गोरखपुर की सदर विधानसभा सीट से योगी आदित्यनाथ के चुनाव मैदान में उतरने के सियासी मायने बहुत गहरे हैं। बड़ा सवाल यह है कि आखिर योगी आदित्यनाथ को गोरखपुर से चुनाव मैदान में उतारने का फैसला लिया क्यों गया? इसकी साफ दो वजह हैं। पहली, उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी का शीर्ष नेतृत्व योगी को चुनाव मैदान में उतार कर पूर्वी उत्तर प्रदेश की 133 विधानसभा सीटों पर सीधा योगी प्रभाव देखना चाहता है। दूसरा, योगी को विधानसभा चुनाव मैदान में उतार कर बिना कहे प्रदेश की जनता को यह संदेश देने की कोशिश की गई है कि भाजपा के पूर्ण बहुमत पाने पर मुख्यमंत्री योगी ही बनेंगे। उधर उत्तर प्रदेश में कड़ाके की ठंड के बीच चुनावी माहौल बेहद गर्म है। समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी भी सत्ता हासिल करने की हर कोशिश में जुटे हैं।
समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने छोटे दलों के साथ गठबंधन कर क्षेत्रीय समीकरण को साधने की कोशिश की है। उन्हें लगता है कि छोटे दलों के साथ गठबंधन कर वे उत्तर प्रदेश की सियासत में सियासी प्रयोग की एक ऐसी तदबीर गढ़ सकते हैं जो उन्हें सत्ता तक पहुंचाने की सीढ़ी साबित होगी। लेकिन कांग्रेस छोड़ कर समाजवादी पार्टी में शामिल हुए इमरान मसूद की नाराजगी अखिलेश यादव को भारी पड़ सकती है। बताया जा रहा है कि इमरान नकुड़ और बेहटा विधानसभा सीट पर समाजवादी पार्टी के प्रत्याशियों के ऐलान से बेहद खफा हैं। इमरान की इस नाराजगी का असर अखिलेश को भारी पड़ सकता है क्योंकि मुसलमानों के बीच इमरान खासे चहेते हैं।
बात अकेले इमरान मसूद की ही नहीं है। टिकट न मिलने से समाजवादी पार्टी के कई नेता नाराज बताए जा रहे हैं। ऐसे नेताओं की संख्या अधिक होने से सपा पर भितरघात का खतरा भी मंडरा रहा है। ऐसा ही भितरघात समाजवादी पार्टी 2012 के विधानसभा चुनाव के बाद झेल चुकी है और लगातार उसे मिली हार ने इस बात को साफ किया है कि भितरघातिए समाजवादी पार्टी के लिए भस्मासुर साबित हुए हैं।
उधर बहुजन समाज पार्र्टी की अध्यक्ष मायावती ने इस बार का विधानसभा चुनाव पूरी तरह अपने पार्टी के कार्यकर्ताओं पर ही छोड़ दिया है। अब तक मायावती ने न ही कोई चुनावी सभा की है और न ही रोड शो। इस वजह से बहुजन समाज पार्टी का पारम्परिक दलित मतदाता ऊहापोह में है। हालांकि वर्ष 2014 से 2019 के बीच हुए लोकसभा और विधानसभा चुनाव में जिस तरह भारतीय जनता पार्टी ने उत्तर प्रदेश में करिश्माई जनाधार पाया, उससे साफ है कि बसपा का एक बड़ा मतदाता वर्ग भारतीय जनता पार्टी के पाले में जा चुका है।
जबकि भाजपा ने जिन 107 उम्मीदवारों के नाम घोषित किए हैं, उनमें 60 फीसद टिकट पिछड़ों और दलितों को दे कर समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी से अपने पाले में आए मतदाताओं को सुरक्षित रखने का मास्टर स्ट्रोक चला है। भाजपा ने इस बार के विधानसभा चुनाव में अपने एक मंत्री को छोड़ कर सभी को टिकट दे कर यह साफ कर दिया है कि उसे अब भी अपने जिताऊ साथियों पर ही भरोसा है। वहीं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को गोरखपुर सदर से चुनाव मैदान में उतार कर जनता के बीच यह संदेश देने की कोशिश की है कि विधानसभा चुनाव में बहुमत आने पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ही होंगे।
फिलहाल उत्तर प्रदेश के सियासी समर में ऊंट किस करवट बैठता है? इस बात का फैसला तो 10मार्च को होगा लेकिन अभी से प्रदेश का सियासी माहौल बेहद गर्म है और जनता हर सियासी गतिविधि पर संजीदा निगाह रखे हुए है।