यूपी में पहले फेज का मतदान 10 फरवरी को होना है। इस फेज में यूपी के गन्ना बेल्ट यानि कि पश्चिमी यूपी में वोट डाले जाएंगे। इस इलाके में किसानों के मुद्दों पर ही वोटिंग होने की संभावना है। 2017 के चुनाव में बीजेपी ने यहां पर जबरदस्त जीत हासिल की थी। तब बसपा से बीजेपी की ज्यादातर इलाकों में टक्कर हुई थी।

हालांकि बीजेपी ने अब तक के प्रचार में समाजवादी पार्टी को अपने मुख्य प्रतिद्वंद्वी के रूप में पेश किया है, लेकिन पश्चिमी उत्तर प्रदेश की 58 सीटों पर बसपा से चुनौती मिलती दिख रही है। कम से कम पिछले चुनावों में मायावती की पार्टी के प्रदर्शन को देखते हुए तो यही कहा जा सकता है।

पिछले विधानसभा चुनाव में, भाजपा ने 403 में से 312 सीटों पर जीत हासिल की थी। वहीं गन्ना बेल्ट में 58 में से 53 सीटों पर भाजपा ने अपना कब्जा जमाया था। सपा और बसपा ने दो-दो सीटें जीतीं थी, जबकि रालोद को एक सीट मिली थी। बसपा को जीत तो दो सीटों पर मिली थी, लेकिन वो 30 सीटों पर बीजेपी के सामने टक्कर में थी। इन सीटों पर नंबर दो पर बसपा रही थी। उसके बाद सपा 15 सीटों पर, कांग्रेस पांच पर और रालोद तीन पर उपविजेता रही थी।

कहा जाता है कि पिछली बार मुजफ्फरनगर दंगों ने इस क्षेत्र में वोटों का धुव्रीकरण किया और बीजेपी इसी मुद्दे को लेकर चुनाव में उतरती दिखी थी। परिणाम ये रहा कि अधिकांश सीटों पर भाजपा उम्मीदवार की औसत जीत का अंतर 40,000 से अधिक रहा। इस बार पहले चरण में ही मुजफ्फरनगर और कैराना दोनों क्षेत्रों में मतदान होना है।

इससे पहले 2012 में बसपा ने इस इलाके में सबसे ज्यादा सीटों पर जीत हासिल की थी। तब बसपा ने 20 सीटें जीती थीं। सपा-14, बीजेपी-10, रालोद-9 और कांग्रेस को पांच सीटें मिली थीं। तब भी बसपा ही सबसे ज्यादा सीटों पर उपविजेता थी। 2013 के मुजफ्फरनगर दंगों तक, बसपा ने इस क्षेत्र में मुसलमानों और दलितों के वोट वैंक के ज्यादातर हिस्से को अपने पास रखा और मजबूत ताकत बनी रही।

इसी तरह, रालोद ने अपने जाट मतदाताओं को थामे रखा। लेकिन जब दंगे हुए तो जाट वोटों के साथ-साथ दलित वोटों का एक बड़ा हिस्सा भी बीजेपी के पास चला गया, जिसने, उसे इस इलाके में बड़ी जीत हासिल करने में मदद की। ध्रुवीकरण की बात इससे भी स्पष्ट होती है कि 2012 में इस क्षेत्र से जहां 11 मुस्लिम उम्मीदवार जीते थे, वहीं 2017 में केवल तीन को जीत नसीब हुई थी।

हालांकि किसान आंदोलन के बाद से एक बार फिर से इस इलाके की तस्वीर बदलती दिख रही है। भाजपा पिछली बार की तरह यहां मजबूत नहीं मानी जा रही है। यही कारण है कि गन्ना किसानों को सभी पार्टियां लुभाने की कोशिश कर रही है। हाल ही में आदित्यनाथ सरकार ने निजी नलकूपों के लिए बिजली की दरें कम कर दी हैं। वहीं सपा ने किसानों को मुफ्त बिजली और रालोद ने कर्जमाफी का वादा किया है।