पिछले दिनों देव आनंद और कल्पना कार्तिक की तस्वीर देख कर कर मन में कई सवाल उठे। वह कौन सा अधूरापन है जिसे पूरा करने की तलाश में पुरुष भटकता है। वह अपनी नायिका से हर दौर में यही कहता आया है-मैं धरती से लेकर ब्रह्मांड तक तुम्हारे साथ चलूंगा। सदियों का साथ है हमारा। मगर हकीकत क्या है। वह पांच-छह साल में ही सब भूल जाता है।
देव साहब 1948 में सौंदर्य की जिस मल्लिका के साथ प्रेम के समंदर में डूबे थे उन्हें मिस शिमला यानी मोना या कहें कल्पना कार्तिक की बांहों का सहारा मिल जाता है। वे अपना अतीत भूल जाते हैं। सब जानते हैं कि सुरैया से देव साहब बेपनाह मोहब्बत करते थे। सचमुच पुरुष का दिल बच्चे की तरह होता है। उसे प्रेम से लबालब स्त्री ही शांत कर सकती है। उसे करुणा और स्नेह दोनों ही चाहिए। यह सिर्फ वही स्त्री दे सकती है जिसे पुरुष शिद्दत से चाहे।
इस विषय पर कोलकाता की एक नामचीन कवयित्री ने मुझसे कहा कि आप पुरुषों पर क्यों सवाल उठा रहे हैं। स्त्रियां भी तो अपने अधूरेपन को पूरा करना चाहती हैं। एक सहृदय की तलाश करती हैं। उन्हें इसका माध्यम मिल गया है तो वह भी क्यों पीछे रहे। वह भी सिगरेट पीना चाहती है। मन का कोई साथी बनाना चाहती है। उस पर रोक -टोक क्यों।
पानी जब बहता है तो वह रास्ता निकाल ही लेता है। उसे बहना ही है। कोई भी स्त्री और पुरुष हो, उनमें आकर्षण सहज है। प्राकृतिक है। इसे नैतिकता और अनैतिकता के दायरे में मत ही लाइए। आज के समाज में शादी के दस साल बाद रिश्ते नीरस हो जा रहे हैं। एक-दूसरे की उपेक्षा होने पर स्त्री पुरुष अपना अधूरापन भरना चाहते हैं। वे एक-दूसरे की ओर हाथ बढ़ा रहे हैं तो गलत क्या है। यह तो होना ही था।
मगर मेरा ध्यान अभी देव साहब पर है। जिस सुरैया को भूल को कर वे कल्पना के साथ घर बसाते हैं वह काल्पनिक संसार तो नहीं था। उनके दो बच्चे भी होते हैं। देव साहब के जीवन में रंग भरने के लिए कल्पना अपने करियर को भी खत्म कर देती हैं। उनकी फिल्म निर्माण कंपनी की भरोसेमंद सहयोगी बनती हैं। घर भी संभालती हैं।
उधर, देव साहब पर्दे पर नायिकाओं के साथ रोमांस करते हैं। यही उनका प्रोफेशन है। जरा देखिए जिस ‘हरे रामा हरे कृष्णा’ में वे मुमताज के लिए गीत गा रहे हैं- कांची रे कांची रे, प्रीत मेरी सांची, रुक जा न जा रे दिल तोड़ के…,उसी क्रम में फिल्म की दूसरी नायिका जीनत अमान उनके जेहन में हैं। उस जीनत के प्रेम में एक दिन सचमुच व्याकुल हो जाते हैं।
देव साहब के मनोभावों को समझने के क्रम में मुझे यह कहते हुए कोई संकोच नहीं कि पुरुष अपने जीवन में कई नायिकाओं से प्रेम करता है। यह स्त्री ही है जो पुरुष के जीवन को बदल देती है। वह मां हो सकती है, पत्नी हो सकती है, प्रेमिका हो सकती है।
सुरैया ने देव साहब के जीवन को बदला। उन्होंने अपनी मेहनत से एक मुकाम हासिल किया। जब उनका दिल टूटा तो कल्पना कार्तिक ने उनका जीवन बदला। उन्हें एक नई दिशा दी। वे नई ऊंचाइयां छूते गए।
ये तो राज कपूर साहब उनकी जेनी यानी जीनत के बीच जाने-अनजाने आ गए नहीं तो देव अपने फिल्मी करिअर के तीसरे चरण में एक निर्णायक मोड़ पर खड़े होते। सुरैया से दिल टूटने पर देव साहब ने कहा था कि अगर वो उनके जीवन में आ गई होतीं तो यह देव आनंद कुछ और होता।
अब सवाल ये है कि देव साहब का दिल एक बार टूटा तो वे कल्पना पर क्यों नहीं टिक गए? जीनत पर क्यों दिल आया? क्या तलाश रहे थे उनमें? क्या वे अपने रचनात्मक कार्यो में फिर से नया रंग भरना चाहते थे, जैसा कि हम सब ने फिल्म ‘हीरा-पन्ना’ में उनके बीच भावनात्मक रिश्ते को देखा और एक गीत में महसूस किया-पन्ना की तमन्ना है कि हीरा उसे मिल जाए, चाहे मेरी जान जाए चाहे मेरा दिल जाए…। यानी कुछ तो था। वह क्या था, यह कभी देव की जेनी यानी लोकप्रिय अदाकारा जीनत अमान एक दिन किताब लिख कर बताएंगी।
जीनत को देव साहब जितना प्रेम उमड़ा या नहीं, यह तो वही जानें मगर जिस पार्टी को छोड़ कर देव साहब निकल गए थे उस वक्त उनके दिल के लाखों टुकड़े हो गए थे। खुद देव साहब ने यह बात कही थी। राज कपूर की जीनत के प्रति अंतरंगता का अहसास कर वे भीतर ही भीतर बेहद बिखर गए थे।
सचमुच पुरुष का दिल बच्चे की तरह मासूम होता है। कितना कमजोर। खिलौने की तरह झट से टूट जाता है। पूरी दुनिया में स्त्रियों और पुरुषों के बीच रिश्ते डोर कमजोर हो रही है।
स्त्रियां हिंसा का शिकार हो रही है। क्या है इसकी वजह? सब कुछ अपने नियंत्रण में रखने का पैरोकार और मर्दवादी समाज का पोषक पुरुष क्यों प्रेम की उम्मीद करता है। क्यों स्त्रियां अपने मन का साथी ढूंढ़ती हैं परंपरा और वर्जनाओं की चाहरदिवारी लांघ कर। यह समझना होगा। उनके मन को समझना होगा।
लेकिन हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए देव साहब ने अपनी नायिकाओं से जितना स्नेह किया उससे बढ़ कर उन्हें सम्मान दिया। यह बात खुद फिल्म ‘गाइड’ की नायिका वहीदा रहमान ने कहा कि देव साहब जब उनके कंधे पर हाथ रखते तो एक सुरक्षा का बोध होता था। एक सकारात्मकता का अहसास होता था। ऐसा ही होना चाहिए। किसी भी स्त्री-पुरुष के बीच। पेशेवर ही नहीं, निजी संबंधों में भी।
स्त्री-पुरुष के बीच मित्रता और प्रेम निजी विषय है। यह किसी के साथ कभी भी किसी को हो सकता है। देव साहब के प्रेम में खूबसूरती इस बात की है कि उन्होंने इसे स्वीकार किया।
प्रेम अनौतिक नहीं। अपराध नहीं। एक खूबसूरत मोड़ है हर स्त्री-पुरुष के जीवन का। या तो शिद्दत से निभाएं या चुपके से निकल जाएं जैसा कि देव साहब ने किया एक शाम। बिना कोई तमाशा किए। एक-दूसरे की लाज को बचाना। यही सच्चा प्रेम है।