‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ और ‘ब्लैक फ्राइडे’ जैसी कल्ट क्लासिक के लिए जाने जाने वाले फिल्ममेकर अनुराग कश्यप का हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में सफर आसान नहीं रहा। उत्तर प्रदेश के गोरखपुर का लड़का, जिसे बचपन से ही सिनेमा से प्यार था, वह 1990 के दशक की शुरुआत में फिल्में बनाने का सपना लेकर मुंबई आया, लेकिन उनका सफर बिल्कुल भी आसान नहीं था। शुरुआती सालों में उन्होंने जो प्रोजेक्ट लिखे, वे कभी पूरे नहीं हुए।

उनमें से कुछ बंद हो गए, जबकि कुछ डायरेक्टर की मौत के बाद अधूरे रह गए। फिर उन्हें पहला बड़ा ब्रेक 1998 में मिला जब वे राम गोपाल वर्मा से मिले, जो उनकी एक पुरानी स्क्रिप्ट ऑटो नारायण से बहुत प्रभावित हुए थे। वर्मा ने उन्हें एक्टर-राइटर सौरभ शुक्ला के साथ ‘सत्या’ (1998) को को-राइट करने के लिए चुना। उसी समय अनुराग फिल्ममेकर शिवम नायर के साथ भी मिलकर काम कर रहे थे।

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नहीं हुई थी अनुराग की ये फिल्म रिलीज

वहीं, अनुराग को 1976 में पुणे में हुए जोशी-अभ्यंकर सीरियल मर्डर केस की फाइलों के बारे में पता चला। इस कहानी से इंस्पायर होकर उन्होंने अपनी पहली फिल्म ‘पांच’ लिखी और डायरेक्ट की। हालांकि, यह फिल्म कभी थिएटर में रिलीज नहीं हुई, क्योंकि सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन (CBFC) ने सेक्स, ड्रग्स और हिंसा के बेबाक चित्रण का हवाला देते हुए इसे क्लीयरेंस देने से मना कर दिया था।

बोनी कपूर ने ऑफर किया फ्लैट

सेंसरशिप के मुद्दे से पहले अनुराग फिल्म को लेकर कॉन्फिडेंट थे और इसके रिलीज होने का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे। कोमल नाहटा के YouTube शो गेम चेंजर्स पर हाल ही में हुई बातचीत में, फिल्ममेकर ने याद किया कि कैसे प्रोड्यूसर बोनी कपूर ने उनके काम से इम्प्रेस होकर उन्हें एक फिल्म ऑफर की थी।

अनुराग कश्यप ने कहा, “मुझे आज भी लगता है कि अगर ‘पांच’ रिलीज हो जाती, तो मैं एक अलग इंसान होता। बोनी कपूर ने एक बार मुझसे कहा था कि तुम फिल्म क्यों नहीं बनाते? बांद्रा से जुहू तक किसी भी बिल्डिंग की तरफ इशारा करो और मैं तुम्हें वहां एक फ्लैट खरीद दूंगा।” फिल्ममेकर ने अपने युवा दिनों के भोलेपन भरे आत्मविश्वास को याद करके हंसे और कहा कि मैंने सोचा अगर वह मेरी फिल्म रिलीज होने से पहले मुझे फ्लैट दे रहे हैं, तो शायद इसके रिलीज होने के बाद मुझे एक बंगला मिल जाएगा।

हालांकि, ‘पांच’ कभी ऑफिशियली रिलीज नहीं हुई। यह एक टर्निंग पॉइंट था, जिसने उन्हें जमीन पर ला दिया और याद दिलाया कि वह मुंबई आए ही क्यों थे। फिल्ममेकर ने कहा, “तभी मुझे एहसास हुआ कि मैंने नए लोगों के साथ एक फिल्म सिर्फ यह साबित करने के लिए बनाई थी कि आपको कहानी और कहानी कहने का तरीका चाहिए, स्टार्स नहीं। ‘ब्लैक फ्राइडे’ और ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ के बाद भी मैं यह बात साबित नहीं कर पाया। आखिरकार, मैंने कुछ भी साबित करने की कोशिश करना बंद कर दिया और खुद को अलग करना शुरू कर दिया।”

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