उत्तर प्रदेश की राजनीति में डीपी यादव का नाम चर्चा का विषय बना रहता है। डीपी यादव का पूरा नाम धर्मपाल यादव है। अपने शुरुआती जीवन में उन्होंने दूध बेचने का काम किया लेकिन इस धंधे में वो अधिक देर तक बंध न सके और शराब के धंधे में अपनी किस्मत आजमाई। राजस्थान से आने वाली शराब को हरियाणा, यूपी और दिल्ली में बेचकर डीपी यादव ने खूब पैसा कमाया।

25 जुलाई 1948 को जन्में डीपी यादव को अधिक संपत्ति बनाने के बाद 1990 में राजनीति में आने का मन हुआ। उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत कांग्रेस से की। दरअसल 80 के दशक में उनकी मुलाकात महेंद्र सिंह भाटी से हुई। भाटी उस समय यूपी की दादरी के विधायक थे। उन्होंने डीपी यादव को राजनीति गुर सिखाए और राजनीति में प्रवेश दिलाया और डीपी को बिसरख से ब्लॉक प्रमुख बनवा दिया।

1992 में महेंद्र सिंह भाटी की हत्या कर दी गई। इसका आरोप डीपी यादव पर लगा। लेकिन इन आरोपों के बीच समाजवादी पार्टी के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव उन्हें 1993 में बुलंदशहर से टिकट दे दिया और डीपी यादव विधायक बन गए। विधायक बनने के बाद डीपी यादव का नाम कई अपराधों में आने लगा। लेकिन उनका रसूख ऐसा रहा कि कानून के शिकंजे से बचते रहे।

आलम यह रहा कि डीपी यादव पर एक के बाद एक नौ हत्याओं का आरोप लगा। हालांकि आगे चलकर वो इस मामले में बरी हो गये। अपहरण, फिरौती, डकैती जैसे कई मामलों में डीपी यादव सुर्खियां बटोर रहे थे। इसको देखते हुए सपा भी बैकफुट पर आने लगी। यादव पर मुकदमों की संख्या 25 पहुंच गई थी। मुलायम सिंह यादव ने भी इस हालत में धर्मपाल से किनारा करना शुरू कर दिया। यह बात डीपी यादव को पसंद नहीं आई। अंतत: उन्होंने सपा से इस्तीफा दे दिया।

आगे चलकर उन्होंने बसपा का दामन थामा और 1996 में संभल सीट से लोकसभा चुनाव में जीते। हालांकि बसपा में भी वो अधिक दिन नहीं टिक पाए। दो साल बाद ही उन्होंने बसपा छोड़ दी। हालांकि राजनीतिक पकड़ कुछ ऐसी थी कि वो 1998 में निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में वो राज्यसभा पहुंच गये। बता दें कि आम राय है कि इसके लिए भाजपा ने उन्हें समर्थन दिया था।

तमाम दलों की यात्रा करने के बाद डीपी यादव भाजपा के खास बन गये थे। इस दौरान अपनी बाहुबली वाली छवि को भी उन्होंने सुधारा। असर यह हुआ कि उन्हें 2004 में भाजपा ने राज्यसभा के जरिए सांसद बनाया। हालांकि कुछ ही दिन बाद पार्टी से उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। आगे चलकर उन्होंने राष्ट्रीय परिवर्तन दल नाम से अपनी पार्टी बना ली।

किया हार का लगातार सामना: दबंग-दूधिया, बाहुबली, भू-माफिया, शराब माफिया जैसे शब्द जाने वाले डीपी यादव को राजनीतिक जीवन में हार का भी काफी सामना करना पड़ा। 2009 में बसपा में शामिल होने पर वो बदायूं सीट से हार गये। उनके सामने मुलायम सिंह यादव के भतीजे धर्मेंद्र यादव मैदान में थे। 2012 में बसपा छोड़ने के बाद अपनी पार्टी बनाई और दर्जनभर सीटों उम्मीदवार उतारे लेकिन सभी हार गये। 2014 में संभल सीट पर अपनी पार्टी के टिकट से चुनाव लड़े लेकिन जीत नहीं सके।

2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में धर्मपाल यादव ने अपने बेटे कुणाल यादव को अपनी पार्टी के टिकट पर सहसवान सीट से मैदान में उतारा है। 14 फरवरी को यहां मतदान हुआ था। जिसका नतीजा 10 मार्च को आएगा।