दो बार मुख्यमंत्री रह चुके और भारतीय सेना के खिलाफ गुरिल्‍ला वॉर में हिस्सा लेने वाले जोरामथांगा को मिजोरम का मुख्यमंत्री बनाया जाएगा। जोरामथांगा 10 साल बाद सत्ता में वापस लौट आएंगे। राज्य में हुए विधानसभा चुनावों में मिजो नेशनल फ्रंट्स (एमएनएफ) की शानदार जीत हुई है। जोरमथंगा  मिजो नेशनल फ्रंट्स के अध्यक्ष हैं। 74 साल के जोरमथंगा ने कहा, “मुझे खुशी है। मैंने भविष्यवाणी की थी कि एमएनएफ 25 से 30 सीटों के बीच जीत जाएगी। मैंने यह भी कहा था कि कांग्रेस को 10 से कम सीटें मिलेंगी। मेरी दोनों भविष्यवाणियां सच साबित हुई हैं, जो छोटे पहाड़ी राज्य का 20 साल पुराने मिजो मूवमेंट से लिंक है। जो राज्य में खत्म हो गया। उनका मुख्य एजेंडा शराब पर प्रतिबंध है। उन्होंने कहा “सभी प्रकार के शराब पर एक पूर्ण प्रतिबंध होगा, चाहे वह स्थानीय ब्रू हो या फिर आईएमएफएल हो। यह खतरा हमारे लोगों को मार रहा है।”

1944 में चम्फाई जिले के समथांग गांव में पैदा हुए जोरामथांगा आठ भाई बहनों में से दूसरे नंबर के हैं। मणिपुर में डीएम कॉलेज से स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के तुरंत बाद, उन्हें मिजो आंदोलन में ले जाया गया। 1959 में राज्य में अकाल के लिए सरकार की उदासीनता के विरोध में लालडेंगा ने मिजो राष्ट्रीय अकाल मोर्चा का गठन किया गया था। 1966 में संगठन ने सरकार के खिलाफ हथियार उठा लिए था। जोरामथांगा को लालडेंगा का सचिव नियुक्त किया गया था और 1979 में संगठन के उपाध्यक्ष बने। इस बीच, केंद्र ने संगठन के खिलाफ एक अभियान शुरू किया था, इस दौरान संगठन ने अपने सदस्यों को छिपने के लिए बांग्लादेश भेज दिया था। जोरामथांगा, इन समय लालडेंगा के भरोसेमंद सहयोगी थे।

1986 में राजीव गांधी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार और लालडेंगा के बीच मिजोरम एकॉर्ड पर हस्ताक्षर किए गए थे। एक साल बाद, मिजोरम राज्य अस्तित्व में आया और एमएनएफ एक राजनीतिक दल बन गया। जोरामथांगा ने विद्रोह की छाप से दूरी बना ली और राजनीतिक में एंट्री की, और राज्य के पहले वित्त और शिक्षा मंत्री बन गए। 1990 में लालडेंगा की मौत के बाद जोरामथांगा को एमएनएफ का अध्यक्ष चुना गया। इसके 8 साल बाद पार्टी राज्य में चुनाव जीती और वह मुख्यमंत्री बने। वह दो बार राज्य के मुख्यमंत्री रहे। 2008 में पार्टी को झटका लगा और सत्ता कांग्रेस के हाथ में चली गई।