सुरेंद्र सिंघल
पश्चिमी यूपी में भाजपा को विपक्ष खासकर सपा की अगुआई में बने गठबंधन से कड़ी चुनौती मिलती दिख रही है। अबकी पहले चरण में पश्चिमी भाग के 11 जिलों शामली, मेरठ, हापुड़, मुजफ्फरनगर, बागपत, गाजियाबाद, बुलंदशहर, अलीगढ़, आगरा, गौतमबुद्ध नगर और मथुरा की 58 विधानसभा सीटों पर 14 जनवरी से नामांकन शुरू होगा और 10 फरवरी को मतदान होगा।
पिछले चुनाव में भाजपा की जबरदस्त लहर थी और उसे अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली सपा सरकार के सत्ता विरोधी एवं मुलायम सिंह यादव के परिवार में फूट और बिखराव का पूरा लाभ मिला था। भाजपा ने 58 में से 53 सीटें जीती थीं। तब दूसरे स्थान पर सबसे ज्यादा 29 उम्मीदवार बसपा के रहे थे। सपा 16 स्थानों पर कांग्रेस चार और रालोद तीन स्थानों पर दूसरे स्थान पर रहे थे।
एक सीट पर निर्दलीय उम्मीदवार दूसरे स्थान पर रहा था। कल्याण सिंह सरकार में सहकारिता मंत्री रहे और मुजफ्फरनगर जिले के प्रमुख जाट नेता सुधीर बालियान का कहना है कि इस बार हिंदुत्व की लहर कमजोर पड़ गई है। इस बार भाजपा के विधायकों और सरकार दोनों के खिलाफ लोगों में नाराजगी है। जाटों ने पिछली बार एकतरफा भाजपा का समर्थन किया था। लेकिन इस बार वैसी स्थिति नहीं है।
लखनऊ यूनिवर्सिटी के जीव विज्ञान विभाग अध्यक्ष एवं कृषि चिंतक प्रोफेसर सुधीर पंवार बालियान के कथन का समर्थन करते हैं। मुजफ्फरनगर डिग्री कालेज के पूर्व प्राचार्य डा. सत्य प्रकाश अग्रवाल और सहारनपुर जेवी जैन कालेज की अंग्रेजी विभागाध्यक्ष डा. ममता सिंघल कहती हैं कि पिछली बार भाजपा ने अपनी सामर्थ्य ज्यादा सीटें जीती थीं। इस बार रालोद-सपा गठबंधन भाजपा को तगड़ी चुनौती पेश करेगा।
भाजपा सत्ता विरोधी रूझान का प्रभाव कम करने को अपने कितने विधायकों को बदलती है, इस पर बहुत कुछ निर्भर करेगा। भाजपा को बिखरे विपक्ष का लाभ इस बार भी मिलेगा। पिछली बार भाजपा को ध्रुवीकरण का बहुत लाभ मिला था। ध्रुवीकरण को रोकने के लिए अखिलेश यादव ने कई तरह की सावधानियां बरती हैं। भाजपा को उन्होंने इस क्षेत्र में ज्यादा मौका नहीं दिया है।
राजनैतिक समीक्षकों के मुताबिक बिहार के राजद के नेता तेज प्रताप यादव की तरह उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव भाजपा को तगड़ी चुनौती पेश कर रहे हैं। जिसका लाभ सपा-रालोद गठबंधन को मिल सकता है। रालोद नेता जयंत चौधरी की रैलियों और सभाओं में किसानों और ग्रामीणों की भीड़ भी इसी ओर संकेत कर रही है। जाहिर है कि पहले चरण का चुनाव बेहद रोचक होगा और उससे पता चलेगा कि उत्तर प्रदेश की सियासी फिजा क्या है।