राजनीतिक दल इस लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश के पूर्व राजघरानों के सदस्यों को उन सीट से मैदान में उतारने में कम रुचि दिखा रहे हैं, जहां पहले उनका प्रभाव था। अमेठी के पूर्व राजा संजय सिंह, पडरौना (कुशीनगर) के कुंवर आरपीएन सिंह, प्रतापगढ़ के कालाकांकर की पूर्व राजकुमारी रत्ना सिंह और जामो (अमेठी) के कुंवर अक्षय प्रताप सिंह गोपाल जी चुनावी समर में नहीं हैं। इसी तरह पूर्व विधायक एवं भदावर (आगरा) के पूर्व राजा महेन्द्र अरिदमन सिंह और रामपुर की बेगम नूरबानो और नवाब काज मि अली भी चुनावी रण में नहीं हैं। ऐसे में उनके किलों में भी वैसी रंगत नहीं है, जैसी उनके उम्मीदवार होने पर दिखती रही है।
सामाजिक कार्यकर्ता और राजनीतिक विश्लेषक कौशल कुमार शाही ने बताया कि कई पूर्व राजाओं और राजकुमारों ने अपनी रियासतों के विलय के बाद राजनीति में कदम रखा। उन्होंने कहा, ‘लेकिन इस चुनाव में कई पूर्व राजाओं को चुनाव लड़ने का मौका न मिलने से उनके किलों की रौनक फीकी लग रही है।’
कांग्रेस छोड़कर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में शामिल हुए अमेठी रियासत के पूर्व राजा व पूर्व केंद्रीय मंत्री संजय सिंह इस बार चुनाव मैदान में नहीं हैं। उनके एक करीबी ने बताया, महाराज (संजय सिंह) को लेकर इस बार उम्मीद थी कि उन्हें सुलतानपुर में भाजपा उम्मीदवार बनाएगी, लेकिन पार्टी ने मेनका गांधी को फिर से प्रत्याशी घोषित कर दिया।
पूर्व राज्यसभा सदस्य संजय सिंह ने 1998 में भाजपा के टिकट पर अमेठी संसदीय सीट से चुनाव जीता था और 2009 में कांग्रेस के उम्मीदवार के तौर पर सुलतानपुर से सांसद बने थे। संजय सिंह 2019 में कांग्रेस उम्मीदवार के तौर पर सुलतानपुर में मेनका गांधी से चुनाव हार गए थे।
प्रतापगढ़ जिले के कालाकांकर रियासत की पूर्व राजकुमारी एवं पूर्व सांसद रत्ना सिंह के लिए चुनाव लड़ने की संभावना खत्म हो गई है, क्योंकि भाजपा ने यहां अपने मौजूदा सांसद संगम लाल गुप्ता को फिर उम्मीदवार बनाया है। रत्ना सिंह कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुई थी।
प्रतापगढ़ में 2019 में कांग्रेस उम्मीदवार के तौर पर तीसरे स्थान पर रहीं रत्ना सिंह ने यहां से 1996, 1999 और 2009 में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीता था, लेकिन 2014 में अपना दल (एस) के कुंवर हरिवंश सिंह और 2019 में संगम लाल गुप्ता से पराजित हो गई थीं और कुछ वर्ष पहले वह भाजपा में शामिल हो गयीं।
कुंवर अक्षय प्रताप सिंह उर्फ गोपाल जी ने 2004 में समाजवादी पार्टी (सपा) के टिकट पर प्रतापगढ़ से लोकसभा चुनाव जीता। वह 2019 में इस सीट से जनसत्ता दल (लोकतांत्रिक) के उम्मीदवार थे लेकिन तीसरे स्थान पर रहे। इस बार उनके चुनाव लड़ने के फिलहाल कोई संकेत नहीं हैं।
उधर, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में रामपुर लोकसभा क्षेत्र की पूर्व सांसद व भूतपूर्व नवाब परिवार की बेगम नूर बानो 84 वर्ष की उम्र में भी विपक्षी दलों के समूह ‘इंडिया’ गठबंधन की प्रमुख घटक कांग्रेस से टिकट की दावेदार थीं लेकिन समझौते में यह सीट सपा के हिस्से में जाने से उनकी दावेदारी खत्म हो गई।
