उत्तर प्रदेश चुनाव 2022 में पहली बार विधानसभा इलेक्शन लड़ रहे सीएम योगी आदित्यनाथ की सीट को लेकर पिछले दिनों सियासत काफी गर्म रही। बीजेपी के रणनीतिकार लंबे समय तक इस बात पर माथा-पच्ची करते रहे कि सीएम योगी को अयोध्या से लड़ाया जाए या गोरखपुर से? आखिरकार सीएम योगी को गोरखपुर से चुनाव लड़ाने का निर्णय लिया गया।
पार्टी के इस फैसले को बहुत से राजनीतिक पंडितों ने सीएम योगी के बढ़ते कद को छोटा करने की कोशिश के तौर पर देखा। ब्रैंड योगी की गाहे-बाहे ब्रैंड मोदी से तुलना होती ही रहती है। ऐसे में माना गया कि अयोध्या जैसी जगह से सीएम योगी का लड़ना उन्हें बीजेपी के भीतर राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित करने वाला कदम हो जाता। सियासत में अटकलें, कयासबाजी, विश्लेषण कोई अजीब बात नहीं है, ये सब चलता रहता है… लेकिन शुक्रवार को बीजेपी ने जब 91 उम्मीदवारों की लिस्ट जारी की, तब उससे यह बात एकदम स्पष्ट हो गई कि आखिर सीएम योगी को अयोध्या से क्यों नहीं लड़ाया गया और क्यों उन्हें उनकी पारंपरिक सीट गोरखपुर से ही मैदान में उतारा गया?
सीएम योगी को गोरखपुर से लड़ाने के पीछे दो अहम कारण सामने आए हैं। पहला गोरखपुर रीजन में सत्ता विरोधी लहर और दूसरा अवध रीजन में बीजेपी को लिती दिख रही बढ़त। दोनों कारणों पर विस्तार से गौर करते हैं।
पहला कारण- गोरखपुर रीजन में बीजेपी पिछड़ती दिखाई दे रही है। पार्टी के अंदरूनी सर्वेक्षण में निश्चित तौर पर सीएम योगी के इस क्षेत्र में सत्ता विरोधी लहर दिखाई दे रही है। इसका प्रमाण हमें शुक्रवार की लिस्ट में मिल जाता है। 91 उम्मीदवारों की इस लिस्ट में करीब 20 मौजूदा विधायकों के टिकट कटे हैं। इन 20 में 11 तो अकेले गोरखपुर रीजन के ही हैं। इतना ही नहीं, चार उम्मीदवार उन सीटों पर भी बदले गए हैं, जहां पर बीजेपी को 2017 की प्रचंड लहर में भी हार का सामना करना पड़ा था।
गोरखपुर रीजन में एंटी इन्कमबेंसी (सत्ता विरोधी लहर) का सबूत कई और आंकड़ों से भी मिलता है। गोरखपुर रीजन में आने वाली कुल 62 सीटों में 37 पर बीजेपी ने अब तक कैंडिडेट उतार दिए हैं। इनमें 43 प्रतिशत नए चेहरे हैं। बीजेपी ने अब तक जारी की 295 उम्मीदवारों की लिस्ट में कुल 56 मौजूदा विधायकों के टिकट काटे हैं, इनमें 11 तो अकेले सीएम योगी के गढ़ से ही हैं। इसके अलावा कुशीनगर समेत पूर्वांचल के कई और इलाकों में भी कई मौजूदा विधायकों के टिकट कटे हैं।
अब इतने बड़े पैमाने पर मौजूदा विधायकों के टिकट बीजेपी को काटने की जरूरत क्यों पड़ी? पहली वजह तो स्पष्ट है कि मौजूदा विधायक के खिलाफ लोगों में नाराजगी है। दूसरा उम्र को भी एक फैक्टर माना जा रहा है। पार्टी बेहद उम्रदराज विधायकों की जगह नए चेहरों पर दांव खेलना चाहती है। बहरहाल, कारण चाहे जो भी हो लेकिन कुला मिलाकर बात यह है कि जिस गोरखपुर और पूर्वांचल को सीएम योगी का गढ़ माना जाता रहा है, वहां पर अब सिर्फ सीएम योगी के चेहरा ही पार्टी का सहारा है। मतलब इस क्षेत्र में ऐसे बेहद कम विधायक हैं, जो अपने चेहरे या काम के दम पर कमल खिला सकते हैं। ऐसे में सीएम योगी को गोरखपुर से निकालकर अगर पार्टी ने अयोध्या लड़ाने का फैसला कर लिया होता तो निश्चित तौर पर जितनी सीटों का फायदा अयोध्या में होता, उससे ज्यादा नुकसान तो गोरखपुर और पूर्वांचल में पार्टी को हो जाता। निश्चित तौर पर पार्टी के अंदरूनी सर्वे में यह बात जरूर सामने आई होगी।
2017 विधानसभा चुनाव की बात करें तो पूर्वांचल में बीजेपी को 69 सीटें मिली थीं, जबकि टाइम्स नाउ नवभारत के ताजा सर्वे की मानें तो 2022 में बीजेपी गठबंधन को पूर्वांचल में 48 से 52 पर जीत प्राप्त हो सकती हैं। सोचिए अगर सीएम योगी को ऐसी स्थिति में पार्टी अयोध्या भेज देती तो गोरखपुर रीजन में पार्टी को नुकसान होना तय था।
वहीं, अवध रीजन की बात करें तो यहां पर बीजेपी ने शुक्रवार को जारी लिस्ट में ज्यादातर मौजूदा विधायकों पर ही भरोसा जताया है। मतलब पार्टी की नजर में यहां के विधायकों का रिपोर्ट कार्ड है। टाइम्स नाउ नवभारत के ही सर्वे की बात करें तो अवध रीजन की 98 सीटों से बीजेपी को 64 पर जीत मिलने की संभावना है। एक तरह से यह सर्वे भी बीजेपी के आंकलन को सपोर्ट करता दिख रहा है।
