Gadar 2 Review: 22 साल बाद बड़े पर्दे पर गदर, सनी देओल का कमबैक, आजाद भारत की एक सबसे बड़ी आइकॉनिक फिल्म, डायलॉग ऐसे कि सीटी बजाने को हो जाएं मजबूर। ये तो सिर्फ जरा सी भूमिका बांधने का प्रयास है, गदर 2 के मेकर्स ने तो ऐसा माहौल बना दिया कि मानो इससे बड़ी कोई दूसरी फिल्म हो ही नहीं सकती। लोगों के बीच भी ऐसा माहौल तैयार कर दिया कि गूगल पर आम आदमी भी लगातार चेक करता रहा- गदर 2 की एडवांस बुकिंग कितनी हो गई! मतलब मेकर्स से ज्यादा तो उन फैन्स को प्रेशर महसूस हो रहा था। अब वो प्रेशर रिलीज हो गया है, गदर 2 रिलीज हो गई है, फिर अनिल शर्मा ने डायरेक्ट की है, सनी देओल तारा सिंह बन दहाड़ रहे हैं, सकीना भी आ गई है और बेटा जीते भी बड़ा हो गया है। यानी कि गदर मचना लगभग तय है, लगभग इसलिए क्योंकि अब सनी देओल की इस गदर 2 का सटीक रिव्यू हम करने जा रहे हैं
कहानी
गदर की कहानी 1947 के बंटवारे पर आधारित थी, अब 22 साल बाद 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के बैकड्रॉप में गदर 2 शुरू हुई है। पाकिस्तान आज भी तारा सिंह (सनी देओल) को भूला नहीं है। 40 पाकिस्तानी जवानों को मौत के घाट उतारने वाला तारा सिंह कई लोगों का उस मुल्क में दुश्मन बन चुका है। ऐसा ही एक दुश्मन है मेजर जनरल हामिद इकबाल (मनीष वाधवा)। उसके दिल में दो वजहों से हिंदुस्तान और तारा सिंह के लिए नफरत उबाल मार रही है, पहली- बंटवारे में उसका परिवार खत्म हो गया, दूसरी- तारा सिंह ने पाकिस्तान में घुसकर उसके जवानों को बेरहमी से मार डाला। यानी कि बदले की भावना और हिंदुस्तान को सबक सिखाने का उसका सपना मजबूत होता जा रहा था। ये कहानी का एक सेगमेंट है, दूसरा भारत में शुरू होता है जहां अपना तारा सिंह वहीं ट्रक ड्राइवर बन सादगी वाला जीवन जी जा रहा है। सकीना (अमीषा पटेल) आज भी तारा पर ही जान छिड़कती है, उनका बेटा जीते (उत्कर्ष शर्मा) बड़ा हो गया है। फिल्मों का शौक है, एक्टर बनने की चाहत है, लेकिन तारा उसे सेना का अफसर बनता देखना चाहता है।
अब इस फैमिली ड्रामे में भारत-पाकिस्तान का 1971 वाला युद्ध ट्विस्ट लेकर आता है। सेना को फिर पाकिस्तान को सबक सिखाना है, तारा सिंह क्योंकि ट्रक ड्राइवर है तो उसके जरिए हथियारों को सेना तक पहुंचाने की बात भी चलती है। अब इसी ताम-झाम में तारा पाकिस्तान पहुंच जाता है। ( कैसे पहुंचता है, ये एक सस्पेंस है जो यहां बताना ठीक नहीं) तारा के पीछे-पीछे बेटा जीते भी वहां चला जाता है। अब तारा पाकिस्तान में, बेटा पाकिस्तान में, यानी कि गदर मचाने का टाइम आ गया है। अब आगे की पूरी कहानी इसी थीम पर दौड़ती है। अब आपके मन में सवाल आएगा, तारा पाकिस्तान कैसे पहुंचा, बेटा जीते वहां कैसे पहुंचा, पाकिस्तान में जाकर हुआ क्या, किसने गदर मचाया, ऐसे कई और सवालों का जवाब आपको मिलेगा जब आपनी जिंदगी के 155 मिनट हॉल में बिताएंगे और बैठकर देखेंगे अनिल शर्मा निर्देशित गदर 2।
ड्रामा गायब, डायलॉगबाजी गायब, क्या कर गए अनिल शर्मा!
लेकिन क्या आपको ये फिल्म देखनी चाहिए? हम अगर मना भी कर दें तो आप देखने जरूर आएंगे। ऐसे में आगे बढ़ते हैं। ये बात बिना लाग लपेटे के कहनी पड़ेगी कि अनिल शर्मा ने सबकुछ बर्बाद कर दिया। उन्होंने कई इंटरव्यू में कहा कि उन्हें गदर 2 के लिए कई सालों तक सही कहानी नहीं मिल रही थी। बाद में मिली तो फिल्म बन गई। लेकिन जो कहानी उन्होंने दर्शकों को 22 साल बाद परोसी है, वो बासी है, बिना स्वाद के है, बिना ड्रामे के है, बिना सीटी बजाने वाले डायलॉग्स के है। कहानी का पहला हाफ इतना धीमा है कि अगर आपको झपकी भी लग जाए तो खुद को दोष मत दीजिएगा। बड़ी बात ये है कि आप कुछ बड़ा मिस भी नहीं करेंगे। ये इस कहानी की खूबसूरती है जहां पर आप तुक्के आराम से लगा सकते हैं।
कहानी खत्म, सिर्फ पुराने गानों के सहारे चलती फिल्म
गदर 2 का ट्रेलर देखकर एक बात साफ हो गई थी कि नॉस्टैलजिक फैक्टर पर खेला जाएगा। हिंदी में बोले तो पुरानी यादों के सहारे 22 साल बाद जनता के दिल को जीतने की कोशिश की जाएगी। लेकिन किसी ने क्या खूब कहा है- विगत के सुखों को भूल, वर्तमान में जी और भविष्य का वरण कर। यानी कि पुरानी बातों को छोड़कर अगर अनिल शर्मा भी आगे बढ़ जाते तो शायद गदर 2 सही मायनों में कुछ गदर मचाती। लेकिन यहां तो फ्लैशबैक के सहारे एक फ्रेंचाइस को आगे बढ़ाने की कोशिश ज्यादा दिखती है। तभी तो फिल्म का जो शुरुआती एक घंटा है, उसमें दर्शकों को एक नहीं, दो नहीं, तीन भी नहीं, पूरे चार गाने सुनने को मिल जाते हैं। वहां भी दो गाने तो पुराने वाले ही हैं, बस ट्रीटमेंट नया दिया गया है।
बात जब सेकेंड हाफ की आती है, तब ये कहा जा सकता है कि फिल्म अपनी असली थीम को पकड़ती है। वो थमी कहानी नहीं, एक्शन है। सेकेंड हाफ में काफी मार-धार देखने को मिल जाती है, सनी देओल का टिपिकल अंदाज फैन्स को तो पसंद आ ही सकता है। ये भी कह सकते हैं कि मेकर्स ने सारे पावरफुल डायलॉग्स भी पोस्ट इंटरवल के लिए छोड़ दिए थे। ये अलग बात है कि कुछ ही सही तरह से लैंड हुए तो कुछ काफी फोर्स दिखाई पड़े।
सनी देओल का एक्शन अवतार अच्छा, बाकी स्टारकास्ट को क्या हुआ!
गदर 2 के एक्टिंग डिपार्टमेंट की बात करें तो ये फिल्म सिर्फ और सिर्फ सनी देओल की है। कहने को बेटे उत्कर्ष को अनिल शर्मा ने एक अलग ढंग से लॉन्च करने की कोशिश की है, लेकिन लाइमलाइट में तो सनी ही रहते हैं। तारा सिंह के किरदार को अगर कोई और करता, तो शायद आप उसे देख भी नहीं पाते क्योंकि कुछ किरदार ऐसे होते हैं जो किसी खास शख्स के लिए ही बने होते हैं। तारा सिंह भी वही किरदार है, ऐसे में सनी ने अपना काम बढ़िया तरीके से किया है। कमी ये रह गई कि इमोशनल और ड्रामे वाले सीन्स में सनी देओल भी काफी बेअसर से लगे, जो पहली गदर में उनकी आंखे भी काफी कुछ बोल जाती थीं, यहां वो एक्स फैक्टर मिसिंग रहा। उनका एक्शन अवतार शानदार रहा और शायद कई दर्शक सिर्फ उसी को देख फिल्म को फुल नंबर भी दे दें।
अमीषा पटेल को इस फिल्म में सिर्फ सपोर्टिंग एक्टर की तरह जगह दे दी गई है। पहली गदर जब आई थी, अमीषा फिल्म इंडस्ट्री में नई-नई थीं, उनके चेहरे पर एक मासूमियत थी जो सकीना के किरदार के साथ सटीक बैठ गई। लेकिन 22 साल बाद ना वो मासूमियत है और ना ही वो फ्रेशनेस। अमीषा का किरदार तो कमजोर तरह से गढ़ा ही गया है, लेकिन खुद अमीषा की एक्टिंग भी कोई खास नहीं लगने वाली है। कुछ जगहों पर तो ओवरएक्टिंग की डोज भी दर्शकों को दी गई है। इसी तरह नए-नए आए उत्कर्ष शर्मा को अपनी एक्टिंग पर तो अभी काफी मेहनत करनी पड़ेगी। 22 साल पहले उस बच्चे को देख क्यूट कहा जा सकता था, लेकिन वो बड़ा हो गया है, ऐसे में क्यूट फैक्टर जमता नहीं। एक्शन सीन्स में जरूर उत्कर्ष कुछ निखरे हैं, लेकिन बाकी एक्टिंग के बारे में ज्यादा कुछ नहीं कहा जा सकता। उनके साथ कास्ट की गईं सिमरत कौर स्क्रीन पर सुंदर लगी हैं, लेकिन शायद वे खुद अपनी एक्टिंग स्किल्स से ज्यादा प्रभाव छोड़ना चाहती होंगी, जो यहां नहीं हो पाया है।
गदर की सबसे बड़ी यूएसपी अमरीश पुरी थे। अशरफ अली के रोल में उन्होंने ऐसी जान फूंकी कि आज भी स्क्रीन पर अगर वो आ जाते तो हम तालियां बजाने को मजबूर रहते। लेकिन अब उनकी जगह मनीष वाधवा ने ले ली है। कमाल के कलाकार हैं, इसमें शक नहीं, लेकिन गदर फिल्म में वे ओवर द टॉप लगे हैं। ये साफ पता चल रहा था कि उन्होंने खुद को निगेटिव दिखाने के लिए खूब मेहनत की है। वो मेहनत ही कई मौकों पर दर्शकों का कनेक्शन उनके किरादर से तोड़ देती है। नेचुरल रहते तो कम बोलकर भी छाप ज्यादा छोड़ सकते थे। फिल्म में कई दूसरे सहकलाकार भी मौजूद हैं, पहली गदर वाले भी कुछ किरदार रखे गए हैं, उन सभी का काम औसत कहा जा सकता है। कुछ तो जबरदस्ती भी ढूंस दिए गए हैं।
फिल्म की सबसे बड़ी कमजोरी और उसकी इज्जत बचाती एक पहलू
अब इस फिल्म का जो सबसे बड़ा लूपहोल रहा, उस बारे में बात कर लेते हैं। गदर 2 का डायरेक्शन फिर अनिल शर्मा ने ही किया है। लार्जर दैन लाइफ फिल्म बनाना उनकी खासियत है, ऐसे में यहां ये शिकायत नहीं की जा सकती कि आपने गाड़ियों को क्यों उड़ाया, एक आदमी ने पचास को कैसे मार दिया। लेकिन, ये जरूर कहा जाएगा कि इस बार गदर 2 का इमोशनल एंगल बहुत फीका रहा। पहली गदर देखकर कई बार एक्शन से ज्यादा तो उस ड्रामे में मजा आया था जिसमें बस दिल से बात की गई थी, दर्द बयां कर दिए गए थे। लेकिन गदर 2 उस डिपार्टमेंट में काफी पिछड़ी दिखती है। इसका भी कारण कमजोर डायलॉग्स कहे जा सकते हैं। जो डायलॉग आपने ट्रेलर में देखे थे, बस वहीं सही लगते हैं। इसके अलावा एक काद और हो सकते हैं, लेकिन वो आपके दिल पर परमानेंट वाली छाप नहीं छोड़ेंगे।
गदर 2 का एक्शन औसत रह गया है। खराब VFX ने कई जगहों पर मजे को किरकिरा करने का काम किया है। मतलब इतना बड़ा बजट, गदर जैसी फ्रैंचाइस, फिर भी VFX दमदार नहीं, ये देख हर कोई निराश होगा। तारीफ एक्शन डायरेक्टर अब्बास अली मोघल की सिर्फ इसलिए की जा सकती है क्योंकि उन्होंने सनी देओल को फिर उस अवतार में जिंदा कर दिया है। सनी का एक्शन स्क्रीन पर देख दर्शकों को मजा आने वाला है। वहीं थोड़ा बहुत जोश भरने का काम भी करती है। सनी का एक्शन ही फिल्म के क्लाइमेक्स को भी थोड़ा बहुत उठाने का काम कर जाता है। पैसा वसूल तो नहीं कह सकते, लेकिन कम से कम कुछ तो देखने को मिलता है।
बाकी गदर 2 पूरी तरह अपनी आइकॉनिक फिल्म को खुद ही बट्टा लगाने का काम करती है। मजे की बात ये है कि पहली की नाम पर दूसरी को मार्केट में अच्छी तरह से बेच दिया गया है। इसलिए अगर शुरुआती कुछ दिन में तूफानी कमाई होती दिख जाए तो हैरानी किसी को नहीं होने वाली है। और हां KATHA CONTINUES, बाकी आप समझदार हैं।