मथुरा-वृन्दावन और छाता विधानसभा सीटों पर चुनाव रोचक होता जा रहा है। मथुरा-वृंदावन सीट पर अब तक जो टक्कर भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी श्रीकांत शर्मा और कांग्रेस के प्रदीप माथुर के बीच मानी जा रही थी, उसका खेल अब बहुजन समाज पार्टी ने बिगाड़ दिया है। भाजपा के बागी और अब बसपा के प्रत्याशी सतीश कुमार शर्मा ने गणित बिगाड़ दिया है। सपा-रालोद गठबंधन की ओर से वैश्य प्रत्याशी मैदान में उतार दिए जाने से भी मुकाबला अब बहुत रोचक हो चला है। इतिहास के पन्ने पलटकर देखें तो 70 सालों में इस सीट पर हुए विधानसभा चुनावों में कई बड़े उलटफेर हुए हैं।
सर्वाधिक मतों से जीतने का श्रेय पिछली बार साल 2017 में भाजपा के प्रत्याशी श्रीकांत शर्मा को जाता है जिन्होंने 143361 मत लेकर जीत हासिल की थी। जबकि, दूसरे स्थान पर रहे कांग्रेस के प्रत्याशी प्रदीप माथुर को मात्र 42200 मत मिले थे। श्रीकांत शर्मा इस समय राज्य सरकार में ऊर्जा मंत्री हैं। यहां वैश्य और ब्राह्मण मतदाता बराबर संख्या में हैं। सपा और रालोद गठबंधन के उम्मीदवार देवेंद्र अग्रवाल हैं। भाजपा के परंपरागत वोट बैंक रहे वैश्य समाज की नाराजगी को अपने पक्ष में भुनाना दूसरे दलों के लिए आसान नहीं है।
इस बार, आम आदमी पार्टी से कृष्ण कुमार शर्मा, राष्ट्रीय समता विकास पार्टी से जगदीश प्रसाद कौशिक, अनारक्षित समाज पार्टी से राम नरेश उपाध्याय, राष्ट्रीय महान गणतंत्र पार्टी से लाडो देवी, राइट टू रिकाल पार्टी से विभोर शर्मा, शिवसेना से सत्येंद्र सिंह, राष्ट्रीय शोषित समाज पार्टी से सुरेश चंद्र बघेल व चार निर्दलीय प्रत्याशी टाल ठोंक रहे हैं।
इलाके की छाता विधानसभा सीट भी काफी महत्वपूर्ण मानी जा रही है। यहां ढाई दशक से कैबिनेट मंत्री लक्ष्मी नारायण व पूर्व मंत्री तेजपाल सिंह के बीच राजनीतिक जंग छिड़ी हुई है। इसमें एक बार कैबिनेट मंत्री बाजी मारते हैं,तो दूसरी बार तेजपाल सिंह विधायक बनते हैं। यूपी की योगी सरकार में मंत्री पद संभाल रहे चौ. लक्ष्मी नारायण जाटों के काफी कद्दावर नेता माने जाते हैं।
वे पहली बार वर्ष 1985 में लोक दल से चुनाव लड़कर विधायक बने थे। तब उन्होंने भाजपा प्रत्याशी किशोरी श्याम शर्मा को हराया था। वर्ष 2017 में राजनीतिक माहौल बदल गया था। चौ. लक्ष्मी नारायण ने बसपा छोड़कर भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली और चुनाव मैदान में उतर गए। चौधरी की पार्टी जरूर बदल गई लेकिन इतिहास नहीं बदला और इस बार चौ. लक्ष्मी नारायण चुनाव जीतने में सफल रहे। हालांकि, इस चुनाव में उनके सामने तेजपाल सिंह नहीं वरन उनके पुत्र अतुल सिंह निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ रहे थे। फिर से पासा पलटा और इस बार लक्ष्मी नारायण विधायक बनने में सफल रहे।
इस तरह वर्ष 1996, 2002, 2007, 2012 व 2017 के चुनाव में दोनों ने बारी बारी सफलता का स्वाद चखा है। इस बार जहां लक्ष्मी नारायण प्रदेश में बेहतर कानून व्यवस्था व विकास को मुद्दा बना रहे हैं तो तेजपाल सिंह छाता स्थित बंद पड़ी चीनी मिल को प्रमुख मुद्दा बना रहे हैं। उनके अनुसार यदि चीनी मिल चालू हो जाती तो क्षेत्र के किसानों की आय जहां कई गुना बढ़ जाती, वहीं क्षेत्रीय नौजवानों को रोजगार भी मिलता।
क्षेत्र में 85 हजार मतदाताओं की संख्या के साथ ठाकुर सबसे अधिक हैं। इसके बाद करीब 70 हजार जाट मतदाता हैं। वहीं, जाटव मतदाता 40 हजार, ब्राह्मण 35 हजार, वैश्य 20 हजार, गुर्जर 15 हजार व अन्य जातियों के करीब 40 हजार मतदाता हैं। छाता विधानसभा सीट से बसपा के सोनपाल सिंह, कांग्रेस प्रत्याशी पूनम देवी और आम आदमी पार्टी के प्रहलाद चौधरी भी चुनावी मैदान में एक दूसरे का दम-खम तौल रहे हैं। अब 10 फरवरी को ईवीएम में किसका भाग्य कैद हो जाएगा, यह वक्त ही बताएगा।