उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव 2022 के लिए चुनाव प्रचार शुरू हो चुके हैं और सभी दलों ने स्टार प्रचारकों की लिस्ट भी जारी कर दी है। हालांकि अभी कोरोना के कारण चुनाव आयोग ने केवल डिजिटल रैलियों की ही इजाजत दी है। 23 जनवरी को कोरोना की स्थिति का आकलन करने के बाद चुनाव आयोग प्रचार को लेकर नए दिशा निर्देश जारी करेगा।

उत्तर प्रदेश में जब भी चुनाव होते हैं तो आसमानों में हेलीकॉप्टरों की गड़गड़ाहट गूंजने लगती है। लेकिन इस बार उत्तर प्रदेश में कुछ नेताओं की कमी राजनीतिक दलों और जनता को जरूर खलेगी। यह नेता अपने भाषणों के लिए मशहूर थे और जनता में उनकी काफी अच्छी पकड़ थी। आइए जानते हैं इस बार के चुनाव में किन नेताओं की कमी उत्तर प्रदेश की जनता और राजनीति दोनों को महसूस होगी?

कल्याण सिंह: भाजपा के बड़े नेताओं में शुमार और भारतीय जनता पार्टी का हिंदुत्व चेहरा रहे पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह भी इस बार चुनाव प्रचार में नहीं होंगे। पिछले साल गंभीर बीमारी के बाद उनका निधन हो गया था। हालांकि कल्याण सिंह ने 2017 में भी चुनाव प्रचार नहीं किया था क्योंकि उस वक्त वह गवर्नर थे। लेकिन उनकी उपस्थिति मात्र से ही कई उम्मीदवारों के समीकरण बनते बिगड़ते रहते थे। कल्याण सिंह के बेटे एटा से सांसद हैं और उनके नाती संदीप सिंह विधायक हैं। पिछड़ों को भाजपा से जोड़ने का श्रेय कल्याण सिंह को ही जाता है।

लोध बाहुल्य क्षेत्रों में उनकी उपस्थिति काफी मायने रखती थी। अलीगढ़, एटा, कासगंज समेत 8-10 जिलों में उनकी काफी अच्छी पकड़ थी। 2017 के चुनाव में भले ही कल्याण सिंह चुनाव प्रचार में नहीं थे, लेकिन उनके कार्यकाल का ही सहारा लेकर बीजेपी चुनाव प्रचार कर रही थी। उस समय पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह भी कई रैलियों में कहा करते थे कि भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनने के बाद कानून व्यवस्था कल्याण सिंह के कार्यकाल जैसी होगी।

चौधरी अजीत सिंह: चौधरी अजीत सिंह की मृत्यु मई 2021 में हो गई थी। राष्ट्रीय लोकदल के लिए पहला चुनाव होगा जब उनके साथ चौधरी अजीत सिंह प्रचार में नहीं होंगे। अकेले जयंत चौधरी को इस बार रालोद के चुनाव प्रचार की कमान संभालनी होगी। बता दें कि अजीत सिंह की जाट वोटों में काफी पकड़ थी और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में लोग उनकी काफी इज्जत करते थे। भले ही अजीत सिंह 2014 और 2019 का लोकसभा चुनाव हार गए, लेकिन लोगों के मन में उनके लिए इज्जत कभी कम नहीं हुई।

बेनी प्रसाद वर्मा: अपने चुटकुलों और बयानों के लिए चर्चित समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता बेनी प्रसाद वर्मा भी इस चुनाव में नहीं होंगे। उनकी भी मृत्यु हो चुकी है। समाजवादी पार्टी के संस्थापक सदस्यों में से एक बेनी प्रसाद वर्मा ने 2009 में समाजवादी पार्टी को छोड़ दिया था। हालांकि 2016 में मुलायम सिंह ने उन्हें फिर से समाजवादी पार्टी में शामिल कराया और उन्हें राज्यसभा भेजा। बेनी प्रसाद वर्मा कुर्मी वर्ग से आते थे और इस समाज में उनकी काफी पकड़ थी।

लालजी टंडन: लखनऊ के लालजी टंडन अटल जी के काफी करीबी माने जाते थे और अटल जी की अनुपस्थिति में लालजी टंडन ने लखनऊ से लोकसभा चुनाव लड़ा और जीत कर संसद पहुंचे थे। इस बार वो भी चुनाव प्रचार में नही दिखेंगे, उनकी भी मृत्यु हो चुकी है। हालांकि उनके बेटे आशुतोष टंडन उत्तर प्रदेश की राजनीति में सक्रिय है और प्रदेश सरकार में मंत्री भी हैं। लखनऊ में लालजी टंडन के लिए लोगों के मन में काफी इज्जत है। हर समुदाय के लोग उनकी काफी इज्जत करते थे।

विनोद कुमार सिंह उर्फ पंडित सिंह: उत्तर प्रदेश के गोंडा से आने वाले पंडित सिंह भी इस चुनाव प्रचार में नहीं दिखेंगे। उनकी भी मृत्यु हो चुकी है। अपने अवधी और ठेठ भोजपुरी बयानों के लिए मशहूर पंडित सिंह की कमी इस बार जनता को जरूर खलेगी। पंडित सिंह के बारे में कहा जाता है कि वह कहीं भी हो, किसी भी मंच पर हो, अपनी भाषा से कोई कंप्रोमाइज नहीं करते थे। खुलकर और ठेठ भोजपुरी में अपना पक्ष मजबूती से रखते थे। गरीबों के लिए मजबूती से खड़े भी होते थे।

लक्ष्मीकांत बाजपेयी: बीजेपी नेता और पूर्व बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मीकांत बाजपेयी भी इस बार चुनाव प्रचार से दूर दिख रहे हैं। वर्तमान में बीजेपी ने उन्हें जॉइनिंग कमेटी का चेयरमैन बनाया है लेकिन स्टार प्रचारकों की पहली लिस्ट में उनका नाम नहीं है। लक्ष्मीकांत बाजपेयी मेरठ से आते हैं और प्रदेश के बड़े ब्राह्मण नेताओं में से एक माने जाते हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव में जब बीजेपी को उत्तर प्रदेश में 73 सीटें मिली, उस समय प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मीकांत बाजपेयी ही थे। हालांकि लक्ष्मीकांत बाजपेयी राजनीति में सक्रिय हैं और बीजेपी ने उन्हें पहले चरण के लिए स्टार प्रचारकों की लिस्ट में नहीं रखा है। उत्तर प्रदेश में पहले चरण में पश्चिमी उत्तर प्रदेश की सीटों पर मतदान होगा और पश्चिमी यूपी से ही प्रचार से दूर रहना लक्ष्मीकांत बाजपेयी के समर्थकों को जरूर आश्चर्यचकित करेगा।

अमर सिंह: दशकों तक राजनीति में सक्रिय रहे अमर सिंह भी अब इस दुनिया में नहीं है। उत्तर प्रदेश की जनता को भी इस चुनाव प्रचार में उनकी कमी जरूर खलेगी। अमर सिंह अपने बयानों में शायरियों के लिए और चुटीले कथनों के लिए काफी मशहूर थे। आजम खान और अमर सिंह का विवाद जगजाहिर है और चुनाव प्रचार के लिए अमर सिंह रामपुर जरूर जाते थे। 2017 चुनाव से पहले जब अखिलेश और शिवपाल में विवाद हुआ था तब अमर सिंह शिवपाल के साथ खड़े थे। अमर सिंह भले ही सपा से राज्यसभा सांसद थे लेकिन अखिलेश यादव ने कई दफा अमर सिंह के खिलाफ भरी सभाओं में भी बयान दिया था।

आजम खां: समाजवादी पार्टी के कद्दावर नेताओं में से एक आजम खान इस वक्त जेल में बंद है। चुनाव प्रचार में उनकी भी भारी कमी महसूस होगी। आजम खान की सभाओं में भारी संख्या में लोग आते थे और उन्हें सुनते थे। आजम खान अभी जेल में बंद हैं और अगर आगे उनकी जमानत होती है, उस स्थिति में वह जरूर चुनाव प्रचार में नजर आ सकते हैं। आजम खान के विपक्षी नेताओं पर तंज और चुटीले बयान काफी मशहूर है।