निर्देशक-चारुदत्त आचार्य।

कलाकार-अली फैजल, रिया चक्रवर्ती, अनुपम खेर, स्मिता जयकर, स्वानंद किरकिरे।
उदारीकरण की नीतियों ने भारत में बड़ी कंपनियों के लिए बाजार को बढ़ा दिया है। लेकिन उसी अनुपात में छोटी या मझोली कंपनियों के लिए समस्याएं पैदा कर दी हैं। बड़े डिपार्टमेंटल स्टोर खुल रहे हैं और छोटे दुकानदार उन्हें अपने अस्तित्व के लिए संकट के रूप में देख रहे हैं। बहुराष्ट्रीय कंपनियां हर जगह अपना एकाधिकार चाहती हैं इसलिए वे पहले से चले आ रहे लघु उद्योगों को अपने रास्ते से हटाना चाहती हैं। चारुदत्त आचार्य की फिल्म सोनाली केबल इसी समस्या को उठाती है।

‘सोनाली केबल’ सोनाली तांडे (रिया चक्रवर्ती) नाम की युवा लड़की के इर्द-गिर्द घूमती है जो केबल के माध्यम से इंटरनेट लगाने का धंधा करती है। इलाके में सोनाली का धंधा ठीक चलता है। लेकिन तभी एक बड़ी कंपनी शायनिंग इस धंधे में प्रवेश करती है और सोनाली केबल पर संकट के बादल मंडराने लगते है। लेकिन सोनाली तो लौह महिला है। कम से कम निर्देशक ने उसे इसी रूप में पेश किया है। तो सोनाली भिड़ जाती है शायनिंग से। अब दोनों में कौन जीतेगा? बाहरी और वास्तविक दुनिया में तो बड़ी कंपनियां जीत रही हैं। लेकिन फिल्म में या तो हीरो जीतेगा या हीरोइन, सो यहां सोनाली जीतती है। लेकिन इस जीत का आनंद दर्शक नहीं उठा पाता क्योंकि फिल्म देखते-देखते वह इतना बोर हो जाता है कि थकान उस पर हावी हो जाती है।

अनुपम खेर ने शायनिंग के मालिक वाघेला की भूमिका निभाई है। वे कभी हास्य अभिनेता की तरह अभिनय करते हैं तो कभी खलनायक की तरह। इस तरह फिल्म का और उनके अभिनय का फोकस गड़बड़ा गया है। रिया चक्रवर्ती भी ज्यादा नहीं जमी हैं। अली फैजल ने सोनाली के प्रेमी की भूमिका निभाई है और उनका रोल सिर्फ भर्ती का लगता है। बेहतर होता अगर निर्देशक ने इसकी कहानी पर जम कर काम किया होता और अलग-अलग किरदारों की भूमिका पर ध्यान दिया होता।