मिट्टी में मिला दे कि जुदा हो नहीं सकता, अब इस से ज़यादा मैं तेरा हो नहीं सकता। अपनी लिखी ये पंक्तियां हमें सुनाने वाले मशहूर शायर मुनव्वर राना अब हमारे बीच नहीं रहे। रविवार देर रात दिल का दौरा पड़ने से उनकी मौत हो गई। वह पिछले कई दिनों से लखनऊ के पीजीआई में भर्ती थे।

पिछले साल मुनव्वर राणा को तबीयत खराब होने पर लखनऊ के अपोलो अस्पताल में भर्ती कराया गया था। जिसके बाद से उनकी हालत में सुधार नहीं हो रहा था। उनकी बेटी सुमैया राना ने बताया कि रात साढ़े 11 बजे के करीब उन्होंने अंतिम सांस ली। उनकी उम्र 71 साल थी। उन्हें किडनी और दिल से जुड़ी बीमारियां थीं। रायबरेली में आज (सोमवार) अंतिम संस्कार होगा।

दोनों किडनी हो चुकी थीं खराब

बीते साल मुनव्वर राणा की दोनों किडनी खराब होने की खबर सामने आई थी। मुनव्वर राना की डायलिसिस चल रही थी। इसके अलावा वह  फेफड़ों की गंभीर बीमारी सीओपीडी से भी परेशान थे। 9 जनवरी को उनकी तबीयत अचानक ज्यादा खराब होने के कारण उन्हें पीजीआई में एडमिट किया गया था।

उन्हें सीओपीडी के साथ हार्ट की भी दिक्कत थी, जिसके चलते वेंटिलेटर पर रखा गया। सेहत में सुधार होने के बाद वेंटिलेटर से हटाया गया था। हालांकि रविवार को उनकी हालत ज्यादा खराब हो गई और देर रात उन्होंने आखिरी सांस ली।

रायबरेली में हुआ था जन्म

मुनव्वर राणा का जन्म 26 नवंबर 1952 को उत्तर प्रदेश के रायबरेली में हुआ था। मुनव्वर राना ने मां पर कई शायरी लिखी। मुनव्वर राना देश के जाने-माने शायरों में गिने जाते हैं। जिसमें से ‘किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकां आई, मैं घर में सब से छोटा था मिरे हिस्से में मां आई..।’ उन्हें उर्दू साहित्य के लिए 2014 का साहित्य अकादमी पुरस्कार और 2012 में शहीद शोध संस्थान द्वारा माटी रत्न सम्मान से सम्मानित किया गया है।

उन्हें साहित्य अकादमी और माटी रतन सम्मान के अलावा कविता का कबीर सम्मान, अमीर खुसरो अवार्ड, गालिब अवार्ड आदि से भी नवाजा जा चुका है। राणा उर्दू के अलावा हिंदी और अवधी भाषा में कविताएं लिखते थे। उन्होंने कई शैलियों में गजलें लिखी हैं। इसके अलावा उनकी कई किताबें भी प्रकाशित हैं। हालांकि बाद में उन्होंने असहिष्णुता के चलते सरकारी पुरस्कार स्वीकार न करने की कसम खाई थी। इसके बाद राणा ने अकादमी पुरस्कार लौटा दिए थे।