उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में इस बार भाजपा सीएम योगी आदित्यनाथ के चेहरे पर चुनाव लड़ेगी। इसका ऐलान खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह अपनी रैलियों में कर चुके हैं। इस ऐलान के बाद ओबीसी नेता केशव प्रसाद मौर्य के लिए भी संकेत साफ हैं कि इस बार भी वो मुख्यमंत्री की कुर्सी से दूर ही रह सकते हैं।

2017 में सीएम की रेस में थे: दरअसल केशव प्रसाद मौर्य 2017 में भी सीएम बनने की काफी करीब तक पहुंच चुके थे। हालांकि 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी बिना किसी सीएम फेस के मैदान में उतरी थी। ऐसे में केशव प्रसाद मौर्य के समर्थक कयास लगा रहे थे कि भाजपा सत्ता में आई तो मौर्य मुख्यमंत्री बनेंगे। लेकिन ऐसा ना हुआ और केंद्रीय नेतृत्व ने योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाया।

ओबीसी नेताओं ने छोड़ी पार्टी, मौर्य का बढ़ा कद: हालांकि राज्य में योगी आदित्यनाथ भले ही पार्टी का चेहरा हैं लेकिन मौर्य की दावेदारी को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। हाल ही में कई ओबीसी नेता भाजपा छोड़ सपा में चले गये। ऐसे में केशव प्रसाद मौर्य का पार्टी में कद बढ़ गया है। ऐसा इसलिए भी क्योंकि योगी सरकार में मंत्री रहे स्वामी प्रसाद मौर्य और दारा सिंह चौहान सहित जिन लोगों ने हाल ही में पार्टी छोड़ी, उन्होंने भाजपा पर ओबीसी समाज की अनदेखी का आरोप लगाया।

केशव प्रसाद मौर्य: प्रयागराज से 70 किमी दूर सिराथू के रहने वाले केशव प्रसाद मौर्य ने विश्व हिंदू परिषद के साथ शुरुआत की थी। तीन भाइयों में वे दूसरे नंबर पर हैं। कम उम्र में ही उन्होंने प्रयागराज के किडगंज में संगठन के कार्यालय में रहना शुरू किया। जहां आरएसएस के वरिष्ठ प्रचारक ठाकुर गुरुजन सिंह से मुलाकात हुई। कुछ वर्षों के बाद मौर्य को विश्व हिंदू परिषद द्वारा संगठन मंत्री नियुक्त किया गया।

अयोध्या से मंदिर तक का सफर: इसके बाद मौर्य को अयोध्या भेज दिया गया। यह दौर बाबरी मस्जिद विध्वंस का था और विहिप अयोध्या में बहुत सक्रिय थी। यहां कुछ दिन काम करने के बाद मौर्य प्रयागराज लौटे और सामाजिक कार्यों में लग गए। लेकिन इस दौरान उन्हें पार्टी में ही विरोध का सामना करना पड़ा। बता दें कि मौर्य के भाजपा में शामिल होने के प्रयासों का कथित तौर पर प्रयागराज के तत्कालीन लोकसभा सांसद मुरली मनोहर जोशी सहित कई भाजपा नेताओं ने विरोध किया।

आगे चलकर 2004 में जब जोशी लोकसभा चुनाव हार गये तो मौर्य पार्टी में अपनी जगह बनाने में कामयाब हो गए। अक्टूबर 2004 के उपचुनाव में इलाहाबाद (पश्चिम) विधानसभा सीट से भाजपा ने उन्हें मैदान में उतारा। इस सीट पर कई सालों से बाहुबली अतीक अहमद का दबदबा था। नतीजों में मौर्य तीसरे स्थान पर रहे।

2014 में हासिल हुई जीत: वहीं भाजपा में मौर्य का कद तब और बढ़ गया जब 2014 के लोकसभा चुनावों में उन्होंने फूलपुर लोकसभा सीट से जीत हासिल की। इस सीट का प्रतिनिधित्व कभी जवाहरलाल नेहरू करते थे। सूत्रों ने कहा कि इस बार मौर्य भाजपा के टिकट वितरण में अहम भूमिका निभा रहे हैं, खासकर प्रयागराज क्षेत्र में।

सीएम पद चर्चा का विषय नहीं: बता दें कि चुनाव के बाद सीएम पद को लेकर मौर्य ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “सीएम पद अब चर्चा का विषय नहीं है। अभी हम प्रचार में व्यस्त हैं और हमें एससी, एसटी, ओबीसी सहित समाज के सभी वर्गों का पूरा समर्थन मिल रहा है। हम 2017 की तरह फिर जीतेंगे।”