प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की विजय शंखनाद रैली भी मेरठ में भाजपा प्रत्याशियों को कोई संजीवनी देती नहीं दिख रही। पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा ने मेरठ की सात विधानसभा सीटों में से चार पर जीत पाई थी लेकिन इस बार पार्टी उस कामयाबी को दोहरा पाएगी, इसमें संशय है। मोदी का रैली से दिया गया संदेश विधानसभा चुनाव में जातीय समीकरणों को तोड़ता नहीं दिख रहा है। मेरठ शहर व कैंट विधानसभा सीट से भाजपा उम्मीदवार जीत की हैट्रिक लगा चुके हैं लेकिन इस बार भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष डा0 लक्ष्मीकांत वाजपेयी के लिए यह राह आसान नहीं है। उधर सरधना सीट से मुज्जफ्फरनगर दंगों के आरोपी संगीत सोम भी त्रिकोणीय मुकाबले में घिरे हुए हैं। मेरठ शहर सीट से भाजपा के डा0 लक्ष्मीकांत वाजपेयी अब तक सात बार विधानसभा चुनाव लड़कर चार बार अपनी विजय दर्ज करा चुके हैं। यह उनका आठवां चुनाव है, लेकिन भाजपा के परंपरागत वोट बैंक में भी वाजपेयी के खिलाफ गहरी नाराजगी है। उधर, बसपा ने पंकज जोली को मैदान में उतारकर भाजपा के समीकरण गड़बड़ा दिए हैं।

लोकदल ने भी ज्ञानेन्द्र शर्मा को टिकट देकर भाजपा के लिए दिक्कत पैदा कर दी है। शहर सीट पर हिन्दू और मुसलमान आबादी का प्रतिशत क्रमश: 52 और 48 है। वहीं समाजवादी पार्टी के रफीक अंसारी के एकमात्र मुसलमान उम्मीदवार होने के कारण अल्पसंख्यक मतों में विभाजन होता नहीं दिख रहा। इसका सीधा नुकसान भाजपा को होता दिखाई दे रहा है। सरधना विधानसभा सीट से भाजपा विधायक संगीत सोम चुनाव मैदान में है। सोम की घेराबंदी के लिए समाजवादी पार्टी ने क्षेत्रीय नेता व मुख्यमंत्री के करीबी माने जाने वाले अतुल प्रधान को उतारा है। उधर बसपा से हाजी याकूब के बेटे इमरान कुरैशी चुनाव मैदान में हैं। इस सीट पर भी जातीय समीकरण पूरी तरह हावी हैं। पिछला विधानसभा चुनाव हाजी याकूब ने रालोद के टिकट पर लड़ा था लेकिन 50,000 से अधिक वोट पाने के बावजूद वे संगीत सोम से चुनाव हार गए थे। इस बार मुसलमानों का इस सीट पर क्या रुख रहता है यह काफी हद तक हार-जीत तय करेगा। बसपा प्रमुख मायावती अपने भाषणों में लगातार कह रही हैं, कि अगर मुसलिम वोटों का विभाजन हुआ तो इसका सीधा फायदा भाजपा को मिलेगा। अगर मुसलमान के साथ बसपा का परंपरागत दलित वोट हाथी को जाता है तो यह भाजपा के लिए खतरे की घंटी है।

भाजपा का मजबूत गढ़ मानी जाने वाली कैंट विधानसभा सीट पर भाजपा ने चौथी बार सत्यप्रकाश अग्रवाल को मैदान में उतारा है। पिछले चुनाव में सत्यप्रकाश करीब 3000 मतों से ही जीत हासिल कर सके थे। वैश्य बहुल होने के कारण यह सीट परंपरागत रूप से भाजपा की ही मानी जाती है लेकिन नोटबंदी के बाद यहां व्यापारी वर्ग के बड़े तबके में खासी नाराजगी दिख रही है। इस बार सपा व कांग्रेस के गठबंधन के तहत होटल व्यवसायी कांग्रेस के टिकट पर चुनाव मैदान में हैं। इस इलाके में पंजाबी मतदाताओं की भी खासी तादाद है। पिछले चुनाव में बसपा के टिकट पर पंजाबी बिरादरी के सुनील कुमार वाधवा 67,000 मत लेकर दूसरे स्थान पर रहे थे। लेकिन बसपा ने इस बार जाट कार्ड खेलते हुए सत्येंद्र सोलंकी पर दांव लगाया है। मेरठ दक्षिण सीट पर पिछले चुनाव में भाजपा के उम्मीदवार रवीन्द्र भड़ाना ने बसपा के प्रत्याशी राशिद अखलाख को हराया था, लेकिन इस बार भाजपा ने उनका टिकट काटकर युवा नेता डा सोमेंद्र तोमर को प्रत्याशी बनाया है। यह सीट पूरी तरह से धु्रवीकरण में फंसी हुई है। इस बार बसपा ने विवादों में रही हाजी याकूब कुरैशी को चुनाव मैदान में उतारा है। कांग्रेस से आजाद सैफी व रालोद से पप्पू गुर्जर भी ताल ठोक रहे हैं। मुसलिम मत इस सीट पर भी निर्णायक भूमिका निभाएंगे। किठौर, सिवालखास और हस्तिनापुर विधानसभा सीटों पर भी भाजपा बढ़त हासिल करती नहीं दिख रही।