उत्तराखंड के कुमाऊं की लालाकुआं सीट से चुनाव लड़ रहे राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत को हार का सामना करना पड़ा। यहां भाजपा उम्मीदवार मोहन सिंह बिष्ट को जीत मिली है। उन्होंने पूर्व सीएम को 14 हजार वोटों से हराया है। माना जा रहा है कि कांग्रेस से बागी होकर लालकुआं सीट चुनाव लड़ीं निर्दलीय उम्मीदवार संध्या डालाकोटी के कारण हरीश को हार का सामना करना पड़ा। संध्या ने कांग्रेस के वोट बैंक सेंध लगा दी और भाजपा को जीत मिल गई।

टिकट कटने पर संध्या ने नाराजगी जाहिर की थी- लालकुआं से टिकट कटने पर संध्या डालाकोटी ने कांग्रेस के खिलाफ नाराजगी जाहिर की थी। हरीश रावत ने उन्हें मनाने की भी कोशिश की थी, लेकिन वो नहीं मानी और चुनाव लड़ीं। उन्होंने खुला पत्र लिखकर नाराजगी जाहिर की थी। संध्या ने लिखा था, “कांग्रेस के निष्ठावान कार्यकर्ता के तौर पर उन्होंने 12-12 घंटे क्षेत्र में रह कर अपना घर बार छोड़कर काम किया। कोरोना महामारी के दौरान खुद अपने हाथों से पैकेट बनाकर हजारों लोगों तक राशन पहुंचाया। बिंदुखत्ता आपदा की पीड़िता को निजी जमीन दान दी। परसों मेरे पितातुल्य दुर्गापाल जी ने और अब हरीश रावत ने मेरा अपमान किया। इसे मैं आखिरी सांस तक नहीं भूलूंगी। ‘लड़की हूं लड़ सकती हूं’ नारा देने वाली पार्टी ने जो अपमान किया, उसपर मैं आगे की रणनीति तय करूंगी।”

हरीश रावत ने हार स्वीकारी- बता दें कि हरीश रावत की यह विधानसभा चुनावों में दूसरी बड़ी हार है। पिछली बार भी उन्हें बड़ी पराजय का सामना करना पड़ा था। हालांकि, रावत लालकुआं सीट से अपनी जीत को लेकर आश्वस्त थे, लेकिन उन्हें बड़ी हार का सामना करना पड़ा। हरीश रावत ने सोशल मीडिया कू पर हार स्वीकार ली। उन्होंने कहा, ‘विधानसभा क्षेत्र से मेरी चुनावी पराजय की औपचारिक घोषणा ही बाकी है। मैं लालकुआं क्षेत्र के लोगों से जिनमें बिंदुखत्ता, बरेली रोड के सभी क्षेत्र सम्मिलित हैं, क्षमा चाहता हूं कि मैं उनका विश्वास अर्जित नहीं कर पाया और जो चुनावी वादे उनसे मैंने किये, उनको पूरा करने का मैंने अवसर गवा दिया है, बहुत अल्प समय में आपने मेरी तरफ स्नेह का हाथ बढ़ाने का प्रयास किया। मैं अपने आपको आपके बड़े हुए हाथ।’

हरीश रावत का राजनीतिक करियर- हरीश रावत ने 2014 से 2017 तक उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया है। उन्होंने 2012 से 2014 तक प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह के कैबिनेट में केंद्रीय जल संसाधन मंत्री का पद भी संभाला था। साल 2017 के विधानसभा चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा। उन्हें लोकसभा चुनाव 2019 में हार का सामना करना पड़ा था। वह पांच बार सांसद भी रहे हैं। वह पहली बार भाजपा के कद्दावर नेता मुरली मनोहर जोशी को हराकर साल 1980 में संसद पहुंचे थे।

लगातार दूसरी बार भाजपा सरकार– उत्तराखंड विधानसभा चुनाव के नतीजों की बात करें तो भाजपा एक बार फिर सत्ता में वापस आती दिखाई दे रही है। पार्टी लगभग 50 सीटों पर बढ़त बनाए हुए हैं। राज्य की राजनीति में ऐसा पहली बार होगा जब कोई पार्टी लगातार दूसरी बार सत्ता में वापसी करेगी। साल 2000 में उत्तराखंड , यूपी से अलग होकर राज्य बना था। इसके बाद से कभी ऐसा नहीं हुआ था।