दस फरवरी को पहले चरण की जिन 58 सीटों के लिए मतदान होगा, उनमें जाट और मुसलमान मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं। जाट पूर्व में अमूमन अजित सिंह के साथ रहे। चौधरी चरण सिंह ने तो मुसलमान, जाट, यादव व गुर्जर मतदाताओं के गठजोड़ का एक नया प्रयोग कर सियासी मुकाम हासिल किया था।
भाजपा ने पश्चिम यूपी में प्रचार की नई रणनीति बनाई है। उसने कद्दावर नेताओं के साथ गली-मोहल्लों में जोर लगा दिया है। यह तरीका वैसा ही है जैसा कि भाजपा ने पश्चिम बंगाल और दिल्ली के विधानसभा चुनावों में अपनाया था। मुजफ्फरनगर के 2013 के दंगों ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में सदियों से चले आ रहे जाट-मुसलमान भाईचारे को नफरत की आग से झुलसा दिया था। भाजपा को 2014 और 2019 के लोकसभा व 2017 के विधानसभा चुनाव में जोरदार जीत मिली थी।
किसान आंदोलन ने विभाजन की खाई को पाट दिया तो डबल इंजन की सरकारों के कामकाज से नाराजगी ने भी चुनौती बढ़ा दी। ऊपर से सपा और रालोद का गठबंधन हो गया। दिल्ली में गणतंत्र दिवस के मौके पर अपने सांसद प्रवेश वर्मा के निवास पर अमित शाह ने जाटों की बैठक कर नाराजगी को दूर करने का प्रयास किया। नरेश टिकैत ने ने कहा कि किसान केवल जाट नहीं हैं। दूसरी जातियां भी किसान हैं।
राकेश टिकैत ने कहा कि बैठक ही करनी थी तो उन सात सौ किसानों के परिवारों की करनी चाहिए थी, जिनकी तेरह महीने चले किसान आंदोलन के कारण जान चली गई। दिल्ली की इस पंचायत में जाट नेता चौधरी अमन सिंह ने कई मांगें रखी। सबसे पहले तो यही कि देश के सबसे बड़े किसान नेता चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न क्यों नहीं दिया गया।
दूसरा मुद्दा उन्होंने केंद्रीय सेवाओं में जाटों को आरक्षण देने का उठाया। मनमोहन सिंह सरकार ने 2013 में जाटों को ओबीसी आरक्षण का लाभ देने का फैसला किया था। कई राज्यों में जाटों को ओबीसी आरक्षण का लाभ मिल भी रहा हैै। पर केंद्रीय सेवाओं में नहीं। मनमोहन सरकार की अधिसूचना को 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया था।
अमित शाह ने जाटों के शिकवे शिकायतों का तो कोई समाधान नहीं किया पर इतनी तसल्ली जरूर दे दी कि जाटों का स्थान उनके दिल में है। इस पंचायत में प्रवेश वर्मा और संजीव बालियान ने अपने समर्थकों के माध्यम से अमित शाह तक अपनी यह शिकायत अलबत्ता पहुंचा दी कि केंद्र में कोई भी कैबिनेट मंत्री नहीं है। अभी अकेले बालियान ही मंत्री हैं और वह भी अधूरे यानी राज्य मंत्री।