विष्णु मोहन

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में सत्ता हासिल करने की उम्मीद संजोए बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने पिछले चुनाव में उसके खाते से छिटके मतदाताओं को अपनी ओर करने की मुहिम चला रखी है। पार्टी अध्यक्ष मायावती ने अपने खास सिपहसालारों को इसकी जिम्मेदारी सौंपी है। पिछले विधानसभा चुनाव को छोड़ पहले के सभी चुनावों में बसपा का वोट फीसद लगातार बढ़ता गया था। लेकिन 2012 के चुनाव में पांच फीसद से अधिक वोट कम होने से वह सत्ता से बाहर हो गई थी। बसपा इस बार ऐसा नहीं होने देना चाहती है। इसी वजह से मायावती ने मुसलिम वोटबैंक पर ध्यान देना शुरू कर दिया है। सपा-कांग्रेस के संभावित गठबंधन को देखते हुए बसपा इस पर तेजी से अमल कर रही है।

बसपा के भरोसेमंद सूत्रों की माने तो मायावती ने करीबी ओहदेदारों को साफ कह दिया है कि ऐसी कोई गलती न हो जिसका असर उनके वोटबैंक पर पड़े। चुनाव आयोग की ओर से चुनाव की तारीखों की घोषणा से पहले से दिल्ली और लखनऊ में हुई आधा दर्जन से अधिक बैठकों में इस नतीजे पर पहुंचा गया कि 2012 में पार्टी की जो हार हुई, वह उसके मुसलिम वोटबैंक के समाजवादी पार्टी के खाते में ट्रांसफर होने की वजह से हुई। लेकिन मौजूदा हालात को देखते हुए बसपा को इस बात का भरोसा है कि इस बार पुरानी कहानी नहीं दोहराएगी। सूत्रों के मुताबिक मायावती ने हाल ही में पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष रामअचल राजभर के अलावा पूर्व मंत्री लालजी वर्मा, नसीमुद्दीन सिद्दीकी और सतीशचंद्र मिश्र के साथ सामूहिक और एकल बैठकों में इसे लेकर रणनीति बनाई है। इसके तहत मुसलिम धर्मगुरुओं से भी संपर्क साधा जा रहा है। खास बात यह है कि ऐसी ही कवायद समाजवादी पार्टी भी कर रही है। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के साथ ही मुलायम गुट के भी मुसलिम धर्मगुरुओं से संपर्क करने की सूचना है। जानकारों का कहना है कि इसी वजह से मुलायम सिंह ने हाल ही में यहां तक बयान दे दिया कि मुसलिमों का साथ देने के लिए वे अपने बेटे अखिलेश के खिलाफ भी चले जाएंगे।

बसपा सूत्रों का कहना है कि अगर आंकड़ों को देखा जाए तो 14 अप्रैल 1984 को अपनी स्थापना के बाद से बहुजन समाज पार्टी का जनाधार सबसे तेजी के साथ बढ़ा है। बसपा ने 1984 में अपने पहले चुनाव में ही 9.41 फीसद वोट हासिल कर शानदार आगाज किया था। इसके बाद से पार्टी का जनाधार लगातार बढ़ता गया और 2007 के चुनाव में बसपा 30.43 फीसद वोट हासिल कर 206 सीटें जीतने में कामयाब रही थी। लेकिन 2012 के चुनाव में उसका वोट बैंक 25.91 फीसद पर आ गया। इससे बसपा को सपा से करारी शिकस्त खानी पड़ी थी। यह माना जा रहा है कि सपा और कांग्रेस के गठबंधन के बाद मुसलिम वोटों का ध्रुवीकरण गठबंधन के पक्ष में हो जाएगा। पर बसपा शीर्ष कमान की कोशिश इस बात की है कि किसी तरह मुसलिम मतदाता का विश्वास एक बार फिर हासिल किया जा सके। चूंकि उत्तर प्रदेश में शिया मुसलिम वोट बैंक सपा से टूट चुका है और सुन्नी मुसलिम भी सपा का साथ देने से पहले कई सवालों के जवाब तलाश रहे हैं। भाजपा के खाते में अल्पसंख्यकों का मत एक निश्चित फीसद से अधिक जाना नहीं है। कांग्रेस को लेकर यह वोटबैंक असमंजस की स्थिति में है। ऐसे में बसपा को उम्मीद है कि अगर सही कदम उठाए गए तो पार्टी का खोया जनाधार वापस हासिल हो सकता है जो उसे फिर सत्ता दिलाने में अहम भूमिका निभा सकता है।