Report By- Parthasarathi Biswas: यूपी में अगले कुछ दिनों में विधानसभा चुनावों के लिए वोट डाले जाएंगे। पहले फेज में पश्चिमी यूपी में वोट डाले जाने हैं। इस इलाके में जाट समुदाय निर्णायक भूमिका हैं और इसपर भारतीय किसान यूनियन (BKU) की पकड़ ठीक-ठाक है। बीकेयू के अध्यक्ष नरेश टिकैत ने रविवार को घोषणा की कि किसान संघ चुनाव में सपा और राष्ट्रीय लोक दल आरएलडी के उम्मीदवारों का समर्थन करेगा।

हालांकि, सोमवार को बीजेपी नेता और केंद्रीय मंत्री संजीव बाल्यान के साथ बैठक के बाद नरेश ने यू-टर्न लेते हुए कहा कि बीकेयू किसी भी पार्टी का समर्थन नहीं करेगा। इससे पहले दिसंबर में, नरेश टिकैत के भाई और बीकेयू प्रवक्ता राकेश टिकैत ने खुद चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया था। तब सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने उन्हें चुनाव लड़ने का ऑफर दिया था। टिकैत जिस इलाके और जिस संगठन के नेता हैं वो जाट बहुल है और जाट समुदाय में इनकी काफी पकड़ है।

आईए जानते हैं बीकेयू का क्या है इतिहास और कैसे पश्चिमी यूपी में इसकी पकड़ इतनी मजबूत हुई कि कोई भी राजनीतिक पार्टी आज इनकी अनदेखी करने की भूल नहीं करना चाहता है।

बीकेयू का गठन- बीकेयू का गठन 1970 के दशक के पंजाब खेतीबारी संघ के शुरुआती दिनों में हुई थी। किसान नेता चौधरी चरण सिंह, जिन्होंने देश के पांचवें प्रधानमंत्री के रूप में कार्य किया, को 1970 के दशक के अंत में किसान संघ के प्रोफाइल को राष्ट्रीय स्तर तक बढ़ाने का श्रेय दिया जाता है। 1980 में किसान आंदोलन को और तब मजबूती मिली, जब तमिलनाडु के प्रतिष्ठित किसान नेता सी नारायणस्वामी नायडू ने देश के प्रमुख किसान आंदोलनों की एक बैठक बुलाई। बैठक के परिणाम के रूप में, अखिल भारतीय किसान सम्मेलन का आयोजन किया गया।

हालांकि, यह संघ 1982 में भंग हो गया था। तब नारायणस्वामी के बीकेयू (एन) और भूपिंदर सिंह मान के बीकेयू (एम) अलग-अलग हो गए थे। महाराष्ट्र के किसान नेता शरद जोशी ने तब एक मध्यस्थ के रूप में काम किया, और विभिन्न यूनियनों के बीच एक व्यापक समझौता किया गया। 1986 में महेंद्र सिंह टिकैत के संघ के पुनर्गठन के बाद और इसका मुख्यालय उत्तर प्रदेश के सिसौली में स्थानांतरित होने के बाद बीकेयू का महत्व और प्रभाव बढ़ना शुरू हो गया। महेंद्र सिंह टिकैत बलियां खाप के मुखिया भी थे।

लोकप्रियता में उतार-चढ़ाव- महाराष्ट्र के दिग्गज किसान नेता विजय जवंधिया, जिनका शरद जोशी और उनके आंदोलन से लंबा जुड़ाव था, बताते हैं कि टिकैत को उनके शुरुआती दिनों में हरियाणा के चौधरी देवी लाल ने मदद की थी। टिकैत और देवीलाल दोनों भौगोलिक रूप से जोशी या कर्नाटक के रायथु संघ के नेता एम डी नंजुंडास्वामी की तुलना में दिल्ली के करीब थे।

महेंद्र सिंह टिकैत राष्ट्रीय स्तर पर तब चमके जब उन्होंने मेरठ आयुक्त कार्यालय को 25 दिनों तक किसानों के साथ घेरे रखा। इसके बाद गन्ने के मूल्य नियंत्रण, ऋण माफी और बिजली आपूर्ति के लिए टिकैत ने 8 लाख से अधिक किसानों के साथ दिल्ली के बोट क्लब लॉन में धरना दे दिया। इस धरने की तब काफी चर्चा हुई थी। महेंद्र सिंह टिकैत राष्ट्रीय स्तर के नेता बन गए। लेकिन एक बार फिर, जोशी और टिकैत के बीच मतभेद गहराया और बीकेयू पश्चिमी यूपी तक सीमित हो गई।

राजनीति में बीकेयू- जवंधिया ने आगे कहा कि बीकेयू पश्चिमी उत्तर प्रदेश के गन्ना क्षेत्र में स्थित है, टिकैत का आंदोलन भी मुख्य रूप से इस फसल और उसके किसानों के आसपास केंद्रित था। मान, बलविंदर सिंह राजेवाल, अजमेर सिंह लखोवाल जैसे नेताओं और अपने-अपने गुटों का नेतृत्व करने वाले अन्य नेताओं के साथ, बीकेयू की पंजाब इकाई में तब तक कई विभाजन हो चुके थे। जवंधिया ने कहा- “कुछ वामपंथी झुकाव वाले कृषि नेताओं ने भी अपनी यूनियनों बनाई।”

जवंधिया बताते हैं कि बीकेयू को पार्टी लाइनों से परे राजनेताओं का समर्थन मिलते रहा है। भले ही उसने अपने गैर-राजनीतिक रुख को बनाए रखा, लेकिन आम तौर पर किसान आंदोलन एक राजनीतिक ताकत बनने में विफल रहा। राकेश टिकैत ने कांग्रेस के समर्थन से 2007 का विधानसभा चुनाव लड़ा, लेकिन अपनी छाप छोड़ने में असफल रहे। 2014 में, उन्होंने रालोद के टिकट पर लोकसभा के लिए लड़ा लेकिन जीत नहीं सके। जवंधिया ने कहा- “टिकैत और चरण सिंह का परिवार दोनों जाट समुदाय से हैं। औसत जाट किसान राजनीतिक रूप से चरण सिंह का अनुसरण करता है, न कि टिकैत का, जिसका वे आंदोलन के दौरान अनुसरण करते हैं।”

महाराष्ट्र में शरद जोशी के विपरीत, टिकैत मुक्त बाजार और आर्थिक उदारीकरण के प्रबल आलोचक रहे हैं। इस संबंध में, बीकेयू की स्थिति नंजुंदास्वामी के समूह के समान है।