अजित राय
77वें कान्स फिल्म समारोह में इस बार चार भारतीय फिल्मकारों को पुरस्कार मिले तो दूसरी ओर भारत के छाया निर्देशक संतोष सिवन को मुख्य पैलेस के बुनुएल थियेटर में 2024 के प्रतिष्ठित ‘पियरे आंजनेऊ एक्सीलेंस इन सिनेमैटोग्राफी’ सम्मान से नवाजा गया। संतोष सिवन को ‘आफिशियल और सेरेमोनियल रेड कार्पेट’ दी गई। इसके साथ ही एस्टोनिया की युवा छायाकार कादरी कूप को विशेष प्रोत्साहन पुरस्कार दिया गया।
फिल्मों की शूटिंग के लिए कैमरा और कैमरे का आधुनिक लेंस बनाने वाली कंपनी आंजनेऊ कान फिल्म समारोह की आधिकारिक सहयोगी है। इस कंपनी ने 2013 में कान फिल्म समारोह के साथ मिलकर ‘सिनेमैटोग्राफी’ के क्षेत्र में ‘लाइफ टाइम अचीवमेंट’ और ‘एनकरेजमेंट अवार्ड’ शुरू किया था जो आज भी जारी है। इस बार यह सम्मान भारत के संतोष सिवन को दिया गया। आंजनेऊ कंपनी ने ही सबसे पहले एसएलआर ( सिंगल लेंस रिफ्लेक्स) कैमरा और जूम लेंस का आविष्कार किया था।
कान्स फिल्म समारोह के निर्देशक थेरी फ्रेमों ने कहा कि सिनेमा के लिए भारत एक महान देश है और जमाने के बाद कान्स फिल्म समारोह में भारत की शानदार उपस्थिति देखी जा रही है। कान फिल्म समारोह की शुरुआत से ही भारतीय फिल्में यहां दिखाई जाती रहीं हैं। उन्होंने संतोष सिवन की तारीफ करते हुए कहा कि वे अपनी कला में विलक्षण हैं और उन्होंने ‘सिनेमैटोग्राफी’ को नई कलात्मक उंचाई दी है।
फ्रांस में भारत के राजदूत जावेद अशरफ ने संतोष सिवन की हिंदी फिल्मों की विस्तार से चर्चा करते हुए कहा कि उनका काम अद्भुत है। उन्होंने बर्लिन में मणिरत्नम की फिल्म ‘दिल से’ के प्रदर्शन को याद करते हुए कहा कि शाहरुख खान और प्रीति जिंटा के साथ दर्शकों ने संतोष सिवन के खूबसूरत छायांकन को भी पसंद किया था। भारतीय अभिनेत्री प्रीति जिंटा ने फिल्म की शूटिंग के दौरान संतोष सिवन के साथ बिताए गए लम्हों को याद किया। उन्होंने कहा कि जब आप संतोष सिवन के कैमरे के सामने अभिनय कर रहे होते हैं तो आपकी खुशी बढ़ जाती है क्योंकि आप उन पर भरोसा कर सकते हैं, आप संतुष्टि से भर जाते हैं।
इस अवसर पर भारतीय सिनेमा की जानी मानी हस्तियों के वीडियो संदेश प्रदर्शित किए गए जिनमें शाहरुख खान, आमिर खान, मोहनलाल, गुरिंदर चड्ढा, नंदिता दास, शेखर कपूर, मीरा नायर, विद्या बालन, अनिल मेहता, मणि रत्नम आदि ने संतोष सिवन के साथ शूटिंग के अनुभव साझा किए। संतोष सिवन ने करीब 57 फिल्मों की ‘सिनेमैटोग्राफी’ की है और 17 से अधिक फिल्मों का निर्देशन किया है।
हाल ही में उन्होंने आमिर खान-राजकुमार संतोषी की फिल्म ‘लाहौर 1947’ और रितेश देशमुख की फिल्म ‘राजा शिवाजी ह्य की शूटिंग पूरी की है। इन दिनों वे अपनी फिल्म ‘जूनी’ की शूटिंग में व्यस्त हैं। यह फिल्म कश्मीर की कालजई कवयित्री हब्बा खातून के जीवन और कविता पर आधारित है।उन्होंने कहा कि जिस पैशन, कमिटमेंट और शैली के साथ कान फिल्म समारोह आयोजित किया जाता है उससे हम भारतीय लोगों को सीखना चाहिए। ये लोग केवल निर्देशक, अभिनेता को ही नहीं तकनीशियन को भी इज्जत और सम्मान देते हैं। उन्होंने कहा कि सिनेमा को बनाने में तकनीशियनों की बड़ी महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। उनके बिना आप फिल्में नहीं बना सकते।
उन्होंने कहा कि मैं इसलिए छाया निर्देशक बना क्योंकि मुझे यात्राएं करनी थी और दुनिया को देखना था। उन्होंने कहा कि मैं अभी तक भारत में ही कई ऐसी जगहों पर शूटिंग नहीं कर पाया जिन्हें मैं वर्षों से शूट करना चाहता हूं। हालांकि मुझे दुनिया में कहीं भी काम करने का अवसर मिलता है तो मैं काम करता हूं और वापस अपने देश भारत आ जाता हूं। उन्होंने कहा कि किसानों पर एक वृत्तचित्र बनाते हुए मैंने महसूस किया दुनिया में सबसे अच्छा काम खेती-बाड़ी है। यदि मैं छाया निर्देशक नहीं होता तो किसान होता।
यह पूछे जाने पर कि जब हम भारतीय सिनेमा के बारे में सोचते हैं तो केवल मुंबइया सिनेमा ही ध्यान में आता है जो सच नहीं है। बंगाल, केरल, कर्नाटक और तमिलनाडु का सिनेमा भी बहुत बड़ा है तो हम एक भारतीय सिनेमा किसे कहेंगे। उन्होंने कहा कि अब हालात बदल रहे हैं। ऐसा धीरे-धीरे होने लगा है। अब हम एक नया शब्द प्रयोग में लाने लगे हैं – पैन इंडियन फिल्म। हाल के वर्षों में दक्षिण भारतीय फिल्में उत्तर भारत खासकर बालीवुड में बहुत लोकप्रिय हुई।