में गाए गानों को जब अपने सुर दिए, तो उन गानों पर तेलुगूभाषी दर्शक झूम उठे। तेलंगाना में चले जमींदारी विरोधी आंदोलन से प्रभावित अरुद्रा ‘प्रेमा लेखलु’ के बाद तेलुगू फिल्मों में प्रतिष्ठित हो गए।

यू ट्यूब पर ‘प्रेमा लेखलु’ में ‘राजा की आएगी बारात…’ गाने को उसी धुन के साथ जिक्की की आवाज में सुनना एक अलग ही तरह का अनुभव है। ‘प्रेमा लेखलु’ को जो कामयाबी मिली उससे खुद राज कपूर हैरान थे। पहली बार उन्होंने आरके में अपने सहायक रहे ‘नवाथे’ को मौका दिया था और वह चाहते थे कि आरके में छोटे बजट की संदेशप्रधान फिल्में बनने की यह परंपरा आगे भी चलती रहे (इसी परंपरा के तहत आरके में ‘बूट पॉलिश’,‘जागते रहो’, ‘अब दिल्ली दूर नहीं’, ‘बीवी ओ बीवी’, ‘कल आज और कल’ बनी)।

हिंदी में ‘आह’ की विफलता ने राज कपूर के इसी सपने को झटका दिया था मगर ‘प्रेमा लेखलु’ की सफलता से उनकी उम्मीदों को जगाए रखा। उत्साहित राज कपूर ने इस सफलता के बाद अपने सहायक राजा नवाथे, प्रकाश अरोड़ा से लेकर रणधीर कपूर तक से फिल्में बनवाईं। बहरहाल, जब 1955 में राज कपूर शंकर जयकिशन से ‘श्री 420’ के गाने बनवा रहे थे तब शैलेंद्र से ‘मैंने दिल तुझको दिया…’ गाने में ‘रमैया वस्तावैया’ टुकड़ा जुड़वा कर अपनी तरह से तेलुगूभाषी दर्शकों का आभार जताया था। ‘आह’ को तेलुगू में मिली सफलता की कृतज्ञता के कारण शोमैन राज कपूर के दिल से यह आभार निकला था।