दीपक रस्तोगी
उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी की नेता मायावती भविष्य की राजनीति के नए समीकरण गढ़ रही हैं। तीन साल से गुपचुप तैयारियों में जुटीं बसपा बूथ स्तर पर वोटों का गणित प्रभावित कर रही है। मतदाताओं के साथ पार्टी के कार्यकर्ताओं और नेताओं के बीच सीधे संवाद का लाभ उनकी पार्टी के नेता गिनाने लगे हैं। उनका पारंपरिक दलित वोट बैंक उनके पक्ष में एकजुट हो रहा है। साथ ही बूथ स्तर पर भाईचारा बैठकों के जरिए कुछ हद तक सवर्ण और मुसलिम मतदाताओं के बीच बसपा की पैठ बढ़ी है। इस बार के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस-सपा गठबंधन और भारतीय जनता पार्टी के नेता एक-दूसरे पर शिद्दत से हमले कर रहे हैं। तुलनात्मक रूप से मायावती को लेकर रवैया नरम है। 2019 के लोकसभा चुनाव के मद्देनजर कांग्रेस और सपा उनको भाजपा विरोधी गठबंधन में साथ लेने की संभावना अभी से भांपने लगे हैं। इस बार माया के सामने न सिर्फ अपने पारंपरिक वोट बैंक को इकट्ठा करने की चुनौती उनके सामने है। बल्कि, वे मुसलिम मतदाताओं को लेकर नया समीकरण गढ़ने की कोशिश में भी हैं।
अतीत के दो चुनावों में उनका वोट बैंक छिजता गया है। उन्होंने जो खोया है, उस हिसाब से अबकी बार उनके लिए ‘करो या मरो’ की स्थिति है। उत्तर प्रदेश के पांच साल पहले के विधानसभा चुनाव और 2014 के लोकसभा चुनाव में जिस तरह से बसपा का वोट बैंक टूटा, उससे मायावती और उनकी पार्टी के राजनीतिक अस्तित्व को लेकर अटकलें शुरू हो गईं। इस बार के चुनाव के उनके लिए भाजपा ने जब केशव प्रसाद मौर्य को प्रदेश अध्यक्ष बनाया तो माना गया कि दलित वोट बैंक में सेंध की कोशिश में है। पर कांग्रेस और सपा के एकजुट होने से जब मुकाबला तितरफा हुआ तो भाजपा ने माया पर अपना रवैया नरम कर लिया है। वर्ष 2012 में विधानसभा चुनाव में सपा के हाथों सत्ता गंवाने के बाद मायावती का हाथी सुस्त पड़ गया। 2007 में में विधानसभा की 206 सीटों के साथ स्पष्ट बहुमत पाने वालीं मायावती को 2012 में 25.91 फीसद वोटों के साथ महज 80 सीट मिलीं। 2014 के लोकसभा चुनाव में पार्टी एक भी लोकसभा सीट नहीं जीत पाईं। उनको वोटों का भी खासा नुकसान हुआ (देखें चार्ट)। मुसलिम, सवर्ण, पासी और अन्य अनुसूचित जातियों के बीच उनका वोट बढ़ता रहा है, लेकिन बाल्मीकि और जाटव मतदाताओं को भाजपा ने उनसे छीना (देखें चार्ट)। सपा-कांग्रेस गठबंधन से बसपा को अपनी रणनीति में आखिरी मौके पर बदलाव करना पड़ा। अब बसपा अपनी लड़ाई इस गठबंधन से ही मानकर चल रही है।


