पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने शानदार प्रदर्शन किया है। उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में पार्टी फिर से सत्ता में आ गई है। हालांकि, पंजाब में उसका प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा है। पंजाब में आम आदमी पार्टी का जलवा देखने को मिला। वहीं कांग्रेस की बात करें तो पांचों राज्यों में उसका प्रदर्शन खराब रहा है। यूपी में सपा की सीटों में पिछले बार के मुकाबले इजाफा हुआ है। बसपा एक सीट पर लुढ़क गई है। ऐसे में आइए जानते हैं इन पांच राज्यों के चुनाव का केंद्र और सूबों की राजनीति पर क्या असर पड़ेगा?
उत्तर प्रदेश: द्विपक्षीय मुकाबले में योगी की जीत- शुरुआत से ही यह स्पष्ट था कि चुनाव भाजपा और समाजवादी पार्टी के बीच होगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने “माफियावाद”, “लाल टोपीवालों का गुंडागर्दी” और “एक समुदाय (मुसलमान) का तुष्टिकरण” का जिक्र करते हुए सपा और अखिलेश यादव को निशाना बनाया।। परिणाम के देखते हुए कहा जा सकता है कि मतदाताओं ने भी भाजपा और सपा (या उनके संबंधित सहयोगियों) को ही वोट दिया। बसपा और कांग्रेस की अनदेखी की।
सुरक्षा और हिंदुत्व: कई मतदाताओं का मानना था कि कानून-व्यवस्था को देखते हुए मौजूदा सरकार को सत्ता में लाना जरूरी है। उनका तर्क यह था कि कोई भी सरकार महंगाई और बेरोजगारी जैसी समस्याओं को पूरी तरह से दूर नहीं कर सकती है। आदित्यनाथ की टिप्पणियों जैसे “गर्मी ठंडा कर दूंगा” या “बुलडोजर चलेगा” को व्यापक रूप से अपराधियों पर कार्रवाई के संदर्भ के रूप में देखा गया।
पंजाब : नए विकल्प को आजमाया – आम आदमी पार्टी (आप) ने पहली बार 2014 के लोकसभा चुनावों में पंजाब के चुनावी मैदान में कदम रखा था। 2017 के विधानसभा चुनावों के बाद वह यहां की मुख्य विपक्षी पार्टी बन गई और अब रिकॉर्ड 92 सीटों के साथ राज्य की सत्ता हासिल कर ली है। 1966 में पंजाब के पुनर्गठन के बाद किसी भी पार्टी का यह अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है। सूबे के लोगों ने कांग्रेस और शिरोमणि अकाली दल की जगह नए विभाग को आजमाया है।
विकास के लिए वोट- पंजाब पिछले दो दशकों में अपनी प्रति व्यक्ति आय में गिरावट देख रहा है। ऐसे में वहां के लोगों ने आम आदमी पार्टी की विकास के दिल्ली मॉडल के लिए मतदान किया। मतदाता अब एक ऐसी पार्टी चाहते हैं जो गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार का वादा कर सके, न कि केवल मुफ्त की चीजें देने का वादा करे।
शिअद को शिकस्त- पंजाब की सबसे पुरानी पार्टी शिअद को मतदाताओं ने कड़ा संदेश दिया, जिसने 2020 में 100 वर्ष पूरे किए। कभी अपने मोर्चों और लोगों के लिए आंदोलन के लिए जानी जाने वाली एक कैडर संचालित पार्टी, अकाली दल एक पारिवारिक पार्टी में बदल गई, जिसकी अगुवाई बादल परिवार करता है।
गोवा : बीजेपी को मिली जीत – बीजेपी ने उम्मीदवारों को यह देखकर टिकट दिया कि उनके जीतने का चांस क्या ह? पार्टी की अपने वफादार कैडर पर दलबदलुओं को तरजीह देने के लिए आलोचना का सामना करना पड़ा, लेकिन चुनावों में यह सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी।
बंटा हुआ विपक्ष- नतीजों को देखकर पता चला कि विपक्ष के बंटे होने से भाजपा को फायदा हुआ। कांग्रेस नेताओं ने स्वीकार किया कि आम आदमी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस और निर्दलीय सहित अन्य पार्टियों के बीच वोट बंट गए।
मणिपुर : बीजेपी मजबूत हुई- 2017 में भाजपा को 21 और कांग्रेस को 27 सीट मिली थी। पार्टी को सरकार बनाने के लिए छोटे दलों के साथ गठबंधन करने की जरूरत पड़ी। भाजपा अब खुद के बल पर सरकार बनाने के लिए तैयार है। ओकराम इबोबी सिंह की अगुवाई में 15 साल के कांग्रेस शासन में राज्य में काफी अशांति रही। इसके इतर भाजपा शांति, विकास और स्थिरता की बात करती है। पूर्वोत्तर क्षेत्र के अन्य छोटे राज्यों की तरह, मणिपुर के लोग अक्सर केंद्र में सत्ता में रहने वाली पार्टी को वोट देते हैं।
उत्तराखंड : कांग्रेस का प्रयास काफी नहीं- कांग्रेस के चुनावी घोषणापत्र में एलपीजी सिलेंडर की कीमत 500 रुपये से कम, रोजगार, 5 लाख परिवारों को मौद्रिक भत्ता, बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं और सरकारी नौकरियों में महिलाओं के लिए 40% आरक्षण का वादा किया था। मतदाताओं ने भाजपा को चुना, जिसने राष्ट्रीय सुरक्षा, सेना कल्याण और धार्मिक पर्यटन के वादे किए थे।
हालांकि ऐसा प्रतीत होता है कि कांग्रेस ने पार्टी के भीतर अंदरूनी कलह को पाटने और ठोस चुनावी वादे करने के मामले में सबकुछ सही किया, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर इसकी घटती लोकप्रियता ने उत्तराखंड में इसके खिलाफ काम किया। इस राज्य से कांग्रेस को सबसे ज्यादा उम्मीद थी। यहां से हार ने उसके लिए गंभीर चुनौती खड़ी कर दी है।