बिहार की राजधानी पटना में 23 जून को विपक्ष की बैठक हुई। इस बैठक में बसपा प्रमुख मायावती को आमंत्रित नहीं किया गया था। मायावती की पार्टी का ग्राफ बीते एक दशक में गिरा जरूर है लेकिन सभी सियासी दल जानते हैं कि उन्हें नकारना बड़ी चूक हो सकती है। मायावती इन दिनों अपनी पार्टी का बेस मजबूत करने में जुटी हुई हैं। वह दलितों, पिछड़ों के अलावा पसमांदा मुसलमानों को भी रिझाने की कोशिश कर रही हैं, जो बीते 10 सालों में बीजेपी की तरफ शिफ्ट हुए हैं।

भले ही मायावती एंटी-बीजेपी फ्रंट में शामिल न हुई हों लेकिन उनके द्वारा किए जा रहे हमले बीजेपी पर ही फोकस हैं। इस दौरान उन्होंने विपक्षी फ्रंट से भी उतनी ही दूरी बनाई हुई है। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, उनकी पार्टी ने विभिन्न जातियों और समुदायों से राज्य के हर जिले में नेताओं को लगाया हुआ है। इन नेताओं को उन वोटर्स तक पहुंचने की जिम्मेदारी दी गई है जो बीएसपी से अन्य पार्टियों की तरफ शिफ्ट हो गए हैं। इसी वजह से साल 2012 के बाद से बीएसपी कमजोर भी हुई है।

मायावती बार-बार अकेले लोकसभा चुनाव 2024 लड़ने की बात कह रही हैं लेकिन सूत्रों का कहना है कि बीएसपी विपक्षी दलों पर भी नजर रखे हुए हैं और चुनाव के आसपास स्थिति को देखते हुए गठबंधन पर कोई फैसला ले सकती है। बीएसपी सूत्रों का कहना है कि पार्टी नेतृत्व की तरफ से उसके कार्यकर्ताओं को अपने भाषणों में कांग्रेस पर नरम रुख बनाए रखने के निर्देश दिए गए हैं। पटना मीटिंग के बाद मायावती द्वारा एक आधिकारिक बयान में बीजेपी और सपा पर तो हमला किया गया लेकिन कांग्रेस पर कोई टिप्पणी नहीं की गई।

बीएसपी के एक नेता ने बताया कि नेताओं को अनौपचारिक रूप से बता दिया गया है कि वे कांग्रेस पर कड़े शब्दों में हमला न करें। उन्होंने कहा कि ऐसा लगता है कि पार्टी ने भविष्य के लिए गठबंधन का विकल्प खुला रखा है। बीएसपी के एक सांसद ने कहा कि ऐसा मालूम पड़ता है कि बीएसपी कांग्रेस के प्रति नरम हो गई है। इस विकल्प को भी काम किया जाना चाहिए। 2024 के लिहाज से पार्टी के लिए कांग्रेस गठबंधन के लिए एक अच्छा विकल्प हो सकती है।

BSP यूपी अध्यक्ष बोले- बहनजी के आदेश का करेंगे पालन

इंडियन एक्सप्रेस ने जब इसको लेकर पार्टी के यूपी अध्यक्ष विश्वनाथ पाल से बात की तो उन्होंने कहा कि बहनजी ने इस विषय पर कुछ नहीं कहा है। इसलिए टिप्पणी करना सही नहीं होगा। हम उनकी गाइडलाइन का पालन करेंगे। पटना में हुई विपक्ष की मीटिंग दूसरा ऐसा एंटी बीजेपी प्लेटफॉर्म है, जहां मायावती नहीं दिखाई दीं। इससे पहले अगस्त 2017 में बीएसपी ने राजद की ‘बीजेपी बचाओ, देश बचाओ’ रैली में भी हिस्सा नहीं लिया था। तब पार्टी की तरफ से कहा गया था कि गैर-बीजेपी दलों के बीच गठबंधन की रूपरेखा और 2019 के लोकसभा चुनावों के लिए सीट-बंटवारे के फॉर्मूले को अंतिम रूप दिए जाने तक वह किसी भी विपक्षी दल के साथ मंच साझा नहीं करेगी।

23 जून की पटना मीटिंग से पहले भी मायावती ने ट्वीट कर कहा था कि दिल मिले न मिले, हाथ मिलाते रहिए। इससे पहले 15 जनवरी को मायावती ने विपक्षी दलों की एकता के प्रयासों पर टिप्पणी करते हुए कहा था कि बीएसपी की विचारधारा अन्य विपक्षी दलों से अलग है, इसलिए वह बिना किसी गठबंधन के चुनाव लड़ेगी। उन्होंने यह भी कहा था कि उनकी पार्टी के साथ संभावित गठबंधन की अफवाहें कांग्रेस और अन्य दलों द्वारा फैलाई जा रही थीं।

इस समय बीएसपी यूपी में ‘गांव चलो अभियान’ चला रही है। इसके जरिए मायावती यूपी के ग्रामीण वोटर तक पहुंचना चाहती हैं और अपनी बूथ और सेक्टर कमेटियों को मजबूत करना चाहती है। पाटी के सूत्रों के अनुसार, यह पहला मौका है कि मायावती ग्रामीण वोटर्स पर फोकस कर ही है। हर बूथ पर पार्टी की तरफ से 5 मेंबर की कमेटी बनाई गई है जो वोटर्स से संपर्क करेगी और उन्हें बीएसपी की विचारधारा के बारे में बताएगी। प्रत्येक 8-10 बूथों के लिए, बीएसपी ने एक सेक्टर कमेटी बनाई है, जिसमें 70 से अधिक सदस्य शामिल हैं।

पार्टी के एक नेता ने बताया कि बीएसपी स्टेट कैडर कैंप भी शुरू करने जा रही है। इन कैंप्स में जमीनी स्तर पर रणनीति और तैयारियों पर चर्चा के लिए प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में चयनित समर्पित कार्यकर्ताओं के साथ बंद कमरे में बैठकें की जाएंगी।

पार्टी में युवाओं की भूमिका को ध्यान में रखते हुए बीएसपी ने 50% युवाओं की भागीदारी का भी आह्वान किया है। पार्टी नेता अपनी चल रही बूथ और सेक्टर बैठकों में युवाओं की भागीदारी पर भी नजर रख रहे हैं। इससे पहले, इसी महीने में मायावती ने अपनी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक आकाश आनंद को राजस्थान, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और तेलंगाना में चुनावी कैंप शुरू करने के लिए कहा है। सूत्रों ने बताया कि आकाश ने मध्य प्रदेश में काम शुरू कर दिया है।

बीएसपी के एक नेता ने बताया कि आकाश ने पहले भी महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां संभाली हैं। मायावती उन्हें भविष्य के नेता के तौर पर तैयार कर रही हैं। हाल ही में हुए यूपी निकाय चुनाव में बीएसपी ने मेयर पद पर 11 मुस्लिम कैंडिडेट उतार कर नए समीकरण बनाने की कोशिश की थी। ये सभी चुनाव हार गए और इनमें से सिर्फ 3 दूसरे नंबर पर रहे।

पार्टी के एक नेता ने कहा कि आज भी सिर्फ मायावती ही एक ऐसी नेता हैं जो वोट ट्रांसफर कर सकती हैं और उन वोटों को वापस ले सकती हैं जो दूसरी पार्टियों को ट्रांसफर हुए हैं। उनके नेतृत्व में बीएसपी यूपी में एक बड़ी सियासी ताकत है और उसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। उन्होंने आगे कहा कि पिछले कुछ वर्षों में गैर-जाटव दलित और पसमांदा मुसलमान बीएसपी से बीजेपी में चले गए हैं और पार्टी 2024 तक उन्हें वापस लाने के लिए काम कर रही है।