Abhishek Bachchan Ghoomer Movie Review: एक कहावत है, जिस यकीनन हर किसी ने सुना हो होगा कि अगर किसी चीज को पूरी शिद्दत से चाहो तो उसे मिलाने पूरी कायनात लग जाती है। कुछ ऐसी ही एक कहानी लेकर आए हैं अभिषेक बच्चन (Abhishek Bachchan)। उनकी मोस्टअवेटेड फिल्म ‘घूमर’ (Ghoomer) आज यानी कि 18 अगस्त को रिलीज की गई है। इस मूवी की कहानी कहीं ना कहीं हर किसी की जिंदगी को जोड़ती है। फिर उसे जोड़ने का तरीका अलग-अलग हो सकता है। सभी के जीवन में दुख कम नहीं है। कोई किसी चीज को लेकर परेशान है तो कोई किसी चीज को लेकर, लेकिन जब आप अभिषेक बच्चन की इस फिल्म को देखेंगे तो आपको लगेगा कि आपका दुख तो कुछ भी नहीं है। इस दुनिया में ऐसे-ऐसे लोग भी हैं, जो कितनी मुश्किलों से गुजरकर भी मुकाम हासिल कर ही लेते हैं। बस जज्बा नहीं हारते हैं और मुश्किलों का सामना करते हैं। हमारी इतनी बातों से तो आप समझ ही गए होंगे कि ‘घूमर’ कैसी है, लेकिन इस रिव्यू में हम आपको बताएंगे कि इसे क्यों देखना चाहिए तो चलिए प्वॉइंट्स बताते हैं…
जिंदगी का फलसफा देती है फिल्म
अभिषेक बच्चन की फिल्म ‘घूमर’ एक ऐसी कहानी है या ये कह लो कि एक ऐसी घटना के बारे में बताती है, जब इंसान सबकुछ हार चुका होता है। किसी ना किसी वजह से उसका सपना टूट जाता है, जब आशा की एक किरण भी नजर ना आ रही हो तो वहां कोई उम्मीद की किरण दिखाए तो वो यकीन कर पाना मुश्किल होता है, लेकिन अगर कुछ कर पाने की चाहत है, लगन है तो कुछ भी नामुमकिन नहीं है। अरुणिमा सिन्हा, जिनका एक हादसे में दोनों पैर कट गए फिर भी उन्होंने चोटी पर तिरंगा लहराया। ठीक उसी तरह से ‘घूमर’ में भी एक ऐसी लड़की की कहानी को दिखाया गया है, जो अपने सपनों के पीछे पागल है। वो एक हाथ कट जाने के बाद भी हार नहीं मानती है। इस दौरान आपको इसकी कहानी जीवन का बड़ा सबक सिखाती है।
दमदार स्टोरी और डायरेक्शन
फिल्म ‘घूमर’ की कहानी एक इंस्पिरेशनल स्टोरी, जिसमें दमदार डायलॉग्स के साथ-साथ शानदार सॉन्ग्स हैं। इसकी हर कड़ी आपको फिल्म से जोड़ती है। इसकी कहानी की शुरुआत क्रिकेट प्ले ग्राउंड से होती है फिर फ्लैशबैक में जाती है और एक लड़की अनीना दीक्षित (सैयामी खेर) के संघर्ष के बारे में बताती है कि कैसे वो क्रिकेटर बनने का सपना देखती है। इंडिया टीम में सेलेक्शन भी हो जाता है। मगर एक घटना होती है, जो सपने को पल भर में चूर-चूर कर देती है। फिर पदम सिंह सोडी (अभिषेक बच्चन) उसकी जिंदगी में उम्मीद की किरण लेकर आते हैं। वो अनीना को टीम इंडिया के लिए तैयार करते हैं। इस दौरान एक संघर्ष और जीवन के कई सबक देखने के लिए मिलते हैं। फिल्म का डायरेक्शन कमाल का है। ये आपको कुर्सी से बांधे रखती है। हर कड़ी आपको इसका अंत जानने की क्यूरोसिटी को बढ़ाती है। फिल्म 2.15 घंटे की है। आर बाल्कि ने शानदार डायरेक्शन किया है।
लाजवाब अभिनय ने बांधा समां
‘घूमर’ में अभिषेक बच्चन और सैयामी खेर ने दमदार अभिनय किया है। इसमें जूनियर बच्चन ने अभी तक के किरदारों से अलग किरदार निभाया है साथ ही उसके साथ न्याय भी किया है। इसे देखने के बाद तो आप उनके अभिनय के मुरीद हो जाएंगे। ‘दसवीं’ के बाद अभिषेक का एक और अलग अभिनय देखने के लिए मिला है। शबाना आजमी ने फिल्म में सैयामी की दादी का रोल प्ले किया है, जो उन्हें सपोर्ट करती हैं और आगे बढ़ने के प्रेरित करती हैं। वहीं अंगद बेदी ने एक्ट्रेस के बॉयफ्रेंड जीत का रोल निभाया है। सपोर्टिंग रोल है मगर उनका भी कमाल का अभिनय है। इसके साथ ही फिल्म में भारत के पूर्व क्रिकेटर बिशन सिंह बेदी भी हैं।
बॉलीवुड में कुछ नयापन
अभिषेक बच्चन की फिल्म ‘घूमर’ देखने के बाद आपको लगेगा कि लंबे समय के बाद आपने कुछ अच्छा और नयापन देखा है। जहां पिछले कुछ समय से धर्म को लेकर विवादित फिल्में बन रही हैं और कार्टूनिस्ट टाइप की फिल्में देखने के लिए मिल रही हैं वहीं, इस बीच जूनियर बच्चन की मूवी में इन सबसे कुछ नयापन देखने के लिए मिलेगा और एकदम अलग अभिनय के साथ दमदार स्टोरी, जो लोगों के जीवन से कहीं ना कहीं कनेक्ट होती है।
अमिताभ बच्चन की कविताएं
वहीं, फिल्म में जूनियर बच्चन के साथ अमिताभ बच्चन भी हैं। लेकिन उन्होंने इसमें कैमियो किया है। मगर उनके कुछ मिनट के ही रोल ने सभी का दिल जीत लिया। उनकी आवाज में जोश से भरी कविताएं आपके रोम-रोम में जोश भर देगी। कुछ पल के लिए लगेगा कि आप कोई रियल सीन देख रहे हों और आपकी एक्साइटमेंट इतनी बढ़ जाएगी कि आप फिल्म के लिए और भी बेताब हो जाएंगे। बिग बी की एंट्री कमाल की होती है।
‘घूमर’ क्यों?
अभिषेक बच्चन की फिल्म ‘घूमर’ एक फिल्म ही नहीं बल्कि ये एक कहानी को बयां करती है, जो जीवन के फलसफा को सिखाती है। साथ ही ये बताती है कि बाएं हाथ का खेल हो सकता है…। खैर, अगर आप इसे देखने का मन बना रहे हैं तो सबसे पहले सिनेमाघरों में एक सवाल लेकर जाएं कि आखिर इसका नाम ‘घूमर’ क्यों है? फिल्म की कहानी तो इंस्पिरेशनल है तो फिर ‘घूमर’ क्यों? जब आप इस क्यूरोसिटी के साथ थिएटर का रुख करेंगे तो इसकी तलाश करते हुए आप मूवी की कहानी का लुत्फ उठा सकते हैं। कहानी को करीब से जानने के लिए पहले ‘घूमर’ को समझिए। इसके लिए थिएटर का रुख कीजिए। फिल्म को हर किसी को देखना चाहिए और खासकर उन लोगों को तो जरूर देखना चाहिए, जो अपने संघर्ष से हार कर सपने देखना छोड़ चुके हैं। मेरी ओर से इस फिल्म को 5 में से 4 रेटिंग।