सुरेंद्र सिंघल
सहारनपुर के मतदाताओं ने पिछले तीन चुनावों में नई पार्टी और नया सांसद चुनकर अपने अनूठे मिजाज को प्रदर्शित किया है। देखना दिलचस्प होगा कि 2024 के इस चुनाव में यहां के मतदाता अपने इसी रुझान पर कायम रहते हैं या इस परिपाटी को बदलने का काम करते हैं।
लोकसभा चुनाव 2019 में बसपा के हाजी फजर्लुरहमान कुरैशी ने 5 लाख 14 हजार 139 वोट लेकर भाजपा के राघव लखनपाल शर्मा को 4 लाख 91 हजार 722 मतों से पराजित किया था। तब 73.7 फीसद मतदान हुआ था। इस मतदान ने पिछला नतीजा बदल दिया। क्योंकि 2014 के चुनाव में 74.2 फीसद वोट पड़े थे और भाजपा के राघव लखनपाल शर्मा 4 लाख 72 हजार 999 वोट लेकर विजयी हुए थे। उन्होंने कांग्रेस के इमरान मसूद 4 लाख 7 हजार 909 को पराजित किया था।
2009 के चुनाव में मतदान केवल 63.3 फीसद हुआ था। तब बसपा के जगदीश राणा 3 लाख 54 हजार 807 ने सपा के रशीद मसूद 2 लाख 69 हजार 934 को पराजित किया था। जाहिर है मतदान में उतार-चढ़ाव भी उम्मीदवारों के भाग्य में निर्णायक भूमिका अदा करता है।
सहारनपुर मंडल की कैराना लोकसभा सीट पर भी लोगों ने पिछले तीन चुनावों में अलग-अलग उम्मीदवारों को चुना है। 2019 के चुनाव में भाजपा के प्रदीप चौधरी 5 लाख 66 हजार 961 ने समाजवादी पार्टी की तबस्सुम बेगम को 4 लाख 74 हजार 801 को पराजित किया था।
2014 के चुनाव में भाजपा के हुकुम सिंह जीते थे। उनके निधन के बाद 2018 में हुए उपचुनाव में सपा समर्थित रालोद उम्मीदवार तबस्सुम बेगम ने भाजपा उम्मीदवार और हुकुम सिंह की बेटी मृगांका सिंह को पराजित किया था। इस बार तबस्सुम बेगम की बेटी और सपा विधायक नाहिद हसन की छोटी बहन इकरा हसन सपा उम्मीदवार हैं। 1984 में इसी सीट से इकरा हसन के बाबा अख्तर हसन कांग्रेस टिकट पर लोकसभा सदस्य चुने गए थे। इकरा हसन के पिता मुनव्वर हसन ऐसे राजनीतिक हुए जो विधायक, एमएलसी, लोक सभा सांसद और राज्य सभा सांसद रहे। यानि उन्होंने चारों सदनों का प्रतिनिधित्व किया।
मुनव्वर हसन 1996 में यहां से सपा टिकट पर सांसद चुने गए थे। जबकि उनकी पत्नी तबस्सुम हसन 2009 में बसपा के टिकट पर पहली बार सांसद चुनी गई थीं। माना जा सकता है कि ऐसा अनूठा राजनीतिक घराना शायद ही उत्तर प्रदेश या देश में कोई ओर हो, जिसके चार में से तीन सदस्य सांसद रहे हों और एक सदस्य कई बार विधायक चुना गया हो। इकरा के मुकाबले में भाजपा ने मौजूदा सांसद प्रदीप चौधरी को फिर से उम्मीदवार बनाया है। कैराना सीट से 1980 में पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की पत्नी एवं रालोद अध्यक्ष जयंत चौधरी की दादी गायत्री चौधरी सांसद रह चुकी है।
इस सीट की खास बात यह है कि 1984 में पहली बार मायावती चुनाव मैदान में उतरी थीं। तभी कांसीराम ने बहुजन समाज पार्टी का गठन किया था और मायावती को इस सीट से खड़ा किया था। तब इकरा हसन के बाबा अख्तर हसन विजयी हुए थे। मायावती ने तब यह नहीं सोचा होगा कि भविष्य में ऐसी स्थितियां भी पैदा होंगी कि उन्हीं की पार्टी से उन्हें हराने वाले अख्तर हसन के परिवार के लोग बसपा से सांसद चुने जाएंगे।