हाल ही में एक इंटरव्यू में, निर्देशक अनुराग कश्यप ने कहा कि उन्हें चीन और ईरान के फिल्म निर्माताओं से प्रेरणा मिलती है। उन्होंने कहा कि उन्हें कोरियाई लोगों से प्रेरणा मिलती है, जो उम्र बढ़ने के साथ-साथ खुद को और भी बेहतर बनाते रहते हैं। उन्होंने इंडियन पैरेलल सिनेमा आंदोलन के एक प्रमुख व्यक्ति अवतार कृष्ण कौल का भी उदाहरण दिया, जिन्हें मणि कौल और मृणाल सेन जैसे महत्व नहीं दिया जाता। आज हम उन्ही अवतार कौल के बारे में आपको बताने जा रहे हैं, जिनका 35 वर्ष की आयु में निधन हो गया था और उन्होंने केवल एक ही फिल्म बनाई थी और उसी के लिए उन्हें नेशनल अवॉर्ड मिला था। लेकिन उनकी बदकिस्मती थी कि वो जीवन में कुछ और कर पाते उससे पहले ही उनका निधन हो गया। उनके परिवार को उनके निधन की सूचना मिलने के कुछ ही घंटे पहले उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

अवतार कौल का जन्म 1939 में श्रीनगर में हुआ था और उनके पिता ने बचपन में ही उन्हें घर से निकाल दिया था। अवतार ने एक चाय की दुकान पर और फिर एक होटल में काम किया और तीन वक्त की रोटी मिलने लगी। कुछ साल बाद, उन्हें विदेश मंत्रालय में नौकरी मिल गई और उनकी नियुक्ति न्यूयॉर्क में हो गई, जहां उन्होंने फिल्म निर्माण का काम भी सीखा। उनके भतीजे विनोद कौल ने द हिंदू को दिए एक इंटरव्यू में बताया, “वह एसोसिएटेड प्रेस के लिए कॉपी होल्डर के तौर पर काम करते थे और जब संपादक ने उन्हें आर्थर कोस्टली की किताब डार्कनेस एट नून पढ़ते हुए देखा, तो उन्हें एहसास हुआ कि अवतार पढ़े-लिखे हैं और उन्होंने उन्हें एक समाचार में लेखक की नौकरी ऑफर की। 1964 तक अवतार इस नौकरी में रहे और फिर न्यूयॉर्क में ब्रिटिश सूचना सेवा में शामिल हो गए।”

द वायर के लिए लिखे एक लेख में, विनोद कौल ने अपने अंकल के शुरुआती जीवन को याद करते हुए लिखा, “दिल्ली में सबसे बड़े भाई-बहन के रूप में अवतार ने अपने पिता की क्रूरता को झेला। एक दिन गुस्से में आकर उनके पिता ने उन्हें घर से निकाल दिया और चेतावनी दी कि वे कभी वापस न लौटें। कोई आश्रय न मिलने पर, अवतार को दिल्ली रेलवे प्लेटफॉर्म पर सोने के लिए मजबूर होना पड़ा और अंततः अपना गुजारा चलाने के लिए उन्होंने एक चाय बेचने वाले, बंसी चाय वाले के यहां काम करना शुरू कर दिया। उनके छोटे भाई को अपने बड़े भाई को इस हालत में देख दुख होता था,लेकिन पिता के क्रोध के कारण वो उन्हें घर वापस बुलाने की हिम्मत नहीं जुटा पाए।”

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1970 में, अवतार मर्चेंट/आइवरी प्रोडक्शंस की फिल्म बॉम्बे टॉकी पर काम करने के लिए भारत लौट आए। उन्होंने राखी और एमके रैना अभिनीत “27 डाउन” नामक फिल्म का निर्देशन किया। रमेश बख्शी के हिंदी उपन्यास “अठारा सूरज के पौधे” पर आधारित यह फिल्म एक रेलवे कर्मचारी की कहानी है जिसकी मुलाकात ट्रेन में एक लड़की से होती है। फिल्म का संगीत हरिप्रसाद चौरसिया और भुवनेश्वर मिश्रा ने दिया था, और प्रोडक्शन डिजाइन सत्यजीत रे के सहयोगी बंसी चंद्रगुप्त ने संभाला था। “27 डाउन” ने हिंदी में बेस्ट फीचर फिल्म के लिए नेशनल अवॉर्ड पुरस्कार जीता था।

उनके भतीजे के मुताबिक अवतार ने हमेशा अपने परिवार को ही सबकुछ माना था। उन्होंने लिखा, “अपनी युवावस्था में कठिनाइयों और बुरे व्यवहार के बावजूद, वो परिवार के हर सदस्य का ध्यान रखते थे। अपनी अंतिम सांस तक, अवतार अपने परिवार के लिए एक सहारा थे, हमेशा मदद के लिए तत्पर रहते थे।” परिवार तब स्तब्ध रह गया जब उन्हें मुंबई में उनके निधन की खबर मिली। उनका निधन डूबने से हुआ था। कुछ घंटे पहले ही उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता घोषित किया गया था।

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उनके भतीजे विनोद कौल ने द वायर में लिखा, “उनकी मां, जो बेसब्री से उनके लौटने का इंतजार कर रही थीं, उनके जाने से स्तब्ध थीं। उनके सबसे छोटे भाई, जिन्होंने अवतार के फिल्म निर्माण में मदद करने के लिए भारतीय वायु सेना की नौकरी छोड़ दी थी, टूट गए। वो मेंटल ट्रॉमा से जूझ रहे थे और उन्हें दौरे पड़ने लगे थे। अवतार का छोटा भाई भी बहुत दुखी था उसने खुद को संयमित रखा और परिवार को पूरी तरह से टूटने से बचाने की हिम्मत बनाए रखी।”