पंजाब में लोकसभा चुनाव 2024 से पहले सियासी समीकरण फिर से करवट लेते दिखाई दे सकते हैं। 2024 चुनाव से पहले सूबे में एकबार फिर से बीजेपी और अकाली दल के बीच गठबंधन को लेकर चर्चाओं का दौर शुरू हो गया है। अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में अकाली दल के एक सीनियर नेता ने कहा कि पार्टी फिर से गठबंधन की इच्छुक है और बीजेपी विकल्पों पर विचार कर रही है। उन्होंने यह भी कहा कि लोग इन दोनों दलों के फिर से एक साथ आने में “उम्मीद की किरण” देखते हैं।

अकाली दल और बीजेपी करीब दो दशकों तक एक साथ रहे हैं। अकाली जहां पंजाब में बड़े भाई की भूमिका में नजर आए तो वहीं बीजेपी ने केंद्र में यह भूमिका निभाई। दोनों दल 2019 का लोकसभा चुनाव भी एक साथ लड़े थे लेकिन 2020 में अकाली दल ने कृषि कानूनों पर नाराजगी जताते हुए खुद को एनडीए से अलग कर लिया।

शिरोमणि अकाली दल के उपाध्यक्ष और पूर्व मंत्री महेशिंदर सिंह ग्रेवाल ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा कि राजनीति में दरवाजे कभी बंद नहीं होते। कुछ भी असंभव नहीं है। उन्होंने कृषि कानूनों के मसले पर कहा कि तब से अब तक बहुत कुछ बदल चुका है। हालांकि उन्होंने कहा कि एनडीए में वापसी के लिए उनकी तरफ से अभी भी शर्तें हैं, जैसे- बीजेपी शासित हरियाणा में सिख मामलों के मैनेजमेंट के लिए एक अलग कमेटी का गठन, “बंदी सिंह” कैदियों की रिहाई और चंडीगढ़ पर पंजाब के दावे को कमजोर करने के लिए हरियाणा के हस्तक्षेप को समाप्त करना।

उन्होंने आगे कहा कि अगर बीजेपी इन अड़चनों को दूर करती है और हमारी मांगों को पूरा करती है तो हमें फिर से उनके साथ गठबंधन करने में कोई गुरेज नहीं है। इस दौरान उन्होंने यह भी याद दिलाया कि अकाली दल अटल बिहारी वाजपेयी के समय से बीजेपी की सहयोगी थी और जब बीजेपी को साम्प्रदायिक पार्टी का टैग दिया गया था, तब भी अकाली दल “अल्पसंख्यक सिख समुदाय के प्रतिनिधियों के रूप में” उसके साथ रही।

ग्रेवाल ने यह भी कहा कि NDA मूल रूप से अकाली दल की देन है। जब वाजपेयी को इसकी सबसे ज्यादा जरूरत थी तो कोई भी उनसे हाथ मिलाने को तैयार नहीं था, क्योंकि बीजेपी को सांप्रदायिक पार्टी करार दिया गया था। उस समय उनके साथ सिर्फ शिवसेना खड़ी थी। हमने खुद राज्य में बीएसपी के साथ गठबंधन किया था। तब प्रकाश सिंह बादल ने पार्टी के सदस्यों को राष्ट्रीय स्तर पर वाजपेयी का समर्थन करने के लिए राजी किया। हमारे समर्थन के बाद कई दल बाद में वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार का हिस्सा बने।

हालांकि इस दौरान उन्होंने 2019 चुनाव के बाद एनडीए सहयोगियों को सरकार के फैसलों पर सहमति नहीं थी और कई बार उन्हें जानकारी सिर्फ अखबारों के जरिए मिली। उन्होंने कहा कि दोबारा गठबंधन के लिए भागीदारी की भावना होनी चाहिए। हमें ऑर्डर नहीं दी जानी चाहिए। हमें विश्वास में लेने की जरूरत है। हम महत्वपूर्ण अल्पसंख्यक लोग हैं, और हमने राज्य और देश के लिए बहुत योगदान दिया है।

इस दौरान ग्रेवाल ने यह स्पष्ट किया कि अकाली दल विपक्ष के किसी भी ऐसे फ्रंट का हिस्सा नहीं हो सकता जिसमें कांग्रेस के पास बड़ा रोल हो। अकाली दल पटना में हो रही विपक्षी दलों की बैठक में शामिल नहीं है। बीजेपी के साथ गठबंधन के सवाल पर अकाली दल के प्रवक्ता दलजीत सिंह चीमा ने कहा कि जब मुद्दे सुलझ जाएंगे तो बीजेपी के साथ गठबंधन पर कॉल लिया जाएगा। फिलहाल हम अपनी पार्टी को मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं।

पंजाब में बीजेपी के सीनियर नेता मनोरंजन कालिया ने भी अकाली दल के साथ गठबंधन का समर्थन किया है। उन्होंने कहा कि यह देखा गया है कि जब भी अकाली दल-बीजेपी गठबंधन हुआ है, उसने राज्य की बेहतरी के लिए काम किया है। आम आदमी पार्टी की कोई विचारधारा नहीं है। 2022 चुनाव में मतदान पारंपरिक पार्टियों के खिलाफ था, क्योंकि मौजूदा पार्टियों से तंग आकर लोगों ने बदलाव के लिए वोट दिया और AAP को सत्ता में लाए।

हालांकि बीजेपी के सीनियर नेता और केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पूरी ने भविष्य में अकाली दल के साथ किसी भी गठबंधन को नाकार दिया। बीजेपी मोदी सरकार के 9 साल के रिपोर्ट कार्ड को लोगों तक ले जाने के लिए पंजाब में रैलियां प्लान कर रही है। 14 जून को होशियारपुर में जेपी नड्डा और 18 जून को गुरदासपुर में अमित शाह की रैली की तैयारियां कर रही है।

बता दें कि कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के आंदोलन से पहले हरसिमरत कौर बादल मोदी सरकार में मंत्री थीं। कृषि कानूनों के खिलाफ नाराजगी जताते हुए उन्होंने मोदी कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया था। गठबंधन के सवाल पर अकाली के सीनियर नेता और पूर्व सांसद प्रेम सिंह चांदूमाजरा ने कहा कि जालंधर संसदीय उपचुनाव के रिजल्ट के बाद राज्य में अकाली दल और बीजेपी कैडर के बीच यह बात बढ़ रही है कि दोनों के साथ आने से ही ही राज्य को AAP का विकल्प दिया जा सकता है।