आरती सक्सेना

‘बरसात’ के जरिए 1995 में अपने करिअर की शुरुआत करने वाले बॉबी देओल की ओटीटी प्लेटफॉर्म पर ताजा फिल्म है ‘क्लास ऑफ 83’। इस फिल्म में उन्होंने पुलिस अधिकारी विजय सिंह का किरदार निभाया है। बॉबी की एक और फिल्म ‘आश्रम’ भी प्रदर्शित हो रही है, जिसमें उन्होंने एक ढोंगी बाबा निराला की भूमिका की है। अपनी दोनों फिल्मों और कैरियर को लेकर क्या सोचते हैं बॉबी देओल, आइए जानते हैं।

सवाल : ‘क्लास ऑफ 83’ पंसद की जा रही है। फिल्म और दर्शकों की प्रतिक्रियाओं को लेकर आप क्या सोचते हैं…
’जाहिर है, मैं खुश हूं। मुझे खुशी हुई जब राज बब्बर साहब समेत कई फिल्मवालों ने फोन कर मेरे काम की सराहना की। अरसे बाद तारीफ का मजा चखा है, इसलिए अच्छा तो लगेगा ही। आत्मविश्वास भी बढ़ा है। फिल्म का निर्माण शाहरुख खान की कंपनी रेड चिली ने किया है।

सवाल : ‘आश्रम’ को लेकर भी आपकी चर्चा हो रही है, जो प्रकाश झा ने बनाई है। फिल्म का जिक्र होते ही आप मुस्करा रहे हैं….
’इसलिए कि मैंने पहली बार इस तरह का किरदार किया है। इसमें मैंने काशीपुर के एक ढोंगी निराला बाबा का किरदार निभाया है। वह अंधविश्वास का सहारा लेकर काफी कुछ गलत करता है। जब मुझे यह भूमिका मिली, तो मैं सोच रहा था कि इसे कर भी पाऊंगा या नहीं। अब यह तो दर्शकों पर है कि वे मुझे इस रूप में पसंद करते हैं या नहीं। मगर मुझे तो इसे परदे पर उतारने में बहुत मजा आया।

सवाल : आपकी ये दोनों फिल्में ओटीटी प्लेटफॉर्म पर रिलीज हो रही हैं। यह एक अलग तरह का अनुभव है…
’हर कलाकार चाहता है कि उसकी फिल्म थियेटर में रिलीज हो। मगर पूर्णबंदी के कारण फिल्मजगत की हालत खस्ता है। 2020 फिल्मी दुनिया के लिए मुश्किल साल है। हर निर्माता अपनी फिल्म की रिलीज को लेकर उलझन में है। ऐसे दौर में ओटीटी प्लेटफॉर्म एक विकल्प के तौर पर उभरा है। कम से कम फिल्में दर्शकों तक तो पहुंच रही हैं। मुुश्किलें आती हैं मगर दुनिया रुकती नहीं है। पूर्णबंदी हटेगी तो फिल्में थियेटरों में भी लगेंगी। ‘आश्रम’ भी एम एक्स प्लेयर पर दिखाई जाएगी।’

सवाल : फिल्मजगत में आपको 25 साल हो गए हैं। इतने सालों में आपने यहां क्या सीखा?
’इन सालों में सफलता-असफलता देखी, उतार-चढ़ाव से गुजरा। बतौर अभिनेता कई बार निराशा हुआ, तो बतौर इनसान बहुत कुछ सीखने को मिला। आखिर में यह पाया कि इनसान को कभी निराश नहीं होना चाहिए। सुख-दुख तो सभी के जीवन में आते-जाते रहते हैं। फिल्मी दुनिया में अगर आप हार गए, तो समझो बाहर गए।

सवाल : लेकिन इस समय तो खेल के नियम बदले हुए हैं…
’उससे क्या फर्क पड़ता है। वेब सीरीज में काम करूं या मेरी फिल्में ओटीटी पर दिखाई जाएं मुझे तो कैमरे के सामने वही करना है, जो मैं पहले करता था। वैसे ही हंसना है, वैसे ही रोना। बस, मैं अपने अंदर के कलाकार को मरने नहीं देना चाहता हूं।

सवाल : वैसे भी देओल परिवार की इंडस्ट्री में काफी साख है…
’ ये मेरे पिताजी की गुड विल है कि लोग उनकी वजह से हमें इतना प्यार करते हैं। जब मैंने फिल्मों से खुद को काट लिया था, तब सलमान खान ने मुझे हौसला दिया कि मैं काम करूं। उनकी वजह से मैंने ‘रेस-3’ में काम किया। साजिद खान और अक्षय कुमार ने ‘हाउसफुल 4’ का ऑफर दिया। शाहरुख खान ने ‘क्लास ऑफ 83’ में लिया। पिता और भाई के अच्छे स्वभाव का मुझे भी फायदा मिला।

सवाल: आपने अपने बेटे का नाम पिता के नाम पर धरम रख दिया, मगर घरवाले आपसे सहमत नहीं हैं…
-घरवालों का कहना है कि पिता का सीधे नाम लेना हमारी तहजीब में नहीं है। सो मैंने पहले बेटे का नाम आर्यमन रखा। दूसरा बेटा हुआ तो मैंने किसी की नहीं सुनी और उसका नाम धरम रख दिया। धरम अपने पापा की तरह ही प्यारा और मस्तीखोर है।

सवाल : आपके कैरियर में एक लंबा उतार आया क्या उसने आपकी सोच को बदला है?
’हां … काफी हद तक यह सही है। जब मैंने करियर की शुरुआत की थी, तब यहां सभी को अपनी काबीलियत के हिसाब से काम मिल जाता था। मुझे भी फिल्में मिलती गर्इं। मैं काम करता गया। फिर फिल्में बैठने लगीं, तो काम मिलना कम हो गया निराशा ने घेर लिया, तो शराब पीने लगा। किसी निर्माता से काम मांगने की हिम्मत नहीं हुई कि पता नहीं कोई किस तरह का व्यवहार करेगा। फिर लगा कि मैं खुद को बरबाद कर रहा हूं, तो सब कुछ झटक कर अपने को तैयार किया। सेहत पर ध्यान देने लगा। खानपान तय किया। लोगों से मेलजोल करने लगा। निर्माताओं ने भी धीरे-धीरे काम देना शुरू कर दिया।