नगर निगम चुनाव में पहले परिसीमन और फिर नए-नए प्रयोगों ने उम्मीदवारों की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। सबसे ज्यादा प्रयोग करने वाली भाजपा के नाखुश उम्मीदवारों और कार्यकर्ताओं का फायदा कांग्रेस और आम आदमी पार्टी उठाने की फिराक में है। भाजपा ने पहले मौजूदा पार्षदों को दरकिनार कर मुसीबत मोल ली और अब वार्ड जंप की नीति अपनाकर कार्यकर्ताओं में मायूसी पैदा कर रही है। कयास लगाए जा रहे हैं कि इस नीति के बाद भाजपा के मजबूत उम्मीदवार बाहर हो जाएंगे और कमजोर दावेदारों को जगह मिल जाएगी। लोकसभा और राज्य विधानसभा से इतर निगम में ही सारे नियम लागू करने के क्या फायदे होंगे और क्या नुकसान यह तो चुनाव के बाद ही पता चलेगा।
दिल्ली नगर निगम चुनाव इस बार भाजपा के लिए ऐतिहासिक रहने वाला है। सालों से निगम पर काबिज और सत्ता का सुख भोग रहे वरिष्ठ और तेज तर्रार पार्षदों को जहां इस चुनाव के बाद सिविक सेंटर में बैठने की जगह नहीं मिलेगी, वहीं पार्टी ने तमाम सर्वेक्षणों के बाद जिन उम्मीदवारों की सूची पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह को सौंपी, उसे पूरी तरह से अस्वीकार कर दिया गया है। अब पार्टी के मंडल अध्यक्षों से लेकर मोर्चे के नेताओं तक में मायूसी छा गई है। भाजपा अभी तक यह तय नहीं कर पा रही है कि वह किन नीतियों को अपनाए जिससे निगम की सत्ता उसके हाथ में आ जाए और पार्टी में किसी भी तरह का मतभेद भी पैदा न हो।

